आज बहुत दिनों बाद भड़ास पर लिख रहा हूँ, वह भी तब जब मित्र यशवंत इसे देख और पढ़ नहीं रहे हैं. अभी वे जेल में हैं और वर्तमान की स्थितियों को देख कर निश्चित रूप से नहीं जानता कि कब तक उनकी जमानत होगी और वे कब बाहर आयेंगे. स्वाभाविक है कि उनकी गिरफ़्तारी उसी पुलिस विभाग द्वारा की गयी है जिसका मैं स्वयं भी सदस्य हूँ, पर इसके कोई खास मायने नहीं हैं. पहली बात कि मैं कोई पूरा पुलिस विभाग नहीं हूँ, मैं इसका मात्र एक छोटा और अदना सा अंग हूँ.
दूसरी बात यह कि पुलिस विभाग या पत्रकारिता में होना अपने आप में मतलब तो रखते हैं पर यह भी सच है कि आपसी रिश्तों के बीच कुछ दिनों बाद यह अपना अर्थ काफी हद तक खो बैठते हैं. यह सही है कि मेरी और यशवंत भाई की मुलाकात और परिचय उनके एक पत्रकार के रूप में भड़ास के संचालक के रूप में हुई थी और शुरू-शुरू में मैं भी उनके लिए मात्र एक पुलिस वाला था, उत्तर प्रदेश का एक आईपीएस अफसर. लेकिन समय के साथ पता भी नहीं चला और मैं उसका मित्र और फिर उसके परिवार का सदस्य बन गया. आज यशवंत जेल में हों तब भी, जेल के बाहर हों तब भी, सड़क पर हों तब भी, आसमान में हों तब भी, सफल हों, असफल हों, हर समय मेरे मित्र और छोटे भाई हैं और रहेंगे. उन पर क़ानून द्वारा गंभीर धाराएँ लगाई गयी हैं, उन पर दो-दो थानों से महत्वपूर्ण और प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट अंकित कराई गयी है और उनकी जमानत याचिकाएं एकाधिक बार खारिज की जा चुकी हैं.
यह सब बातें पूरी तरह रिकॉर्ड पर हैं और इन पर मेरे कुछ कहने या नहीं कहने का कोई अर्थ नहीं है. इन बातों में ज्यादातर बातों पर लगभग सभी लोगों की सहमति होगी सिवाय दो बातों पर. हो सकता है कई लोग एफआईआर दर्ज कराने वाले व्यक्तियों को महत्वपूर्ण और प्रभावशाली व्यक्ति कहे जाने पर नाइत्तेफाकी जताएं- अपने अलग-अलग कारणों से. इसी प्रकार संभव है कुछ विधिविशेषज्ञ एफआईआर की धाराओं के गंभीर धारा कहे जाने से सहमत नहीं हों. मैं इन दोनों प्रश्नों में इसीलिए नहीं जाना चाहता क्योंकि ये वस्तुनिष्ठ सन्दर्भ नहीं हैं, इन दोनों तथ्यों के विषय में मत-मतान्तर होना संभव है. इसके अतिरिक्त यह भी सत्य है कि ये दोनों प्रश्न मेरे लिए विशेष महत्व के नहीं हैं. शेष बातों पर इसीलिए कोई मतवैभिन्य नहीं हो सकता क्योंकि वे तथ्यपरक बातें हैं.
मैं जब ये लेख लिख कर अपने मन के उदगार प्रकट कर रहा हूँ तो मेरा मन इसके जरिये यशवंत पर हुए एफआईआर के सम्बन्ध में टीका-टिप्पणी करना अथवा निष्कर्ष निकालना नहीं है. मुझे पुलिस विभाग में लंबा अनुभव है और इसके अतिरिक्त भी मैं तार्किक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति हूँ. अतः मुझे बिना पूरी बात की जानकारी हुए अपने मन से, अपनी इच्छानुसार किसी भी विषय पर अपनी राय व्यक्त कर देना सर्वथा अनुचित लगता है. यशवंत पर एफआईआर क्यों दर्ज हुआ, दर्ज कराने वाली दंपत्ति की कही गयी बातें सत्य हैं अथवा अनुचित, पुलिस की तरफ से की गयी कार्यवाही के क्या आधार रहे जैसे प्रश्न स्पष्टतया विधिक और साक्ष्यपरक प्रश्न हैं, जिन पर करीब पांच सौ किलोमीटर दूर बैठ कर मेरी तरफ से निर्णयात्मक भाषा में कुछ भी कहना मेरे लिए ना सिर्फ अनुचित होना बल्कि मेरी दृष्टि में गैर-कानूनी भी. फिर इस घटना के विषय में यशवंत से पिछले कुछ दिनों में कोई वार्ता भी नहीं हुई थी, जिससे मैं इस घटनाक्रम से भिज्ञ रहता. मुझे तो यशवंत की गिरफ़्तारी की सूचना भी हमारे परस्पर मित्र उमेश चतुर्वेदी से मिली. मैं उस समय बलिया जा रहा था और ट्रेन ही था जब मुझे यह सूचना मिली.
स्वाभाविक रूप से मैंने यशवंत के भड़ास पर सहयोगी अनिल से बात की और उसके बाद सम्बंधित पुलिस अधिकारियों से भी. इन बातों से यह स्पष्ट हो गया कि यशवंत पर दो एफआईआर हुए हैं, दो अलग-अलग थानों पर और वे इनके आधार पर एक दिन पूर्व गिरफ्तार कर थाने पर लाये गए हैं. फिर मैंने यशवंत के तमाम परिचितों और चाहने वालों से संपर्क किया. वे सभी भी मेरी तरह एक-दूसरे में सहारा ढूंढ रहे थे. हम सबों के मिले-जुले प्रयास से पूरे तथ्य जानकारी में आ गए. इससे अधिक किसी भी बात पर वर्तमान में टिप्पणी करने का कोई अधिकार मैं स्वयं को नहीं देता. मैं यह मानता हूँ कि तथ्यों के विषय में सही स्थिति यशवंत ही बता सकते हैं या फिर एफआईआर कर्ता पति-पत्नी. हाँ, मैं इतना अवश्य जानता हूँ कि यशवंत एक दृढनिश्चयी और हिम्मती व्यक्ति हैं जो सत्य के संधान के लिए उद्धत होंगे और इस कारण मुझे यह भी विश्वास है कि इस पूरे प्रकरण में देर-सवेर पूरी बात सामने अवश्य आएगी. मैं जो कह रहा हूँ इसका मतलब यह नहीं हुआ कि एफआईआर कर्ता सही हैं और यशवंत गलत, या यशवंत सही हैं और एफआईआर कर्ता गलत या फिर दोनों थोड़े-थोड़े सही और गलत हैं.
मेरा मात्र यह कहना है कि मेरी निगाहों में यशवंत सत्य के प्रति आसक्त व्यक्ति हैं और वे इस सन्दर्भ को भी उसी रूप में लेंगे. मुझे यह विश्वास है कि वे एक सच्चे सत्यान्वेषी की तरह इस पूरे घटनाक्रम से स्वयं को तटस्थ करके एक पूर्ण निर्मोही की तरह घटना का आद्योपांत अन्वेषण और विश्लेषण करेंगे और उसके बाद सिर्फ वही कहेंगे जो उनके ह्रदय की आवाज़ होगी, जो उनकी अंतरात्मा की दृष्टि से पूर्ण सत्य होगा. मैं समझता हूँ कि उनके द्वारा ऐसा करने पर उनके सभी सच्चे हितैषियों, प्रशंसकों और अनुयायियों को बहुत गहरी खुशी मिलेगी और सत्य के सोपान की तरफ उन्मुख इस युवा और उत्साही नवयुवक के जीवन में एक और बड़ी उपलब्धि हासिल होगी. यद्यपि मैं एफआईआर कर्ता साथियों से उनके नाम और उनकी सामाजिक-प्रोफेशनल स्थिति के अतिरिक्त किसी अन्य रूप में व्यक्तिगत रूप से परिचित नहीं हूँ पर मुझे लगता है कि वे भी इस प्रकरण को अपने व्यक्तिगत लाभ-हानि से अलग एक पूर्ण वस्तुनिष्ठता से देखेंगे.
मैं यशवंत से यही निवेदन करूँगा कि यदि वे गलत पर नहीं हैं तो अपनी पूरी ताकत से इस पूरे घटनाक्रम का विधिक रूप से अंत तक विरोध करें. किसी भी अन्याय और गलती का विरोध करना हम सबों का दायित्व होता है और मैं यशवंत से भी यह अपेक्षा रखूँगा. मैं अपनी सीमित क्षमता के साथ अपने व्यक्तिगत हानि-लाभ की बात छोड़ कर उनका साथ देने में खुद को सौभाग्यशाली मानूंगा. यदि इसके विपरीत एफआईआर कर्ता दंपत्ति के आरोप सही हैं तो उन्हें भी पूरी शिद्दत से अपनी बात पर कायम रहना चाहिए. हाँ, यदि एक तीसरी स्थिति उभर कर आती है कि मामला फिफ्टी-फिफ्टी है तब तो पक्ष-विपक्ष की मर्जी.
मुझे ठीक से नहीं मालूम लेकिन हो सकता है यह यशवंत के जीवन का पहला आपराधिक मुक़दमा हो. शायद पहली बार की जेलयात्रा भी. यानि एक नायाब अनुभव- पहले-पहले प्यार और पहले-पहले कौमार्य की तरह. यदि ऐसा है तो स्वाभाविक रूप से यशवंत अपने स्वभाव के अनुरूप इस यात्रा के प्रति अत्यंत उत्साही होंगे और वे इस दौरान हर छोटी-बड़ी बात को समझने, सीखने, जानने में जुटे पड़े होंगे. सत्य के अन्वेषियों और जिज्ञासु लोगों की यही सबसे बड़ी कमजोरी भी है और सबसे बड़ी ताकत भी. इस रूप में मैंने यशवंत को जितना भी जाना है वे मुझे एक अद्भुत व्यक्ति नज़र आये हैं. और चाहे जो भी बात हो, इस युवा पत्रकार में जो भी अच्छाइयां और बुराइयां हों, पर इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि वे एक बेहद प्रतिभावान व्यक्ति हैं. जब वे अपनी बात कहते हैं तो मानो उनके हाथ से सरस्वती की धारा बह रही हो. वे निर्बाध गति से एक निर्बोध बालक की तरह जाने-अनजाने तमाम बातें लिखते चले जाते हैं, जिनमें गंभीर से गंभीर और छोटी से छोटी बातों का बड़ा ही सुन्दर समावेश होता है. उनमें पत्रकारिता की भी बहुत ही गहरी और सूक्ष्म समझ है.
जाहिर है इतना प्रतिभावान होने के बाद यशवंत को नौकरी की कभी कमी नहीं रहती, भले वे पियक्कड़ होते अथवा नहीं, शराब पी कर यदा-कदा कुछ बोला करते अथवा नहीं. यह तो मात्र उनका फक्कड़पन है, मनमानापन है, झक्कीपन है, आत्मिक शक्ति है, अंदर की मजबूती है, दृढ़ता है, कर्मठता है और सत्य के संधान की असीम इच्छा है, जिसने उन्हें लीक से हट कर एक उबड-खाबड़ रास्ते पर चलने को प्रेरित किया. अभी यशवंत कोई मीडिया-किंग नहीं हुए हैं, शायद कभी नहीं हो पायें. बस खाने-पीने लायक स्थिति में हैं. इसमें भी उनके दोस्त कम हैं और दुश्मन अधिक. शायद कुछ तो उनका काम ऐसा है और कुछ उनका स्वभाव. लेकिन जो कुछ भी हो, मेरी दृष्टि में यशवंत एकदम जुदा हैं उस भीड़ से जो किसी तरह अपने दबड़े से सिमट कर, दुनियाभर के सारे हथकंडे अपना कर दुनिया की निगाहों में सफल हो जाना चाहता है चाहे उसकी कीमत उनकी आत्मा, उनकी जमीर ही क्यों ना हो.
एक दोस्त और एक बड़े भाई के रूप में मैं यह मानता हूँ कि यशवंत यदि शराब नहीं पीएं और उसके प्रभाव में जाने-अनजाने नहीं आ जाया करें तो शायद वे और अधिक आगे जाएँ. मैं हमेशा यह मनाता हूँ और चाहता हूँ कि यशवंत ऐसा करें. किसी भी व्यक्ति को, जो व्यवस्था में परिवर्तन चाहता है, कुछ नयापन चाहता है, कुछ अच्छा करना चाहता है, सबसे पहले अपनी कमियों और कमजोरियों कर फ़तेह करना होना और एक नियंत्रित जीवनपद्धति की ओर उन्मुख होना होगा. यशवंत परिवर्तन तो चाहते हैं पर अभी उसके लिए कीमत देने से हिचकिचा रहे हैं. मुझे पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि शायद उन्हें ऐसीं ही किसी घटना का इन्तज़ार था जो उन्हें और आगे जाने वाले मार्ग पर अग्रसर कर सके.
मैं अभी यशवंत के कुछ भी नहीं कर पा रहा, शायद इसीलिए क्योंकि अब मुझे अंदरखाने लुकी-छिपी बातें करने की बहुत इच्छा नहीं होती, ना अपने लिए और ना अपने साथियों के लिए. पर मेरा ह्रदय जानता है कि मैं प्रतिपल यशवंत के साथ हूँ क्योंकि मेरी दृष्टि में यशवंत एक सच्चा सुहृद, मित्र और बन्धु है जो अपनी तमाम खामियों और खराबियों के साथ एक मनुष्य है, एक खांटी इंसान.
लेखक अमिताभ ठाकुर, उत्तर प्रदेश के आईपीएस अफसर हैं. इनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
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