: पल में बदल जाती है खबरों की प्राथमिकता : मीडिया में खबर की प्राथमिकता कब बदल जाए, कोई नहीं जानता। जो एक क्षण पहले सबसे हॉट न्यूज के रूप में देश भर के मीडिया की पहली से लेकर आखिरी खबर होती है वही दूसरे ही क्षण गायब हो जाती है। उसका स्थान लेने के लिए सामने आ जाती है कोई दूसरी बड़ी खबर। आज भी ऐसा ही हुआ।
दोपहर को तमाम मीडिया पोंटी चड्ढा बंधुओं की हत्या की खबर दिखा और बता रहा था। दो से लेकर ढाई घंटे तक टीवी चैनलों पर यही खबर थी। अचानक मीडिया का रुख मुंबई में शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे के निवास मातोश्री की तरफ हो गया। चड्ढा बंधुओं की खबर जिस प्रकार अचानक आई थी गायब हो गई। उसके स्थान पर मातोश्री के अंदर-बाहर की हलचल हॉट न्यूज बन कर छा चुकी थी।
अंदर से बाला साहब ठाकरे के डॉक्टर के साथ शिव सेना के कई नेता बाहर आए। मीडिया के निकट पहुंचे। शोर शुरू हो गया। इतना शोर कि बार बार साइलेंस…साइलेंस कहा जाने लगा। कुछ मिनट के बाद जब सब शांत हुए तब डॉक्टर ने बाला ठाकरे के निधन की घोषणा की। बस, उसके बाद तो किसी और खबर के किसी चैनल पर होने का सवाल ही पैदा नहीं होता था। मीडिया की प्राथमिकता जो कुछ देर पहले छतरपुर का फार्म हाउस था वह मुंबई का मातोश्री बन चुका था। हर न्यूज चैनल्स पर कारोबारी चड्ढा के स्थान पर शिव सेना सुप्रीमो के पुराने वीडियो दिखाए जाने लगे। इंटरनेट पर हर सोशल साइट्स पर बाल ठाकरे की खबर सुर्खियां बन गई।
प्रिंट मीडिया के इंटरनेट संस्करण पर भी बाल ठाकरे ही पहली प्राथमिकता खबर के रूप में थे। यहां भी उनके बारे में सभी जानकरी अपलोड हो चुकी थी। यह सिलसिला लगातार जारी था। शायद उनके संस्कार के बाद तक जारी रहे। बीबीसी हिन्दी हो या कोई चैनल सब के सब फेसबुक पर भी बाल ठाकरे की खबर पोस्ट कर रहे थे। बाल ठाकरे के बारे में अधिक से अधिक सामग्री देने की अघोषित प्रतियोगिता शुरू हो चुकी थी। मीडिया ही नहीं फेसबुक पर तो हर कोई बाल ठाकरे के बारे में अपनी टिप्पणी लिख रहा था।
मीडिया के साथ साथ उनकी प्राथमिकता भी बदल चुकी थी। अधिकांश लोग उनको अपनी पोस्ट और टिप्पणी में बहुत महत्व दे रहे थे। एक व्यक्ति ने कुछ उलटा भी लिखा अपनी पोस्ट में बाल ठाकरे की आत्मा के बारे में। इन सबके बीच मीडिया से जुड़े व्यक्तियों,खबरों में रुचि लेने वाले सभी व्यक्तियों ने देखा कि कि खबरों की प्राथमिकता क्षण में कैसे बदल जाती है। जो हॉट होती है वह किसी भी क्षण ठंडी होकर एक तरफ पड़ी रहती है या डाल दी जाती है। इसको ऐसे भी कह सकते हैं कि खबर को इस प्रकार एक तरफ डाल देना मजबूरी हो जाती है।
श्रीगंगानगर के वरिष्ठ पत्रकार गोविंद गोयल का विश्लेषण.