डॉ. अजीत : बात मुद्दों से फिसल कर धर्म पर आ जाती है इसलिए देश में सेकुलर होना गोया गाली बन गई है.. खुद मुझ पर भी छ्द्म धर्मनिरपेक्ष होने का आरोप है.. आप कट्टर रहें.. चाहे जिस भी विचारधारा से ताल्लुक रखें.. यही आज के दौर मे आपकी वैचारिक प्रतिबद्धता और प्रखरता के पैमाने बन गए हैं… यदि आप शांति सदभाव और आपसी सोहार्द के साथ जीना चाहते हैं तब, क्या तो आप छ्द्म हैं या फिर डरपोक…
ऐसे मुश्किल दौर में कई बार बडी बैचेनी होती है… कई बार न चाहते हुए भी अपने 'आर-पार' की लडाई का मूड बनाए मित्रों की हां मे हां मिलानी पड़ती है क्योंकि उनके लिए मेरे हिन्दू होने का सबसे बडा प्रमाण यही है कि मुस्लमानों से कितना आतंकित हूँ और फिर इसी डर से मुझे उस युद्ध के लिए तैयार रहना है जहाँ घृणा और वैमनस्य को जीने की बुनियादी जरुरत के रुप मे विकसित किया जा रहा है…
महावीर, बुद्ध और नानक के इस देश में शांति प्रिय लोगो के पीठ पर भगौड़ा लिखने के लिए मुहर तैयार की जा रही है जिसे जब भी मौका मिलेगा वो आपके पीठ पर दाग देगा.. अजीब आश्चर्य होता है जब हम विश्व गुरु होने का दम्भ भरते हुए पश्चिम को गर्व के साथ गरियाते है लेकिन 21 वी सदीं के भारत में आज भी धर्म के नाम पर जो खून खराबा होता है वो किसी एंगल से मुझे अपने देश पर गर्व करने की इजाजत देता है मुझे समझ नहीं आता है.. सियासत ने जो रवैया अख्तियार किया है वह भी कम डराने वाला नहीं है.. क्या सियासत का अंतिम लक्ष्य येनकेनप्रकारेण कुर्सी ही हासिल करना होता है… विशुद्ध मानवीय सरोकारों की सियासत क्यों नहीं की जा सकती है… चाहे सत्ता हो विपक्ष, दोनों ही अपने स्वार्थो की राजनीति मे लिप्त हैं.. ऐसे में विकासशील देश का एक आम नागरिक जो रोजमर्रा की बीमारी, कर्जे और मुकदमों से जूझता हुआ खुद इतना थका हुआ है कि उसे राहत कहीं नजर नहीं आती है… ऐसे में अपने देश में साम्प्रदायिक दंगे, अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ, बाबाओं की लंपटई उसे और हताशा में ही डाल रही हैं..
डा. अजीत के फेसबुक वॉल से.