सुप्रीम कोर्ट की दया का बदला सरकार सोनी सोरी से ले रही है. सोनी सोरी ने २७ जुलाई के अपने जेल से सुप्रीम कोर्ट के नाम भेजे गये पत्र में कहा है कि ‘आज जीवित हूं तो आपके आदेश की वजह से. आपने सही समय पर आदेश देकर मेरा दोबारा इलाज कराया. एम्स अस्पताल दिल्ली में इलाज के दौरान बहुत ही खुश थी कि मेरा इलाज इतने अच्छे से हो रहा है. पर जज साहब, आज उसकी कीमत चुकानी पड़ रही है. मुझ पर शर्मनाक अत्याचार प्रताड़ना की जा रही है. आपसे निवेदन है, मुझ पर दया कीजियेगा .. जज साहब इस वख्त मानसिक रूप से अत्यधिक पीड़ित हूं.
(१) मुझे नंगा कर के ज़मीन पर बिठाया जाता है
(२) भूख से पीड़ित किया जा रहा है
(३) मेरे अंगों को छूकर तलाशी किया जाता है ….
जज साहब छतीसगढ़ सरकार, पुलिस प्रशासन मेरे कपडे कब तक उतरवाते रहेंगे? मैं भी एक भारतीय आदिवासी महिला हूं. मुझेमें भी शर्म है. मुझे शर्म लगती है. मैं अपनी लज्जा को बचा नहीं पा रही हूं. शर्मनाक शब्द कह कर मेरी लज्जा पर आरोप लगाते हैं. जज साहब मुझ पर अत्याचार, ज़ुल्म में आज भी कमी नहीं है. आखिर मैंने ऐसा क्या गुनाह किया जो ज़ुल्म पर ज़ुल्म कर रहे हैं. जज साहब मैंने आप तक अपनी सच्चाई को बयान किया तो क्या गलत किया आज जो इतनी बड़ी बड़ी मानसिक रूप से प्रताड़ना दिया जा रहा है? क्या अपने ऊपर हुए ज़ुल्म अत्याचार के खिलाफ लड़ना अपराध है? क्या मुझे जीने का हक़ नहीं है? क्या जिन बच्चों को मैंने जन्म दिया उन्हें प्यार देने का अधिकार नहीं है?….
इस तरह के ज़ुल्म अत्याचार नक्सली समस्या उत्पन्न होने का स्रोत हैं …..
सोनी का यह पत्र हम सब के लिये एक चेतावनी है कि कैसे एक सरकार अपने खिलाफ कोर्ट के किसी फैसले का बदला जेल में बंद किसी पर ज़ुल्म कर के ले सकती है ! सरकार साफ़ धमकी दे रही है कि जाओ तुम कोर्ट ! ले आओ आदेश हमारे खिलाफ ! कितनी बार जाओगे कोर्ट ?
सोनी पर यह ज़ुल्म सोनी के अपने किसी अपराध के लिये नहीं किये जा रहे ! सोनी पर ये ज़ुल्म सामजिक कार्यकर्ताओं से उसके संबंधों के कारण किये जा रहे हैं ! सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा छत्तीसगढ़ सरकार के अपराधिक कारनामों को उजागर करने की सजा के रूप में सोनी पर ये अत्याचार किये जा रहे हैं ! सोनी सामाजिक कार्यकर्ताओं के किये की सजा भुगत रही है ! हम बाहर जितना बोलेंगे जेल में सोनी पर उतने ही ज़ुल्म बढते जायेंगे !
सोनी को थाने में पीटते समय और बिजली के झटके देते समय एसपी अंकित गर्ग सोनी से यही तो जिद कर रहा था कि सोनी एक झूठा कबूलनामा लिख कर दे दे जिसमें वो यह लिखे कि अरुंधती राय, स्वामी अग्निवेश, कविता श्रीवास्तव, नंदिनी सुंदर, हिमांशु कुमार, मनीष कुंजाम और उसका वकील सब नक्सली हैं ताकि इन सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं को एक झटके में जेल में डाला जा सके.
सरकार मानती है कि ये सामजिक कार्यकर्ता छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की ज़मीनों पर कंपनियों का कब्ज़ा नहीं होने दे रहे हैं, इसलिये एक बार अगर इन सामजिक कार्यकर्ताओं को झूठे मामलों में जेल में डाल दिया जाए तो छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर सरकारी फौजों के हमलों पर आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं बचेगा. फिर आराम से बस्तर की आदिवासियों की ज़मीने कंपनियों को बेच कर पैसा कमा सकेंगे.
कोई तो बचाओ इस लड़की को. संसद , सुप्रीम कोर्ट, टीवी और अखबारों के दफ्तर हमारे सामने हैं. और हमारे वख्त में ही एक जिंदा इंसान को तिल तिल कर हमें चिढा चिढा कर मारा जा रहा है. और सारा देश लोकतन्त्र का जश्न मनाते हुए ये सब देख रहा है.
शरीर के एक हिस्से की तकलीफ अगर दूसरे हिस्से को नहीं हो रही है तो ये शरीर के बीमार होने का लक्षण है. एक सभ्य समाज ऐसे थोड़े ही होते हैं. मैं इसे एक राष्ट्र कैसे मानूं? लगता है हमारा राष्ट्र दूसरा है और सोनी सोरी का दूसरा. नक्सलियों से लड़ कर अपने स्कूल पर फहराए गये काले झंडे को उतार कर तिरंगा फहराने वाली उस आदिवासी लड़की को जेल में नंगा किया जा रहा है और उसे नंगा करने वाले पन्द्रह अगस्त को हमें लोकतन्त्र का उपदेश देंगे.
ये है सोनी सोरी का पत्र….