Yashwant Singh : मिडिल क्लास को अपने मुद्दे, अपने सुख-दुख इतने प्रामिनेंट, इतने जरूरी, इतने महत्वपूर्ण लगते हैं कि उसे देश में दूसरा कोई नहीं दिखता.. न भूमिहीन मजदूर, न किसान, न गांव से शहर पलायन, न आदिवासी, न जंगल, न जमीन… लगे रहो चिरकुटों अपने सेफजोन में बैठकर मानसिक मैथुन करने-कराने में…
Yashwant Singh : ये जो मीडिया जनित धुन हिस्टीरिया है इसी पर थिरकता है मिडिल क्लास…. इसी पर रोता, कलपता, हंसता, लोटता, चिल्लाता, भनभनाता है मिडिल क्लास.. और, इसी बेहूदे, जड़, जंग लगे मिडिल क्लास को पटाने-मनाने-समझाने में लगा रहता है करप्ट सिस्टम… नेता, मंत्री, संतरी, अफसर, पत्रकार, जज, व्यवसायी, धंधेबाज, दलाल, ब्रोकर आदि इत्यादि प्रभु लोग वैसे तो अपने-अपने और एक-दूसरे के एलीट-सुंदर इलाके में खूब मिल-जुलकर काम, नाम, इनाम, फेवर, विशेज, थैंक्यू आदि करते रहते हैं और अपनी तरफ आती मिडिल क्लास की आवाजों में निहित अन्याय को न्याय, दुख को सुख में तब्दील करने को तत्पर दिखते हैं.. लेकिन ये सब मिलाकर जब खुद को पूरा 'देश' समझ लेते हैं तो फिर काहे को कोई बलात्कारी फौजियो, यौन उत्पीड़क पुलिस अफसरों, खुदकुशी करते किसानों, पैसे कमाने शहर भागते भूमिहीनों, जाड़े में ठिठुरते गरीबों जैसी हाशिए की समस्याओं पर बोले, सोचे, लिखे, चिल्लाए… जब 'देश' खुश है तो बाकी बचा ही कौन है यहां.. जो बचे हैं, वो शायद सदियों से चली आ रही उस गुलाम परंपरा के प्रतिनिधि लोग हैं जिनकी नियति देशों, प्रभुओं, एलीटों, सिस्टमों, न्यायों आदि की सेवा टहल में बिना कुछ चूं बोले मर खप जाना है….
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.