श्री यशवंत जी, जय जगत, आपकी जानकारी के लिए यह पत्र भेज रहा हूँ. मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा विभाग ने वर्ष २००९ में प्राध्यापकों की सीधी भर्ती का विज्ञापन प्रकाशित किया था. उसमे यूजीसी के अनुसार शैक्षणिक योग्यता निर्धारित की गयी थी. स्नातक/स्नातकोत्तर स्तर की कक्षाओं में दस वर्ष अध्यापन अनुभव को भी मान्य किया था. इस विज्ञापन के बाद मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग ने ८ अगस्त २०११ को चयन से से सम्बंधित शुद्धि पत्र प्रकाशित किया. जिसमें अनुभव के सन्दर्भ में शासन के २७ अक्टूबर २००९ और २९ अप्रैल २०११ के पत्र का हवाला देते हुए यह लिखा है कि स्थाई/अस्थाई रूप से शासकीय महाविद्यालय एवं अनुदान प्राप्त स्नातक/स्नातकोत्तर महाविद्यालयों में किये गए अध्यापन कार्य को मान्य किया गया है.
वहीं इस पत्र के बिंदु क्रमांक २ में शासकीय एवं अनुदान प्राप्त महाविद्यालयों/विश्वविद्यालयों में कार्यरत संविदा, अतिथि विद्वान् तथा पार्ट टाईम के अनुभव को भी मान्य किया गया है. इसका कारण बताते हुए लिखा गया है कि इनका अभिलेख संधारित होता है तथा इसका सत्यापन किया जा सकता है. इसी पत्र के बिंदु क्रमांक दो में लिखा गया है कि गैर अनुदान प्राप्त अशासकीय संस्थाओं में कार्यरत संविदा, अतिथि विद्वान् तथा पार्ट टाईम शिक्षकों का अनुभव मान्य नहीं होगा. इसका कारण बताते हुए लिखा गया है कि गैर अनुदान प्राप्त अशासकीय संस्थाओं में अभिलेख सत्यापन में कठिनाई होती है.
इस नियम के चलते प्रदेश के गैर अनुदान प्राप्त अशासकीय महाविद्यालयों में कार्यरत अनेक वरिष्ठ प्राध्यापक साक्षात्कार से वंचित कर दिए गए हैं. इस भेदभाव के कारण जिन प्राध्यापकों का चयन विश्वविद्यालय द्वारा कालेज कोड २८ में किया गया है, वे भी अपात्र घोषित हो गए हैं. जबकि इन कालेजों में अध्यापन करने वाले प्राध्यापकों का चयन विश्वविद्यालय द्वारा ही किया जाता है. जिनका नाम विश्वविद्यालय की वरिष्ठता सूची में भी सम्मिलित किया गया है. विश्वविद्यालय इन प्राध्यापकों की हरेक स्तर पर सेवाएं लेता है. ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि सिर्फ अभिलेख सत्यापन के कारण योग्य उमीदवारों को साक्षात्कार के अधिकार से वंचित करना कहाँ तक न्याय सांगत है?
मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग ने साक्षात्कार के लिए अमान्य संबंधी जो पत्र भेजे है, उसमे भी नए निर्देशों का उल्लेख नहीं है. विश्वविद्यालय कालेज का निरिक्षण कर इन कालेजों को स्थाई संबद्धता प्रदान कर रहा है. लोक सेवा आयोग के इस शुद्धि पत्र के अनुसार तो इन कालेजों में कार्यरत प्राध्यापकों का अनुभव शून्य हो जाता है. यूजीसी के नियमों को बला-ये-ताक पर रख कर नियुक्तियां की गयी है. गैर अनुदान प्राप्त निजी कालेजों के प्राध्यापकों के अनुभव को अमान्य कर मध्यप्रदेश उच्च शिक्षा विभाग ने प्रदेश में संचालित होने वाले कालेजों की वैधता पर प्रश्न चिह्न लगा दिया है. सरकार की भेदभाव पूर्ण नीति पर आकर्षित करें.
धन्यवाद
पुष्पेंद्र पाण्डेय
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