गुरुवार (18 जुलाई) को दोपहर बाद मैं बिहार विधान सभा के मेनगेट से बाहर आ रहा था। एक साथी मिले। भूमिहार हैं। उन्होंने एक खबर दी। खबर नहीं दी, बल्कि सवाल पूछा। पता है हिन्दुस्तान के संपादक बदल गये। मैंने कहा- हॉ। कोई तीर विजय सिंह जी आये हैं। सासाराम के किसी प्रखंड के रहने वाले बताए जाते हैं।
उन्होंने कहा, पता है किसके आदमी हैं? उन्होंने जोड़ा- जदयू के आदमी हैं। राजपूत हैं। देखते नहीं हैं, जदयू के प्रदेश अध्यक्ष राजपूत, उपाध्यक्ष राजपूत, अनुशासन समिति के अध्यक्ष राजपूत, प्रवक्ता राजपूत। मैंने कहा, इसमें नयी बात क्या है? उन्होंने कहा, आप ठहरे अहीर के अहीर। नहीं न समझिएगा। राजपूत लोग मिल के तीर विजय सिंह को लाया है, ताकि सरकार के साथ हिन्दुस्तान का बैलेंस बना रहा। बड़ा अखबार है न। इसलिए इस नियुक्ति में नीतीश कुमार की भी सहमति रही है।
अब मैं अपने तेवर में आ गया। मैंने कहा, आपको थोड़े समझ में आएगा सत्ता का खेल। आपको पता है नीतीश कुमार के केंद्र सरकार के साथ सबसे बड़े डीलर एनके सिंह राज्य सभा सदस्य हैं। वह भी राजपूत हैं। विकास की राशि से लेकर पुरस्कारों तक वही डील करते हैं। पटना से लेकर वाशिंगटन डीसी तक मीडिया को वही डील करते हैं। बिहार की विकास गाथा की पटकथा वही लिखते हैं। तो क्या वह एक राजपूत को हिन्दुस्तान पटना में संपादक नहीं बनवा सकते हैं।
इस महत्वपूर्ण काम के लिए आप टूट पूंजिया नेताओं का नाम लेते हैं। बिहार की मीडिया का अपना आर ब्लॉक हैं। किस अखबार में नहीं हैं बेचारे राजपूत। थोड़े न, तीर भाई कोई पहला राजपूत संपादक हैं। राजपूत संपादकों की लंबी लाइन रही है और है भी। उन्होंने उस लंबी लाइन को थोड़ी और लंबी कर दी है। आप भूमिहार लोग हैं न, राजपूतों की बरकत नहीं देख सकते हैं। पहले मिल के सत्ता का भोज खा रहे थे तो कोई परेशानी नहीं हो रही थी और अब सत्ता से लतिया दिये गये तो राजपूत का उत्थान बरदाश्त नहीं हो रहा है। इतनी कथा सुनने के बाद हमारे साथी का धैर्य जबाव दे गया और उन्होंने कहा, जा रहे हैं भाई, बहुत जरूरी काम है। और वह विधान सभा की ओर गए और मैं बाहर।
लेखक बीरेंद्र कुमार यादव हिंदुस्तान समेत कई अखबारों में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं. उनसे संपर्क kumarbypatna@gmail.com के जरिए किया जा सकता है.