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सुख-दुख...

माखनलाल भोपाल में ‘न्‍यू मीडिया’ पर व्‍याख्‍यान में कमल शर्मा ने क्या-क्या बताया-सुनाया, यहां पढ़ें

: वेब पत्रकारिता- ऊंचाईयों की तो अभी शुरुआत भर : आईआईएमसी से पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद 1988 में जब मैंने अपने कैरियर की शुरुआत की थी तब बिजनेस जर्नलिज्‍म से जुड़ने का फैसला किया था। उस समय अनेक दिग्‍गज पत्रकारों ने मेरे इस विचार को सही न ठहराते हुए राजनीतिक पत्रकारिता में अपना कैरियर बनाने की सलाह दी थी। लेकिन, मेरा यह मानना था कि देश में आर्थिक प्रगति का चक्र जब तेज गति से दौड़ना शुरु करेगा, वह समय बिजनेस पत्रकारिता का होगा एवं उस समय तक अपने को तैयार कर चुके बिजनेस पत्रकारों की अहमियत बढ़ेगी।

: वेब पत्रकारिता- ऊंचाईयों की तो अभी शुरुआत भर : आईआईएमसी से पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद 1988 में जब मैंने अपने कैरियर की शुरुआत की थी तब बिजनेस जर्नलिज्‍म से जुड़ने का फैसला किया था। उस समय अनेक दिग्‍गज पत्रकारों ने मेरे इस विचार को सही न ठहराते हुए राजनीतिक पत्रकारिता में अपना कैरियर बनाने की सलाह दी थी। लेकिन, मेरा यह मानना था कि देश में आर्थिक प्रगति का चक्र जब तेज गति से दौड़ना शुरु करेगा, वह समय बिजनेस पत्रकारिता का होगा एवं उस समय तक अपने को तैयार कर चुके बिजनेस पत्रकारों की अहमियत बढ़ेगी।

अपने निर्णय पर दृढ़ रहते हुए मैंने सभी सीनियर की सलाह को न मानते हुए अपना कैरियर बिजनेस पत्रकार के रुप में ही बनाने का फैसला किया। यद्यपि, उन दिनों अखबारों में बिजनेस खबरें काफी कम हुआ करती थी एवं शेयर बाजार और कृषि बाजारों के भाव ही अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित होते थे। लेकिन, जून 1991 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी और इसकी कमान पी वी नरसिम्‍हा राव ने संभाली।

वित्त मंत्री मनमोहन सिंह बने। इस सरकार ने देश में आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। इन सुधारों का कितना अनुकुल असर पड़ा और ये कितने प्रतिकूल रहे, मैं इसकी तह में इस समय नहीं जाना चाहता लेकिन इस सरकार के आने के साथ देश भर के अखबारों में बिजनेस खबरें पहले पेज पर आने लगी एवं राजनीतिक खबरों की अहमियत धीरे धीरे कम होने लगी। टीवी चैनलों ने भी बिजनेस खबरों के बुलेटिन शुरु किए एवं आम जन भी आर्थिक आंकडों की बातें करने लगा। मीडिया घरानों में बिजनेस पत्रकारों की तेजी से मांग बढ़ी एवं वेतन भी अन्‍य विद्या जानने वाले पत्रकारों से ज्‍यादा मिलने लगा।

इसी तरह दूसरा फैसला  मैंने अपने कैरियर में  वर्ष 1997 में लिया एवं भारत में आए नए मीडिया जिसे वेब मीडिया के नाम से पुकारा गया, में जुड़ने का मौका मिला। उस समय तीन वेबसाइट वेब दुनिया, रीडिफ और इंडियाइंफो ने खबरों को इंटरनेट के माध्‍यम से जनता तक पहुंचाने की शुरुआत की। मैं इंडियाइंफो डॉट कॉम से कंटेंट मैनेजर के रुप में जुड़ा। आपके विश्‍वविद्यालय के जनसंचार विभाग के विभागाध्‍यक्ष श्री संजय द्धिवेदी भी इंडियाइंफो डॉट कॉम की संपादकीय टीम में थे। उस समय भी अनेक मित्रों ने कहा कि भारत में इंटरनेट कनेक्‍शन गिने चुने हैं और काफी कम लोगों के पास ही कंप्‍यूटर है।

ऊपर से यह माध्‍यम बिल्‍कुल नया है, अखबार और टीवी चैनलों के रहते इसकी सफलता बेहद मुश्किल जान पड़ती है। क्‍यों इस तरह की रिस्‍क लेना चाहते हो। लेकिन, मेरा यह मानना था कि यही रास्‍ता ऐसा है जो समाचारों और विचारों को आने वाले समय में समूचे विश्‍व तक पहुंचा सकता है। यद्यपि, वर्ष 2000 की शुरुआत में डॉट कॉम बबल फटा एवं मीडिया के इस नए चेहरे का रंग बदरंग हुआ। लेकिन, अनेक साहसी इसकी अहमियत को पहचानते थे और कठिनाइयों से उबरते हुए फिर से इसने अपनी जगह बनाई एवं आज हम जीवन में इस मीडिया के बढ़े महत्‍व को नजरअंदाज नहीं कर सकते। इस मीडिया के महत्‍व को हमें जानने के लिए कुछ पहलूओं को देखना होगा।

लागत

वेब मीडिया जिसे हम न्‍यू मीडिया भी कहते हैं, प्रिंट और इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया का सबसे उम्‍दा विकल्‍प है। एक टीवी चैनल की शुरुआत के लिए लाइसेंस फीस, नेटवर्थ, परफोरमेंस बैंक गारंटी, अपलिंकिंग शुल्‍क, हर एक भाषा के लिए अलग से शुल्‍क, मशीनरी, स्‍टूडियो, स्‍टॉफ का खर्चा, वितरण एवं संचालन के अन्‍य खर्च इतनी बड़ी राशि होती है जिसे वहन करना हर किसी के बूते की बात नहीं है। ऐसा ही खर्च एक रेडियो स्‍टेशन स्‍थापित करने पर भी आता है। अखबार की बात करें तो वहां छोटे या स्‍थानीय स्‍तर पर किए गए प्रयास में पैसा कुछ कम लगता है लेकिन राष्‍ट्रीय स्‍तर या राज्‍य स्‍तर पर की गई शुरुआत काफी महंगी बैठती है। मीडिया के इन माध्‍यमों में बड़ी धनराशि खर्च करने के बाद भी यह तय नहीं है कि पहुंच जन जन तक हो, अथवा सीमांत और दूरस्‍थ क्षेत्रों तक पहुंच बन पाए। जबकि, न्‍यू मीडिया में ऐसा नहीं है। इस क्षेत्र में लागत कुछ हजार ही रहती है। अपनी इच्‍छा के नाम के साथ मामूली फीस अदाकर सिर्फ एक कंप्‍यूटर, कैमरा, स्‍कैनर, इंटरनेट कनेक्‍शन और सर्वर स्‍पेस के साथ इसकी शुरुआत कर सकते हैं। लंबे चौड़े आफिस स्‍पेस की कतई जरुरत नहीं है। लेकिन आपकी पहुंच समूची दुनिया तक होगी, इसकी गारंटी है जो अन्‍य मीडिया माध्‍यमों के साथ नहीं है।

बढ़ती अहमियत

मौजूदा स्थिति को देखें तो दुनिया के हरेक मीडिया हाउस ने यह मान  लिया है कि बगैर वेब में  गए उनका उद्धार नहीं हैं। हमारे देश में इसका जिस तेज गति से विस्‍तार हो रहा है उसे देखते हुए अगले दो से तीन साल बाद किसी भी अखबार, टीवी चैनल का मुख्‍य चेहरा यही होगा। मैं दो साल पहले एक राष्‍ट्रीय अखबार के संपादकीय हैड से मिला था। उनका कहना था कि हम अब केवल प्रिंट माध्‍यम का काम जानने वालों को नौकरी नहीं दे रहे। अब हम न्‍यूज लिखने की कला के अलावा कैमरे का उपयोग करने में निपुण और वेब माध्‍यम की आवश्‍यकताओं को समझने वाले मीडिया कर्मियों की ही भर्ती कर रहे हैं। हमारा लक्ष्‍य वर्ष 2015 में अखबार के बजाय वेब के जरिये लोगों तक पहुंचना है। बदले समय और बदली रुचि में हरेक अखबार, टीवी चैनल की यह जरुरत बन गई है कि सारी खबरों को टैक्‍सट के अलावा ऑडियो-वीडियो फार्म में वेब पर लाई जाए। बदले माहौल में खासकर युवाओं के पास कतई समय नहीं है कि वे अखबार को बैठकर पढ़े या टीवी के सामने सभी कामधाम छोड़कर न्‍यूज जानने के लिए बैठ रहे और अपनी पसंद की खबरों के आने तक इंतजार करें। वर्ष 2020 तक देश की 64 फीसदी जनसंख्‍या कामकाजी वर्ग की होगी जिसका मकसद कम समय में तेजी से सूचनाएं जानना होगा। वेब में आप जब जी चाहे और जो पसंदीदा खबर हो उसे देख सकते हैं जबकि टीवी में एक खबर के बाद ही दूसरी खबर को आने में वक्‍त लगता है और इस बीच विज्ञापन आ जाए तो अगली खबर में काफी देरी हो जाती है।

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मोबाइल से आई जोरदार क्रांति

भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में सबसे बड़ी क्रांति एटीएम  (ऑटोमैटिक टेलर मशीन) मशीन के आने से हुई एवं बैंकिंग जगत को जो चेहरा बदला उसकी कल्‍पना इससे पहले शायद ही किसी ने की होगी जब हर आदमी अपने वित्तीय लेनदेन के लिए बैंक की शाखा खुलने का इंतजार करता रहता था। ठीक इसी तरह, न्‍यू मीडिया में जोरदार क्रांति का जनक मोबाइल को माना जा सकता है। मोबाइल खासकर स्‍मार्ट फोन के आने के बाद लोगों की आदतों में तेजी से बदलाव आया और इंटरनेट कनेक्‍शन के माध्‍यम से वे चलते फिरते, आफिस में काम करते अथवा कहीं भी, कभी भी समाचार जान सकते हैं, अपने मनपसंदीदा कार्यक्रम को देख या सुन सकते हैं। इस सच से कोई इनकार नहीं कर सकता कि शहरों, कस्‍बों और गांवों तक मोबाइल ने अपनी पहुंच बना ली है। सस्‍ते स्‍मार्ट फोन आपको आबादी के बड़े हिस्‍से के हाथों में देखने को मिल जाएंगे। यद्यपि, हमारे देश में बिजली एक बड़ी समस्‍या है जिसकी वजह से हर समय टीवी देख पाने में दिक्‍कत आती है। आजादी के इतने साल बीत जाने के बावजूद खराब परिवहन व्‍यवस्‍था की वजह से कई कई गांवों तक अखबार नहीं पहुंच पाए हैं लेकिन मोबाइल, टेबलेट और नेटबुक ने अपनी पहुंच बनाकर लोगों को खबरों के संसार से जोड़ दिया है। इस तरह, न्‍यू मीडिया प्रिंट और इलेक्‍ट्रॉनिक पर भारी पड़ता जा रहा है।

पहुंच और संवाद

ए‍क अखबार, टीवी चैनल या रेडियो स्‍टेशन की पहुंच की एक सीमा होती है और वह क्षेत्र विशेष में ही अपनी पहुंच बना पाते हैं जबकि वेब मीडिया में ऐसा नहीं है। आप दुनिया के किसी भी कोने में रहे लेकिन मनचाही सूचनाओं को वहीं पा सकते हैं। मसलन आप मध्‍य प्रदेश के रहने वाले हैं लेकिन आप केरल में हैं तो संभव है आपको आपके क्षेत्र की सूचनाएं वहां किसी अखबार या टीवी चैनल पर न मिले लेकिन वेब मीडिया ने इस समस्‍या को दूर कर दिया है। अपने देश से बाहर रहते हुए भी आप वेब मीडिया की बदौलत अपने को उन सभी खबरों से अपडेट रख सकते हैं जो आप चाहते हैं। अनेक लोगों को यह भ्रम है कि जिस तरह अखबार खरीदने या टीवी चैनल को देखने के लिए शुल्‍क अदा करना होता है वैसा वेब में नहीं है। लेकिन मैं आपको यह बता दूं कि वेब मीडिया में आपको हर सूचना मुफ्त्‍ा में नहीं मिलती। अनेक वेब साइटस अपने दृशकों से रिसर्च रिपोर्ट, अहम आंकड़े उपलब्‍ध कराने के बदले शुल्‍क वसूल करती हैं।

अखबार तक आम आदमी को बात पहुंचाने के लिए पत्र लिखने होते हैं या ईमेल करने होते हैं जिसके सही समय पर प्रकाशन की कोई गारंटी नहीं है। टीवी चैनल तो केवल अपनी बात ही कहते हैं वहां अपने दृशकों से सीधे फीडबैक की कोई सुविधा नहीं है जबकि वेब मीडिया में आप किसी समाचार को पढ़ने या कार्यक्रम को देखने के बाद तत्‍काल अपनी टिप्‍पणी दे सकते हैं और वह उसी समय प्रकाशित हो जाती है। यह माध्‍यम सीधे अपने दृशकों से संवाद स्‍थापित करता है जिसकी वजह से दृशक स्‍वयं रिपोर्टर की भूमिका निभा सकता है। दृशक अपने आसपास घटने वाली घटनाओं की जानकारी तत्‍काल वीडियो, ऑडियो या टैक्‍सट के माध्‍यम से संपादक या उसके सहयोगियों को दे सकता है एवं समूची दुनिया इसे जान सकती है।

स्‍पेस ही स्‍पेस

वेब मीडिया में स्‍पेस की कोई समस्‍या नहीं है।  जबकि, एक अखबार जो आठ से बीस-चौबीस पेज का निकलता है, हरेक तरह की न्‍यूज और व्‍यूज के लिए निश्चित जगह रखता है। इस वजह से अनेक समाचार-विचार छपने से वंचित रह जाते हैं। टीवी चैनल में तो यह समस्‍या इससे भी ज्‍यादा बड़ी है। वहां हम देखें तो एक चैनल कई कई घंटे तक सिर्फ पांच से छह खबरों में खेलते रहते हैं। इन खबरों का भी पूरा कवरेज नहीं होता या किसी मसले का गहराई से विश्‍लेषण नहीं किया जाता। एक समाचार को कुछ सैकंड से लेकर दो मिनट में निपटा दिया जाता है। जबकि, वेब में स्‍पेस की कोई दिक्‍कत नहीं होती। यहां दो लाइन से लेकर हजारों लाइन तक की खबरें जारी की जा सकती है। इन समाचारों को अधिक आकर्षित बनाने एवं प्रामाणिकता के लिए फोटो एवं वीडियो का साथ ही उपयोग किया जा सकता है। आप एक टीवी चैनल की तुलना में कहीं तेज गति से यहां ब्रेकिंग न्‍यूज दे सकते हैं। टीवी चैनल एक रिपोर्ट को शूट कर जब तक इसका प्रसारण करता है आप वेब मीडिया में उससे कई गुना तेजी से पूरी खबर को समूची दुनिया के सामने पेश कर बाजी मार सकते हैं। कई बड़ी घटनाओं और दुर्घटनाओं की सूचना जितनी तेजी से इस माध्‍यम से दी जा सकती है, वह मीडिया के अन्‍य किसी रुप में संभव नहीं है।

खबरों के अलावा भी बहुत कुछ

पर्यटन, होटल बुकिंग, रेल-हवाई टिकट, बीमा, कर्ज, बैंकिंग सेवाएं, शॉपिंग, कारोबार, जॉब, शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, मनोरंजन सुविधाएं पाने के अलावा और तो और शादी-विवाह तक की झंझट से मुक्ति दिलाने में वेब मीडिया ने अहम भूमिका निभाई है। असल में ग्‍लोबलाइजेशन का अहम औजार वेब है जिसकी वजह से हम न केवल अपनी दैनिक जरुरतों को पूरा कर पा रहे हैं बल्कि हर किसी को जानने, समझने के लिए हजारों किलोमीटर की यात्रा और खर्च से बचकर मिनटों में यह कार्य निपटा पा रहे हैं।

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दिक्‍कतें

वेब मीडिया के विकास में  अभी भी कुछ बाधाएं हैं। सबसे बड़ी दिक्‍कत इंटरनेट की दूरस्‍थ इलाकों में पहुंच न बन पाना, इंटरनेट की स्‍पीड का धीमा होना और बिजली की कमी है। साथ ही, कंप्‍यूटर, लैपटॉप या नेटबुक के दाम अभी भी आम आदमी की पहुंच में नहीं है। आम आदमी पहले अपनी जरुरत घर को समझता है एवं वहां के खर्चों से बचने के बाद वह कंप्‍यूटर, लैपटॉप या बेहतर स्‍मार्ट फोन लेने की प्‍लानिंग करता है। अब बात हो रही 4जी की लेकिन असलियत यह है कि देश में 2जी और 3जी का अमल भी ढंग से नहीं हुआ है। यदि यह अमल ईमानदारी और तत्‍परता से होता तो विकास की गति बेहतर रहती। इसके अलावा, वेब में मिल रही सूचनाओं की प्रामाणिकता पर भी सवाल उठते हैं। ऐसी कई वेबसाइटस हैं जिनमें पुरानी सूचनाएं ही उपलब्‍ध हैं और इन्‍हें किसी न किसी कमी की वजह से अपडेट नहीं किया गया। या यह भी सवाल उठ जाता है कि जो लिख रहा है वह उस लायक योग्‍यता का है भी या नहीं। ऐसे में प्रामाणिकता को लेकर काफी मेहनत की जरुरत है। कई बार सही सामग्री खोजने में भी दिक्‍कत का सामना करना पड़ता है जिसे आसान बनाना होगा और ऐसे ऐसे नए सर्च इंजन विकसित करने होंगे जो एक विषय विशेष पर भरपूर सामग्री से भरे हों।

आसान आय

हम यदि आय की बात करें तो वेब मीडिया में इसकी स्थिति दिन प्रतिदिन सुधर रही है। सरकारी और निजी कंपनियां गांव गांव तक अपनी पहुंच बनाने के लिए वेब विज्ञापन का सहारा ले रही हैं। प्रिंट और टीवी चैनल में विज्ञापन की ऊंची दरें और सीमित पहुंच ने विज्ञापनदाताओं का नजरिया बदलना शुरु किया है। प्रिंट एवं टीवी चैनल में विज्ञापन लाने के लिए भी एक पूरी टीम रखनी होती है लेकिन वेब में एक व्‍यक्ति खुद ही विज्ञापन के लिए बगैर कहीं गए सिर्फ एक ईमेल के जरिए अप्रोच कर सकता है। गुगल, जेडो, मैनहटन, कोमली सहित अनेक ऐसी एजेंसियां हैं जो वेबसाइटों के लिए विज्ञापन जारी करती हैं एवं उनके भुगतान सीधे बैंक खातों में करती हैं। केंद्र सरकार और अनेक राज्‍य सरकारें भी अब वेबसाइटों को विज्ञापन दे रही हैं जिनसे इनके संचालकों को अच्‍छी खासी आय हो रही है। इसी तरह, यूटयूब चैनल के माध्‍यम से आप अपने वीडियो पर रेवेन्‍यू पा सकते हैं। इंटरनेट एडवरटाइजिंग ब्‍यूरो के मुताबिक वर्ष 2011 में इंटरनेट विज्ञापन बाजार का आकार 72.18 अरब डॉलर था जो वर्ष 2013 में 31.5 फीसदी बढ़कर 94.97 अरब डॉलर पहुंच जाने की उम्‍मीद है। अखबार में समाचार और विज्ञापन का एक अनुपात है जिससे ज्‍यादा विज्ञापन लेने पर पाठकों की संख्‍या कम होने का डर रहता है जबकि टीवी चैनल में नियामक संस्‍था ट्राई ने यह आदेश जारी किया है कि कोई भी टीवी चैनल आने वाले अक्‍टूबर महीने से एक घंटे में 12 मिनट से ज्‍यादा के विज्ञापन नहीं दिखा सकेगा। जबकि वेब मीडिया में इस तरह की कोई सीमा नहीं है। यहां आपकी मेहनत और नए आइडिया आपको मनचाही आय दिला सकते हैं।

आपको मैं एक लघु कथा  यहां बताना चाहता हूं। एक आभूषण निर्माता का बेटा रोज नए नए आभूषण बनाकर  अपने पिता को दिखाता था लेकिन  उसके पिता का हर बार यही  जवाब होता था कि इसे और बेहतर बनाया जा सकता था जैसा कि उसके दोस्‍त का बेटा बनाता है। एक दिन उस लड़के ने पिता को एक आभूषण दिखाया और कहा कि यह उनके दोस्‍त के बेटे का बनाया हुआ है। पिता ने कहा इसे कहते हैं आभूषण। तब बेटे ने कहा कि पिताजी यह तो मैंने ही बनाया था। पिता ने मायूस होकर कहा..मेरे हर बार टोकने का अर्थ यह था कि मैं चाहता था तुम दुनिया के सबसे बेहतरीन कलाकार बनो, तुम्‍हारी कला में और निखार आए लेकिन तुम अब वह मेहनत नहीं कर पाओगे जो करनी चाहिए थी।

आप चाहे कंटेट राइटर, रिपोर्टर, एडिटर, ग्राफिक्‍स निर्माता, मल्‍टी मीडिया पर्सन, विज्ञापन लेखक सहित किसी भी रुप में अपना कैरियर चुने लेकिन जिस भी क्षेत्र में जाना चाहते हैं, रोज जमकर अभ्‍यास करें। अपनी भूलों को सुधारें, नए आइडिया खोजें, उन पर काम करें, कम बोलें, अधिक सुनें, आम जन का आदर करें। आपको शानदार कैरियर बनाने से कोई नहीं रोक पाएगा।

((आईआईएमसी, नई दिल्‍ली के पूर्व छात्र रहे कमल शर्मा काफी समय से मुंबई में एक मीडिया संस्‍थान में कार्यरत हैं))

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