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भास्कर ने इंदौर में बर्बाद कर दिया पच्चीस लाख रुपये का स्कूली ग्राउंड

इंदौर : स्कीम-54 स्थित गुजराती स्कूल का जो मैदान समाज के खैरख्वाहों ने निजी राजनीतिक स्वार्थ के कारण गरबे के लिए दैनिक भास्कर समूह को नि:शुल्क दिया है उसे 25 लाख रुपए से ज्यादा खर्च करके समाज ने सालभर पहले ही स्टेडियम की तरह संवारा था। इसमें 150 से ज्यादा पौधे और लाखों की विलायती घास लगाई गई थी जिसे रविवार को साधारण सभा में मिली मंजूरी से पांच दिन पहले ही भास्कर समूह ने उखाड़कर फेंकना शुरू कर दिया। हालात यह है कि पांच दिन पहले तक जहां बच्चे चौके-छक्के लगा रहे थे उसी मैदान की छाती पर आज घास-पेव्हर उखाड़कर तंबू के लिए कीलें ठोके जा रहे हैं।

इंदौर : स्कीम-54 स्थित गुजराती स्कूल का जो मैदान समाज के खैरख्वाहों ने निजी राजनीतिक स्वार्थ के कारण गरबे के लिए दैनिक भास्कर समूह को नि:शुल्क दिया है उसे 25 लाख रुपए से ज्यादा खर्च करके समाज ने सालभर पहले ही स्टेडियम की तरह संवारा था। इसमें 150 से ज्यादा पौधे और लाखों की विलायती घास लगाई गई थी जिसे रविवार को साधारण सभा में मिली मंजूरी से पांच दिन पहले ही भास्कर समूह ने उखाड़कर फेंकना शुरू कर दिया। हालात यह है कि पांच दिन पहले तक जहां बच्चे चौके-छक्के लगा रहे थे उसी मैदान की छाती पर आज घास-पेव्हर उखाड़कर तंबू के लिए कीलें ठोके जा रहे हैं।

गुजराती समाज के अध्यक्ष विनोद भाई पंड्या और मानद मंत्री पंकज संघवी के संचालक मंडल ने तकरीबन सालभर पहले तीन एकड़ जमीन में फैले बेजार मैदान को संवारा था। विधिवत विलायती घास लगाई गई। 150 से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए गए। आसपास पेव्हर लगाई गई। मैदान का विकास समंदर सिंह ‘जो कि नेहरू स्टेडियम, होलकर स्टेडियम और ग्वालियर के क्रिकेट स्टेडियम की पीच को आकार दे चुके हैं’, के मार्गदर्शन में हुआ। समाज के वरिष्ठ पदाधिकारियों की मानें तो मैदान के सौंदर्यीकरण पर 25 लाख रुपए खर्च हुए थे। यह जानकारी मौजूदा संचालक ही अलग-अलग बैठक में कई बार दे चुके हैं।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि गुजराती समाज को अब तक नजरअंदाज करते आए भास्कर समूह को अभिव्यक्ति के लिए मंजूरी देकर मैदान का कबाड़ा क्यों कराया जा रहा है। संचालक अब तक इस बात का जवाब भी नहीं दे पाए हैं कि अभिव्यक्ति के बाद भास्कर समूह क्या उसी स्वरूप में मैदान लौटाएगा जिस स्वरूप में उसने इस्तेमाल के लिए लिया था। यदि नहीं तो मैदान को नए सिरे संवारने की रकम समाज क्यों दे। क्यों न इसका खर्च उन संचालकों से वसूला जाए जिनकी मनमानी मैदान की जान लेने पर आमादा है।

तकरीबन आधे मैदान में अभिव्यक्ति के दो सर्कल बनेंगे। जनरल और रिजर्व। इसके अलावा फूड जोन व अन्य व्यवस्था। इनके सबके बीच यदि भास्कर समूह घास नहीं भी उखाड़ेगा तो वह पैरों तले दब ही जाएगी। इसके अलावा पेड़-पौधों को भी नुकसान होना है। रविवार की एजीएम में मैदान इस्तेमाल की मंजूरी हुई जबकि मौके पर भास्कर समूह पांच दिन पहले ही गेट और चौतरफा पतरे ठोककर उजाड़ अभियान शुरू कर चुका है। गरबे 6 अक्टूबर से होना है। खुदाई शुरू हुई 17 सितंबर से। 10 अक्टूबर तक गरबे होंगे। तंबे उखाड़ने में लगेंगे 15 दिन। यानी करीब एक महीने तक बच्चे बिना मैदान खेलेंगे। इतना ही नहीं ठोका पीटी से उनकी पढ़ाई प्रभावित होगी सो अलग।

ख्यात क्यूरेटर समंदर सिंह के मार्गदर्शन में 25 लाख से ज्यादा खर्च हुआ। पंकज संघवी ने अपने निजी स्वार्थ के कारण इस हरेभरे मैदान को नेस्तनाबूद करने की अनुमति दी। इन 25 लाख रुपए की भरपाई उनसे व उनके समर्थक संचालकों से होना चाहिए। -सर्जिवभाई पटेल

पंकज संघवी और उनके समर्थकों ने समाज में अपनी मोनोपॉली के चलते समाज की जमीन और शैक्षणिक संस्थानों का दुरुपयोग अपने निजी व राजनीति हित के लिए हमेशा किया है। विरोध करने वालों को दबाते हैं इसीलिए लोग विरोध करने से डरते भी हैं। वे स्वयं को समाज से इतना ऊपर मानते हैं कि उन्हें समाज की चिंता रही, न ही समाजजनों की। -दिलीप चुलगर, सदस्य एमपीसीए

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200 से ज्यादा दृष्टिबाधित बच्चे…। दो दर्जन मुक-बधिर…। दर्जनभर से ज्यादा मेंटल रिटायर्ड…। 650 बेड का बॉम्बे हॉस्पिटल, जहां 70 फीसदी क्रिटिकल मरीज भर्ती हैं। गुजराती, सत्यसार्इं, मारथोमा और प्रेस्टीज जैसे एज्यूकेशनल इंस्टिट्यूट…। पार्किंग और यातायात फजीहत के साथ इन तमाम मुद्दों को सिरे से नजरअंदाज करते हुए जिला प्रशासन ने गुजराती स्कूल के मैदान पर दैनिक भास्कर समूह को गरबे की अनुमति दे दी…। न दृष्टिबाधित बच्चों के लिए साउंड की सेंसेटिविटी को तवज्जो दी…। न शोर-शराबे से मरीजों की सेहत न बिगड़े इसकी चिंता की…। वह भी उस स्थिति में जब सेंसेटिव जोन करार देकर हाईकोर्ट और जिला कोर्ट के आसपास 100 वर्गमीटर क्षेत्र में वाहनों का हॉर्न बजाना तक प्रतिबंधित है।

दैनिक भास्कर समूह स्कीम-54 स्थित गुजराती स्कूल के जिस मैदान पर ‘अभिव्यक्ति’ होना है उसके 250 वर्गमीटर के क्षेत्र में महेश दृष्टिहीन कल्याण केंद्र, नवदीप शिशु कल्याण बोर्ड, राधादेवी बृजरतन मोहता दृष्टिहीन बालिका छात्रावास, द नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लार्इंड, रॉटरी पॉल हैरिस स्कूल आॅफ मेंटल रिटायर्ड जैसे सामाजिक संस्थान हैं जहां परिवार से दूर बच्चों को स्पेशल अटेंशन देकर रखा जाता है। बॉम्बे  और टोटल जैसे हॉस्पिटल है। प्रेस्टीज, आईआईपीएम, इंदिरा स्कूल आॅफ करियर डेवलपमेंट, सत्यसार्इं, मारथोमा और गुजराती जैसे एज्यूकेशनल इंस्टिट्यूट हैं। सामने बीसीएम हाइट्स, शेखर प्लेनेट, प्रिंसेस रेसीडेंसी, रॉयल प्लेटिनम जैसी आवासीय-वाणिज्यिक इमारतों के साथ प्रेमशांति, मंगल रिजेंसी और इन्फिनिटी जैसी होटलें भी हैं।

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यानी एक तरफ सामाजिक और स्वास्थ्य सुविधाओं से लैस सेंसेटिव जोन है जहां भारीभरकम साउंड की अनुमति नहीं दी जी जा सकती। दूसरी तरफ है वाणिज्यिक और आवासीय क्षेत्र जहां किसी भी सूरत में रात के वक्त प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड 60 डेसीबल से ज्यादा साउंड के इस्तेमाल की अनुमति चाहकर भी नहीं दे सकता। बावजूद इसके यहां दैनिक भास्कर समूह ने अभिव्यक्ति तकरीबन एक लाख वॉट से ज्यादा का साउंड सिस्टम लगाएगा जो स्वीकृति से 20 डेसीबल ज्यादा होगा।

अभिव्यक्ति के गरबे में एक से डेढ़ लाख वॉट के बीच साउंड सिस्टम लगता आया है। इससे कम में बात ही नहीं बनती। इस बार भी एक लाख से अधिक वॉट का सिस्टम लगेगा। डेसीबल-वेसीबल से हमारा कोई लेना-देना नहीं।
(भास्कर के लिए काम करने वाली साउंड कंपनी के प्रतिनिधि)

शैक्षणिक और स्वास्थ्य संस्थानों को सेंसेटिव जोन मानते हुए उनके आसपास साउंड की अनुमति नहीं दी जाती है। वैसे भी बॉम्बे हॉस्पिटल वाली रोड एक तरफ सेंसेटिव है तो दूसरी तरफ कमर्शियल जहां किसी भी सूरत में 60 डेसीबल से ज्यादा साउंड की अनुमति नहीं दे सकते। -बापट, साइंटिस्ट, एमपीपीसीबी

आयोजन स्थल से महज 90 मीटर दूर स्थित महेश दृष्टिहीन कल्याण केंद्र के छात्रावास में 152 लड़कियां रहती हैं। सभी साउंड सेंसेटिव हैं। आंख न होने की स्थिति में कान ही बच्चियों की ताकत है। यदि कल को कानफाड़ू सिस्टम से कान खराब हो गए तो हमारा जीवन ही बिगड़ जाएगा। इसकी जिम्मेदारी न आयोजक लेंगे। न आयोजन की अनुमति देने वाले। -दीपिका प्रजापति, दृष्टिबाधित बच्ची

अभी थोड़ा-बहुत शोर होता है तो बच्चियां सो नहीं पाती हैं। रात-रात भर जगती है सुबह कॉलेज-स्कूल नहीं जा पाती। परीक्षाएं चल रही है। आयोजन सामने है और ईको के कारण यहां कुछ सुनाई देता। यह अनुभव हम बीते कुछ महीने पहले शंकर महादेवन के आयोजन के दौरान ही कर चुके हैं। -परणा दत्ता, वार्डन

बात करने से दिक्कत दूर होती है तो करें। अन्यथा कोई मतलब नहीं है। न आयोजकों को कोई फर्क पड़ता है। न ही आयोजन की मंजूरी दिए बैठे अफसरों को। अनुमति देने से पहले अफसरों ने यहां आकर यह तक नहीं देखा कि पार्किंग है या नहीं। क्षेत्र सेंसेटिव है। या नहीं। -संजय लोखंडे, डेवलपमेंट आफिसर, द नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंट

भास्कर जैसा बड़ा समाचार समूह जो कि यह जानता है कि यहां बच्चों को स्पेशल अटेंशन देकर संभाला जाता है बावजूद इसके मदद करना तो दूर बच्चों की मुश्किलें बढ़ाई जा रही है। आसपास सभी एनजीओ हैं। किसी के पास मुकबधिर बच्चे हैं तो किसी के पास मेंटली रिटायर्ड। -डॉली जोशी, आफिसर, राधादेवी बृजरतन मोहता दृष्टिहीन बालिका छात्रावास

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सामाजिक, शैक्षणिक और स्वास्थ्य जैसी सेंसेटिव सेवाओं को नजरअंदाज करते हुए जहां दैनिक भास्कर समूह गुजराती स्कूल के मैदान में गरबे की तैयारियां कर रहा है वहीं उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला की संस्था कनकेश्वरी ने अपना गरबा स्थल बदल दिया है। इस बार मां कनकेश्वरी देवी का गरबा सत्यसार्इं के सामने नहीं, बल्कि प्राइम सिटी और श्यामनगर के बीच स्थित मैदान पर होगा। इसका कारण आयोजक सत्यसार्इं के पास स्थानाभाव, सेंसेटिव सेवाओं और लोगों को होने वाली परेशानियों को बताते हैं।

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गुजराती स्कूल में जब से दैनिक भास्कर ने अभिव्यक्ति की तैयारियां शुरू की है तभी से चर्चा तेज है कि मां कनकेश्वरी के गरबे कहां होंगे? यदि दोनों गरबे आमने-सामने हो गए तो क्या होगा? जैसे सवालों से परेशान हो रहे क्षेत्रवासियों को विजयवर्गीय और मेंदोला की संस्था ने आयोजन स्थल बदलकर बड़ी राहत दी है। एमआर-9 पर श्यामनगर और प्राइम सिटी के बीच गौरीनगर निवासी घनश्याम चौधरी की 13 एकड़ जमीन पर संस्था ने आयोजन की तैयारियां शुरू कर दी। मैदान पर लाइटिंग लग चुकी है। मैदान को बराबर करने का काम जारी है।

संस्था के कर्ताधर्ताओं का कहना है कि 2012 में सत्यसार्इं विद्या विहार के सामने स्थित मैदान पर गरबा आयोजित किया था। अनुभव यह रहा कि आयोजन के लिए पर्याप्त जमीन नहीं है। क्षेत्र में पार्किंग बड़ा संकट है। सत्यसार्इं से बॉम्बे हॉस्पिटल के बीच की रोड की आवाजाही प्रभावित होती है। जाम लगता है। लोग परेशान होते हैं। सामने सत्यसार्इं और गुजराती जैसे स्कूल हैं। सामाजिक संस्थाओं के शैक्षणिक संस्थान और हॉस्टल है। पिछली बार शोर के कारण बॉम्बे हॉस्पिटल के मरीजों को भी दिक्कत आई थी। इसीलिए मैदान बदलना पड़ा।

वहां फायदे..

प्राइम सिटी के पास 13 एकड़ पर्याप्त जमीन है। आसपास खाली जमीन है। एमआर-9 जैसी रोड है जहां ज्यादा वाहनों का दबाव नहीं है। आसपास न कोई शैक्षणिक परिसर। न ही अस्पताल।

यह है दिक्कतें..

शैक्षणिक : तकरीबन 4.62 लाख वर्गफीट में फैले गुजराती समाज के परिसर में एसकेआरपी गुजराती हॉम्योपैथिक कॉलेज एंड रिसर्च सेंटर, आरजीपी गुजराती प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट, एसजेएचएस गुजराती इनोवेटिव कॉलेज आॅफ कॉमर्स एंड सांइस, एनएमटी गुजराती कॉलेज आॅफ फॉर्मेसी और एएमएन गुजराती इंग्लीश मिडियम स्कूल जैसी शैक्षणिक संस्थाएं हैं जहां तीन हजार से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं। इनके बीच 1.70 लाख वर्गफीट (4 एकड़) का मैदान देने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होगी।

खेलकूद : तकरीबन चार एकड़ जमीन पर किके्रट, फुटबॉल, टेनिस ग्राउंड हैं। जहां मध्यावकाश के दौरान बच्चे खेलते है। आयोजन पांच दिन का है लेकिन शामियाना तानने और निकालने के नाम पर भास्कर समूह 25 दिन मैदान में ही डटा रहेगा। इन 25 दिनों में चौतरफा सुरक्षित परिसर छोड़कर बच्चे कहां और कैसे खेलेंगे।

पार्किंग : तकरीबन चार एकड़ जमीन पर फैले इस मैदान में 100 से ज्यादा बसें, शिक्षकों के वाहन और बच्चो के दोपहिया वाहन पार्क होते हैं। 25 दिनों में यह वाहन कहां जाएंगे? इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

यातायात : बेतरतीब पार्किंग से बीआरटीएस और रिंग रोड के बीच की लिंक रोड प्रभावित होगी। यह रोड विजयनगर, स्कीम-54, 74 और 78 को महालक्ष्मीनगर, चिकित्सकनगर, स्कीम-94, सार्इंविहार कॉलोनी, क्लासिक पुर्णिमा जैसी 20 से ज्यादा वैध-अवैध कॉलोनियों को जोड़ता है। यातायात विभाग भास्कर को अनुमति देने से पहले यदि सड़क पर वाहनों का दबाव जांच ले तो पता चल जाएगा कि यहां कितना लोड है।

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स्वास्थ्य : गुजराती समाज और बॉम्बे हॉस्पिटल ‘जहां ज्यादातर क्रिटिकल केस आते हैं’, के बीच डॉ. सुनील जैन का टोटल हॉस्पिटल, गोल्ड जिम, महेश दृष्टिहीन कल्याण केंद्र व अपाहिजों से जुड़ी अन्य संस्थाएं और उनके परिसर हैं। इनमें से कुछ में हॉस्टल व्यवस्था भी है। एक लाख वॉट के साउंड इनकी सेहत भी बिगाड़ेगा। सामने बीसीएम हाईट्स और शेखर प्लेनेट जैसी मल्टियां हैं जहां कई आईएएस, आईपीएस और आईआरएस रहते हैं। वे भी प्रभावित होंगे।

दबंग दुनिया अखबार, इंदौर में विनोद शर्मा की प्रकाशित रिपोर्ट का संपादित अंश.

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