पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपराध की बीट पर एक्सपर्ट के तौर पर काम करने वाले पत्रकार नितिन सबरंगी का कहना है कि जो तथ्य प्रकाश में आ रहे हैं उनके मुताबिक यशवंत जी की गिरफ्तारी ओर हिरासत दोनों में ही मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है। तथ्य पुलिस की दबावपूर्ण कार्यप्रणाली को उजागर कर रहे हैं। वैसे भी मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में यूपी पुलिस को अव्वल दर्जा हासिल है।
आंकड़े गवाह हैं कि मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में अकेले यूपी से ही आधे से अधिक शिकायत प्रतिवर्ष मिलती हैं। सबसे ज्यादा उल्लंघन थानेदार करते हैं। किसी भी मामले में उनकी जवाबदेही बाद में होती है पहले उनका राज चलता है। पुलिस यशवंत जी जैसी गिरफ्तारी की सक्रियता गंभीर अपराधों के मामले में भी दिखा दे, तो यकीनन क्राइम का ग्राफ काफी नीचे आ जायेगा। एक दर्जन से ज्यादा हथियारबंद पुलिसकर्मी दो वाहनों में सवार होकर अकेले व्यक्ति को इस अंदाज में घेरते हैं जैसे वह कुख्यात डकैत हो। यह पुलिस की छवि को भी धक्का है।
तय है कि मामला मानवाधिकार आयोग में गया, तो जवाबदेही मुश्किल होगी। पुलिस से कार्यशैली में सेवा भावना एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। परन्तु हकीकत भी सभी जानते हैं। आम आदमी थाने में जाने से डरता है जाहिर है सबकुछ ठीक नहीं है। सवाल यह है है कि हत्या, लूट, डकैती, अपहरण व बलात्कार जैसे मामलों में भी गिरफ्तारी की ऐसी तत्परता क्यों नहीं दिखाती? इनामी अपराधी क्यों बचे रहते हैं? मीडियाजगत में आपसी खींचतान में पुलिस फायदा ही उठाती है। ऐसी प्रवृत्ति का बढ़ना भविष्य में मीडिया के लिये घातक ही साबित होगा।
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