आरटीआई कार्यकर्ता डॉ नूतन ठाकुर द्वारा लखनऊ जिले की प्राप्त सूचना से पुलिस विभाग में निलंबन के बारे में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं. एसपी (प्रोटोकॉल), लखनऊ द्वारा दी गयी इस सूचना के अनुसार 01 जनवरी 2009 से 31 दिसंबर 2012 के चार साल की अवधि में लखनऊ में निलंबन सम्बंधित 362 आदेश जारी हुए जिसमे कुल 510 पुलिसकर्मी निलंबित किये गए, यानि औसतन हर तीसरे दिन एक पुलिसकर्मी निलंबित हुआ. इनमे 12 सितम्बर 2009 के एक आदेश से 39 और 21 जुलाई 2012 के एक आदेश से 10 पुलिसकर्मी निलंबित हुए.
लेकिन इन 510 निलंबन में मात्र 223 पुलिसवालों पर ही आगे कोई कार्यवाही की गयी, अर्थात अफसर 287 (लगभग 56 प्रतिशत) पुलिसवालों को निलंबित करने के बाद पूरी तरह भूल गए. इन 223 पुलिसवालों में भी 36 बाद में निर्दोष पाए गए और इस प्रकार निलंबित पुलिसवालों में मात्र 187 (लगभग एक तिहाई) ही अंत में किसी प्रकार से दोषी पाए गए.
इनमे एएसआई (एम) विनोद कुमार यादव 21 मार्च 2009 को निलंबित किये गए और 09 अप्रैल को बहाल करने के बाद फिर 19 मई को निलंबित हुए और 20 जुलाई को फिर बहाल हो गए. इन 510 पुलिसकर्मी में 156 निलंबन के एक माह के अंदर ही बहाल हो गए, जिनमे चार दिनों में बहाल होने वाले उपनिरीक्षक विजय प्रताप यादव, वीरेंद्र कुमार और टीएसआई योगेश शर्मा भी शामिल हैं.
जो 39 पुलिसवाले एक साथ निलंबित किये गए थे, उनमे कोई भी बाद में दोषी नहीं पाया गया और वे निलंबन के आठ दिन के अंदर 20 सितम्बर को बहाल भी हो गए. इसी तरह एक साथ निलंबित 10 कर्मी का निलंबन भी एक माह के अंदर कोर्ट द्वारा स्थगित कर दिया गया. ठाकुर ने इन आंकड़ों के आधार पर डीजीपी, यूपी को पत्र लिख कर पुलिस विभाग में अफसरों द्वारा बिना प्रमाण के मनमर्जी अधीनस्थ पुलिसवालों को निलंबित करने का आरोप लगाते हुए इस प्रवृत्ति को रोके जाने की मांग की है.