Sanjaya Kumar Singh : मित्र Yashwant Singh ने लिखा है कि तरुण तेजपाल को माफ कर दिया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने पश्चाताप कर लिया है, उनकी थू-थू हो चुकी है और अब इस मामले में राजनीति हो रही है। पर मेरा मानना है कि तेजपाल अदालत से भले बच जाएं, माफ किए जाने लायक नहीं हैं। लीक से हटकर कुछ अलग करने के क्रम में इस बार Yashwant Singh गल्ती कर रहे हैं। यहां मामला वैसा नहीं है जैसा आपने पेश किया है।
जो व्यक्ति अपने अंदर के राक्षस को नियंत्रित नहीं कर सकता उसे समाज में नहीं रहने दिया जा सकता। तरुण तेजपाल ने जो किया (मूल शिकायत के अनुसार) वह अगर कोई बगैर अनुमति करेगा तो वाकई राक्षस ही होगा। पीड़ित लड़की माफ कर भी दे तो तरुण यौन मामले में आम आदमी नहीं लगता है। वह अपने मातहत काम करने वालों को बहुत ही मामूली समझता है और सशर्त नौकरी की बात करता है जो नीचता है।
मैं आपसे सहमत होता अगर उसने यह सब सहमति से किया होता। मातहत काम करने वाली, मित्र की बेटी और बेटी की सहेली के बारे में तो सोचना भी राक्षस होना है। तरुण के अच्छे कामों से उसके बुरे काम कम नहीं होंगे। वैसे ही जैसे कोई मां दस बच्चे पैदा करके उनमें से किसी एक को भी मार नहीं सकती। कोई बाप दस बेटियां पैदा करके भी किसी एक से बलात्कार नहीं कर सकता।
आईपीसी के अनुसार तो दोनों पर समान धाराएं लगेंगी। आसाराम के मामले में तो पीड़िता के सहमत होने, डर से तैयार हो जाने या कम उम्र की होने के कारण गंभीरता ही न समझने और आशाराम द्वारा इसका लाभ उठाने या फिर ऐसे कुकर्मों का आदी होने के कारण – उसकी राक्षसी को मान्यता मिल जाने और उसे उसका उपयोग करने की आजादी जैसी बातें हो सकती हैं। भले उसने गलत किया पर अपनी दुनिया में किया। मेरे हिसाब से दोषी आसाराम कम नहीं हैं पर तुलना करें और किसी एक को कम या ज्यादा दोषी मानना हो तो मैं आसाराम को कम दोषी मानूंगा। क्योंकि उसपर वैसी जबरदस्ती के आरोप नहीं हैं जैसी तरुण तेजपाल पर।
उसने जो भी किया सफलतापूर्वक बहला-फुसला कर किया। बहलाना – फुसलाना कानूनन अपराध नहीं है, (अवयस्क के मामले में है, मैं बहुत बारीक तकनीक में नहीं जा रहा) अपराध की कोशिश है। पर बहलाने की कोशिश भी न करना – राक्षस होना है। प्रायश्चित से अगर तरुण तेजपाल बच सकते हैं तो संजय दत्त क्यों नहीं।
मूल शिकायत में तो लड़की ने तरुण से माफी मांगने की ही बात कही है। पर तरुण ने माफी मांगने की बजाय उसे हल्के में उड़ाना चाहा और पीड़िता को एसएमएस भेजा जिसका हिन्दी अनुवाद होगा (उसने आरोप लगाते हुए (एसएमएस भेजा कि) मैंने एक नशेबाज की दिल्लगी का गलत अर्थ निकाल लिया (he sent me text messages insinuating that I misconstrued “a drunken banter”)। इस हिसाब से माफी मांगने का समय तो निकल चुका है। लिफ्ट में जो हुआ उसका कोई गवाह नहीं है और यह शायद ही साबित हो पाए फिर भी शिकायत गंभीर है और तेजपाल अदालत से भले बच जाएं, माफ किए जाने लायक नहीं हैं।
जिन लोगों ने मूल शिकायत नहीं पढ़ी है और समझते हैं कि लिफ्ट हर मंजिल पर रुकती है, कहीं भी रुक जाती है उसमें तेजपाल को कितना समय मिला होगा वैसे लोगों को बताता चलूं कि शिकायत के मुताबिक, तेजपाल लगातार लिफ्ट के बटन दबा रहे थे ताकि वह रुके नहीं और लिफ्ट तभी रुकी जब शिकायतकर्ता के निरंतर विरोध के कारण वे आगे बटन नहीं दबा पाए।
और अब आपकी स्प्रिचुअल बात का जवाब – अगर आप सहमति से कुछ करते हैं और बाद में कोई शिकायत करता है तो वह मामला बिल्कुल अलग होता है और उसमें तरुण तेजपाल जैसे लोगों से सहानुभूति हो सकती है। पर यहां (शिकायत के मुताबिक) I (शिकायतकर्ता) said “It’s all wrong. I work for you and Shoma.” He (तरुण) said first “It’s alright to be in love with more than one person,” and then he said, “Well, this is the easiest way for you to keep your job.” I was walking still faster, blinking back tears. यहां ये बातें अपने किए को सही ठहराने के लिए की जा रही हैं ना कि कुछ करने के लिए पटाने, मनाने या फुसलाने के लिए कही गई हैं।
यह ऐक्सीडेंट नहीं है, यशवंत जी, जानबूझकर मारी गई टक्कर है क्योंकि टक्कर मारने वाले को इसी में आनंद आता है और वैसे ही टक्कर मारी गई है जैसे ट्रक चलाने वाले को साइकिल, दुपहिया चलाने वाला या पैदल चलने वाला बहुत मामूली और छोटा लगता है। आई लव यू लिखकर देने के कारण फंसने वाले युवक का मामला याद है मुझे पर अपनी फंतासी को सच करने के लिए दूसरे को तैयार तो कीजिए। हो सकता है किसी का स्थायी पार्टनर तैयार न हो तो वह दूसरा ढूंढ़े और नहीं तो थाईलैंड जाए पर यहां हर किसी को थाईलैंड के पार्लर में काम करने वाली मत समझिए। और ऐसा करेंगे तो निश्चित रूप से फंसेंगे। तरुण तेजपाल के साथ यही हुआ है।
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.
मूल लेख…