मैंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ खण्डपीठ में जनहित याचिका संख्या 1949/2012 दायर किया है जो जीवित राजनीतिक व्यक्तियों द्वारा सरकारी खर्चे पर सरकारी जगह पर अपनी मूर्तियां लगाए जाने के सम्बन्ध में है. मैंने उच्च न्यायालय से यह निवेदन किया है कि वह केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार को निर्देशित करें कि भविष्य में किसी भी क्षेत्र से सम्बन्ध रखने वाले किसी भी जीवित व्यक्ति की मूर्तियां सरकारी धन पर सरकारी जगह पर नहीं लगाई जाएँ.
मैंने यह भी निवेदन किया है कि वर्तमान में इस तरह की जो भी मूर्तियां लगी हैं उन्हें उनकी पूरी प्रतिष्ठा का ध्यान रखते हुए सार्वजनिक स्थान से हटा कर उन व्यक्तियों के निजी स्थानों पर लगाने के निर्देश दिये जाएँ. साथ ही इस प्रकार से जीवित व्यक्तियों की मूर्तियां लगाए जाने के बारे में सम्बंधित व्यक्तियों से इसमें लगे सरकारी धन की वसूली भी की जाए. मैंने अपनी याचिका में यह कहा है कि इस प्रकार से जीवित व्यक्ति द्वारा सार्वजनिक जगह पर मूर्तियां लगाना समानता के अधिकार का उल्लंघन है और उस व्यक्ति को सरकारी धन पर एक ऊँचा स्थान प्रदान करता है. यह संविधान के अनुच्छेद 14 के विपरीत है.
मैंने कहा है कि यही कारण है कि चुनाव आयोग द्वारा 8 जनवरी 2012 को उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की मूर्तियों को ढंकने के आदेश देने पड़े थे. पुनः चुनाव आयोग ने अपने इस कदम को अपने प्रेसनोट 18 जनवरी 2012 के जरिये स्पष्ट करते हुए कहा था कि जीवित व्यक्ति की मूर्तियां उस व्यक्ति और उसकी पार्टी को गलत ढंग से लाभ पहुंचाते हैं और बराबरी की स्थिति के खिलाफ हैं. मैंने याचिका में यह कहा है कि जो बात चुनावों के दौरान लागू होती है, वह हर समय सही है. यह मुक़दमा कल जस्टिस उमानाथ सिंह और जस्टिस वी के दीक्षित की कोर्ट में सुना जाएगा.
डॉ. नूतन ठाकुर
कन्वेनर, नेशनल आरटीआई फोरम
लखनऊ