यूपी में चीनी मिल चलाने न चलाने को लेकर जारी रस्साकशी के बीच लखीमपुर में एक गन्ना किसान ने सुसाइड कर लिया. एक चीनी मिल पर उसके दो ढाई लाख रुपये बाकी थे, उसे वे रुपये नहीं दिए जा रहे थे. खेत में खड़ी गन्ने की फसला चीनी मिलों की पेराई शुरू न होने से सूख गई… खेती से लेकर अन्य घरेलू व जरूरी कार्यों के लिए लाखों रुपये ब्याज पर ले लिया था जिसके ब्याज की सुई तेजी से उपर भाग रही थी… आखिर में घर वालों के दुख, संकट, मुश्किल, मजबूरी देख उस किसान ने जान दे दी…
किसान की लाश को चीनी मिल के गेट पर रखकर सैकड़ों लोग प्रदर्शन कर रहे हैं और उन प्रदर्शनकारी ग्रामीणों-किसानों को पुलिसवाले भगाने के लिए कंकड़-पत्थर से लेकर पानी की तेज धार तक बरसा रहे हैं… ट्रांसफर, पोस्टिंग, वसूली, चुनाव, समीकरण आदि 'जरूरी' चीजों में फंसी यूपी की सपा सरकार के पास वक्त नहीं कि वह आम किसानों के बारे में सोचे.. किसान चाहते हैं कि गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़े क्योंकि खाद बिजली पानी मेहनत आदि मिलाकर जो गन्ना वह तैयार कर रहे हैं उससे वर्तमान समर्थन मूल्य पर तो लागत भी निकाल पाना मुश्किल होगा.. लेकिन लालची चीनी मिल मालिक समर्थन मूल्य घटाने के लिए कह रहे हैं..
सपा सरकार कहने को तो किसानों की हितैषी है लेकिन अंदरखाने चीनी मिल मालिकों से उसकी जोरदार सेटिंग है क्योंकि चुनाव चंदा रिश्ता पीआर भी तो पुराना है इनसे… सो याराना है इनसे.. बड़ी विकट स्थिति है यूपी की.. लॉ एंड आर्डर के नाम पर शून्य… किसान-मजदूरों के हितों की देखभाल के नाम पर शून्य.. काहे की समाजवादी है ये सरकार… सच कहें तो बसपा राज के करप्शन से उबकर जनता ने सपा को पूरा यूपी सौंपकर बड़ी भूल कर दी है… अब सबको समझ में आ रहा है कि ये समाजवादी नहीं पूरी तरह अराजकतावादी सरकार है.. मुलायम दिन-रात पीएम बनने के ख्वाब में मस्त हैं.. 75 साल की उम्र की दुहाई देकर लोकसभा की 75 सीटें यूपी वालों से मांग रहे हैं… अखिलेश बेचारे बच्चा सीएम की छवि से उबर नहीं पा रहे क्योंकि उनके घर के बड़ों ने उन्हें दाब रखा है… शिवपाल, रामगोपाल, आजम खान जैसी त्रिमूर्ति के कहने क्या … इनकी जितनी 'प्रशंसा' की जाए उतनी कम है..
इनके अलावा सैकड़ों पॉवर सेंटर हैं… जो इन पंचमूर्तियों की पैतरेबाजी करके प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों पर अपना राज कायम किए हुए है… लग रहा है जैसे पूरा प्रदेश लुटेरों के हाथों में खंड-खंड विभाजित हो चुका है… इस प्रदेश को भी अब किसी केजरीवाल की जरूरत है… किसी बड़े आंदोलन की जरूरत है.. वरना ये जड़ता टूटेगी नहीं…
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.
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