Kanwal Bharti : इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जातीय रैलियों पर प्रतिबन्ध लगाये जाने के विरुद्ध आज बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा दिया गया बयान काबिलेतारीफ है। देर से ही सही, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से यह सही मांग की है कि वह आरएसएस, विश्वहिन्दू परिषद और बजरंग दल पर प्रतिबन्ध लगाये, क्योंकि ये संगठन देश में धर्मनिरपेक्षता की जड़ों पर प्रहार कर रहे हैं, जो भारतीय संविधान के विरुद्ध है। इसमें सन्देह नहीं कि ये ही वे संगठन हैं, जो देश को बांटने का आपराधिक कृत्य कर रहे हैं और इन्हीं संगठनों का धर्मोन्माद देश में जातीय और साम्प्रदायिक दंगे भड़काता है।
मायावती जी ने कांग्रेस और भाजपा पर अयोध्या के राम मन्दिर मुद्दे पर राजनीति खेलने का आरोप भी सही ही लगाया है। हालांकि यह भी सच है कि इन्हीं मायावती ने भाजपा से दो बार गठबन्धन किया था और नरेन्द्र मोदी के लिये वह गुजरात में वोट मांगने भी गयी थीं। यह भी रिकार्डेड है कि बसपा संस्थापक कांशीराम ने भाजपा को ‘सेकुलर’ पार्टी घोषित किया था। किन्तु आज यदि मायावती के विचार सचमुच बदल गये हैं, तो इसका स्वागत तो किया ही जाना चाहिए।
क्या सुप्रीम कोर्ट मायावती के बयान का नोटिस लेगा? कोर्ट इस तरह के बयानों का शायद ही कभी स्वतः संज्ञान लेता हो। इसके लिये जनहित याचिका दाखिल करने की जरूरत है। क्या बसपा समर्थक कोई वकील सुप्रीम कोर्ट में आरएसएस, विश्वहिन्दू परिषद और बजरंग दल पर प्रतिबन्ध लगाये जाने के सम्बन्ध में जनहित याचिका दाखिल करने का साहस करेगा?
दलित चिंतक और साहित्यकार कंवल भारती के फेसबुक वॉल से.