Zafar Irshad : मीडिया जगत में मुझे मार्ग दर्शन देने वाले उन सभी मतलब परस्त गुरुजनों को सादर प्रणाम…जिन्होंने अपने काम के लिए मेरा इस्तेमाल किया,और फिर दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका…उन गुरु जनों को विशेष प्रणाम,जिन्होंने हमारी राह में हमेशा रोड़े अटकाए, और आज भी खंजर लिए मुझे ढून्ढ रहे है…ताकि भविष्य में मैं उनकी राह का रोड़ा न बन सकूँ…ईश्वर ऐसे कलयुगी गुरु सबको दे..आमीन…
Jitendra Dixit : गुरू पूर्णिमा पर सहज ही विचार आया कि किसे याद करूं। सीखना जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। आज भी विद्यार्थी हूं। पत्रकारिता में हमेशा हर खबर को और बेहतर बनाने की गुंजाइश रहती है। एकाएक ध्यान आया मां का जिन्हें जिज्जी कहते थे। मां के साथ, वह मेरी पहली गुरू भी थीं। उन्होंने ही ककहरा सिखाया। शीशम की छड़ी से पीट-पीट कर पढ़ाया। उर्दू भी सिखाना चाहती थीं, पर सीख नहीं पाया। बचपन में सीतापुर का भरत मिलाप मेला देखने की जिद की। मां के लिए संभव न था कि वह गांव से मुझे शहर भेज पाती। खींझ कर उन्होंने कहा-क्यों सीतापुर जाने की रट लगा रखी है। एक दिन ऐसा जाएगा कि जिंदगी भर बाहर ही रहेगा। उनकी खींझ आशीर्वाद साबित हुई मेरे लिए। इंटर पास करने के बाद गांव से क्या निकला कि अब जाना ही नहीं होता। आज बहुत याद आ रही है मां की। पहली गुरू मां को सत्-सत् नमन, वंदन। उनकी स्मृति को प्रणाम।
कानपुर के पत्रकार जफर इरशाद और मेरठ के पत्रकार जितेंद्र दीक्षित के फेसबुक वॉल से.