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न्यायपालिका, पत्रकारिता और यौन शोषण : अफसोस जता रहे हैं मुख्य न्यायधीश

सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज पर उनके यहां काम करने वाली एक महिला वकील आरोप लगाती हैं कि जज साहब ने उनका यौन शोषण किया. लेकिन मामला सामने आने के बाद जज साहब से पुलिस पूछताछ नहीं करती. उल्टे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश मामले की जांच के लिए जजों की एक जांच समिति बना देते हैं. क्यों?  जांच पुलिस क्यों नहीं कर सकती भाई साहब? इसलिए कि मामला अपनी जाति यानी जज बंधुओं से जुड़ा है? पहले पुलिस को जांच करने दीजिए ना. पुलिस के सवालों का जवाब देने से रिटायर्ड जज साहब की गरिमा कम हो जाएगी क्या? अगर उसके बाद न्यायपालिक संतुष्ट नहीं होती है तो फिर कमिटी भी बन सकती है..क्यों?!

सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज पर उनके यहां काम करने वाली एक महिला वकील आरोप लगाती हैं कि जज साहब ने उनका यौन शोषण किया. लेकिन मामला सामने आने के बाद जज साहब से पुलिस पूछताछ नहीं करती. उल्टे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश मामले की जांच के लिए जजों की एक जांच समिति बना देते हैं. क्यों?  जांच पुलिस क्यों नहीं कर सकती भाई साहब? इसलिए कि मामला अपनी जाति यानी जज बंधुओं से जुड़ा है? पहले पुलिस को जांच करने दीजिए ना. पुलिस के सवालों का जवाब देने से रिटायर्ड जज साहब की गरिमा कम हो जाएगी क्या? अगर उसके बाद न्यायपालिक संतुष्ट नहीं होती है तो फिर कमिटी भी बन सकती है..क्यों?!

ठीक है, न्यायपालिका के पास विशेषाधिकार है लेकिन जांच normal process से हो तो उसमें क्या हर्ज है ? पुलिस पहले जांच क्यों नहीं कर सकती?

अब आते हैं तरुण तेजपाल के मामले पर. अगर न्यायपालिका के इसी नजिरए का सहारा लेकर पत्रकार बिरादरी या प्रेस काउंसिल इंडिया भी कह दे कि पुलिस की अभी जरूरत नहीं. हम आपस में एक कमिटी बनाकर जांच कर लेते हैं. तो क्या आप मान लेंगे?? नहीं ना. ठीक वैसे ही, जैसे जी न्यूज-जिंदल विवाद में जब जी न्यूज के संपादक सुधीर चौधरी का नाम आया तो BEA ने एक Fact finding committee बनाई. लेकिन कमिटी सिर्फ Journalism ethics पर बात करने के लिए और तथ्यों की जांच के लिए थी. पुलिस अपना काम कर रही थी और इस कार्रवाई में सुधीर चौधरी को जेल भी जाना पड़ा.

तो तेजपाल के मामले में भी अगर पत्र बिरादरी कोई जांच कमिटी बनाती है तो वह इस पेशे से जुड़े ethics पर ही बात कर सकती है. सम्पादकों को नए guidelines बनाने के लिए कह सकती है ताकि उनके दफ्तरों में महिलाओं के साथ यौन शोषण की घटनाओं पर काबू पाया जा सके या फिर पुराने guidelines पर सख्ती से अमल की बात दोहराई जा सकती है. लेकिन पुलिस की जांच और दंड देने का काम पत्रकारों की आपसी जांच कमिटी नहीं कर सकती. ये काम कार्यपालिका और न्यायपालिका का है.

बस मेरे मन में ये सवाल आ रहा था कि रिटायर्ड जज पर जब यौन शोषण का आरोप लगा तो पुलिस को अपना काम क्यों नहीं करने दिया गया. जजों की कमिटी जांच क्यों करे पहले? यह सब जानते हुए कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश के पास यह अधिकार है कि वह किसी को भी जांच करने का आदेश दे सकते हैं. इसके लिए किसी की भी अगुवाई में जांच कमिटी बना सकते हैं. लेकिन सवाल फिर वहीं. अगर आरोप रिटायर्ड जज पर लगे हैं तो जांच पहले पुलिस क्यों नहीं कर सकती????!!!

मीडिया और अन्य संस्थानों में महिलाओं के साथ यौन शोषण से निपटने के उपाय क्या होंगे जब भारत की सर्वोच्च अदालत ही इस मामले में फिसड्डी है. वहां आज तक इस मामले में कुछ नहीं हो पाया है. आपको विश्वास नहीं होता ना तो पढ़िए Indian Express में छपी खबर का ये अंश, जिसमें भारत के मुख्य न्यायधीश भी अफसोस जता रहे हैं कि Sexual harassment से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट की कमिटी अभी तक Functional नहीं हो पाई है.

"Chief justice of India, P. Sathasivam, however, lamented that the the sexual harassment committee in the SC could not be made functional so far since the Supreme Court Bar Association and Law Clerks Association were yet to nominate their members to the committee." (Indian Express)

पत्रकार नदीम एस. अख्तर के फेसबुक वॉल से.

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