: चीफ सेक्रेटरी जावेद उस्मानी गलत ढंग से बने हैं मेट्रो के चेयरमैन, उन्हें हटना ही होगा : मधुकर जेटली यूपी सरकार में राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त हैं. उन्होंने आईएएस अफसरों से अपनी भारी नाराजगी सामने ला दी है. वाह्य सहायतित परियोजना के सलाहकार मधुकर जेटली को राज्यमंत्री का दर्जा देकर अखिलेश सरकार ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी है.
मेट्रो परियोजना की शुरुआत में जेटली का खास योगदान रहा और उनके कारण ही श्रीधरन जैसे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शख्स ने लखनऊ मेट्रो की कमान संभाली. मगर इस परियोजना में अफसरों की लालफीताशाही ने मधुकर जेटली को खासा नाराज कर दिया है. वह इस परियोजना का जल्दी से जल्दी शिलान्यास कराना चाहते थे. उनका मानना है कि यूपी के चीफ सेक्रेटरी जावेद उस्मानी नियमों के विरुद्ध इस परियोजना के चेयरमैन बने हुए हैं और उनके संरक्षण में अफसर गलत काम कर रहे हैं.
मधुकर जेटली ने साफ-साफ कहा कि देश में जिन मेट्रो परियोजनाओं की जिम्मेदारी आईएएस अफसरों को दी गयी है वहां-वहां इन परियोजनाओं का बंटाधार हुआ है. यही कारण है कि लखनऊ में मेट्रो परियोजना के प्रबंध निदेशक का काम गैर आईएएस को सौंपने के लिए मुख्यमंत्री तैयार हुए, क्योंकि मुख्यमंत्री हर हालत में इस प्रदेश को देश के सबसे उन्नतिशील राज्य के रूप में देखना चाहते हैं. मधुकर जेटली की इस प्रतिक्रिया के बाद यूपी की ब्यूरोक्रेसी में भी गुटबाजी शुरू हो गयी है. समाजवादी नेता मधुकर जेटली से कई मुद्दों पर वीकएंड टाइम्स के संपादक संजय शर्मा ने बातचीत की. पेश है बातचीत के कुछ अंश:
-आपके ऊपर वाह्य सहायतित परियोजनाओं के सफल संचालन की जिम्मेदारी है मगर यूपी में कोई बड़ी परियोजना तो चलती नजर नहीं आ रही?
–ऐसा नहीं है। पूरी एशिया में उत्तर प्रदेश का नाम मेट्रो की वजह से अब लगातार सुर्खियों में है। लखनऊ के अलावा आठ शहरों में भी मेट्रो शुरू होने जा रही है। इन शहरों से तकनीकी रिपोर्ट आ गयी है। डीपीआर बनाकर जल्द ही काम शुरू हो जायेगा।
-आप लोग मैट्रो के नाम को इतने समय से भुना रहे हैं मगर हकीकत में सिर्फ लोगो ही जारी हो पाया। काम में इतनी देरी क्यों?
–मैनें तो जून में काम संभाला था। आपकी बात सही है उससे पहले डीपीआर बना तो था मगर कोल्ड स्टोरेज में पड़ा था। कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। मेरी मुख्यमंत्री जी से बात हुई, उन्होंने कहा कि जल्दी से जल्दी मेट्रो का काम शुरू होना चाहिए क्योंकि इससे लोगों को भारी फायदा होगा।
-फिर भी इतनी देर लग गयी?
–बड़ा काम था। मुझे फख्र है कि 26 अगस्त को हमने भारत सरकार को अपनी कैबिनेट से डीपीआर पास कराकर भेजा और लगातार दबाव बनाकर 27 दिसम्बर को भारत सरकार से सैद्घांतिक सहमति ले ली और जनवरी में भारत सरकार के वित्त मंत्रालय को भेज भी दिया।
-भारत सरकार इतनी तेजी से काम कर रही थी मगर प्रदेश सरकार को डीपीआर भेजने में महीनों लग गये?
–हां यह बात तो सही है। यूपी की ब्यूरोक्रेसी ने इस मामले में बहुत शिथिलता बरती और इसी शिथिलता के कारण काम लगातार पिछड़ता चला गया। मैंने पद संभालते ही हर स्तर पर इसकी कोशिशें करी क्योंकि यह एक ऐसी परियोजना थी जिसके लागू होते ही उत्तर प्रदेश का पूरा नक्शा ही बदल जाता और लोगों के जीवन में भी बहुत सुधार आता।
-यह शिथिलता क्यों बरती गयी?
–मुझे लगता है कि कुछ गलत अफसर प्रदेश के सीनियर अफसरों का फायदा उठाकर इस तरह का काम कर रहे थे।
-किस अफसर की तरफ आपका इशारा है?
–हमारे यहां ब्यूरोक्रेसी के हेड तो चीफ सेक्रेट्री ही होते हैं उनके द्वारा संरक्षित अधिकारी हैं, जिन्होंने चीफ सेके्रटरी पद का इस्तेमाल किया। उनको ढाल बनाया और ढाल बनाने के बाद काम को लटकाया और काम में बाधा पहुंचाई।
-किस तरह?
–पिछले कई महीनों से देख रहा हूं कि मीडिया में गलत खबरें छपवाई जा रहीं हैं। उसका अंतिम प्रमाण यह है कि मुख्यमंत्री जी ने श्रीधरन जी के नाम को बहुत पहले ही स्वीकृति दे दी थी। मगर मीडिया में खबरें आयी कि श्रीधरन जी ने इसके लिए मना कर दिया है जबकि हकीकत में ऐसा कुछ नहीं था और कुछ अफसर यह खबरें छपवा रहे थे।
-आप ब्यूरोक्रेट्स पर आरोप लगा रहे हैं जबकि श्रीधरन को तो ये अफसर ही यहां लाये?
–यूपी का कोई ब्यूरोक्रेट तो आज तक श्रीधरन से नहीं मिला, उन्हें तो पता ही नहीं। मैने ही श्रीधरन जी से मुख्यमंत्री जी से स्वीकृति मिलने के बाद बात की और उनसे इस परियोजना को संभालने का विनम्र अनुरोध किया। श्रीधरन को लखनऊ मेट्रो की जरूरत नहीं थी, लखनऊ मेट्रो को श्रीधरन की जरूरत थी।
-मगर इस परियोजना के चेयरमैन तो चीफ सेक्रेटरी हैं, उन्होंने श्रीधरन से बात नहीं की?
–चीफ सेक्रेटरी तो गैर कानूनी ढंग से इस परियोजना के चेयरमैन बने हुए हैं। हमने दिल्ली मेट्रो के मॉडल को अपनाया है। वहां भारत सरकार के अर्बन डिपार्टमेंट के सेके्रटरी मेट्रो परियोजना के चेयरमैन होते हैं। दिल्ली के मुख्य सचिव तो सिर्फ उसके सदस्य हैं। मगर यहां तो सब नियम ताक पर रखकर मुख्य सचिव ही परियोजना के चेयरमैन बन गये।
-सरकार आपकी, निर्णय आपका, फिर कैसे चेयरमैन बन गये चीफ सेक्रेटरी?
–यह मेरा निर्णय नहीं है, मैं तो बहुत मामूली सलाहकार हूं।
-आप मुख्यमंत्री से बगावत कर रहे हैं क्योंकि फैसला तो उन्हीं का था?
–मुख्यमंत्री तो बेतहाशा चाहते थे कि सब काम समय से हो जाये उन्होंने तो योजना के शिलान्यास की तारीख भी तय कर दी थी। मगर कुछ अफसरों का ग्रुप है वह निर्णय लेने में बहाना बना देता है।
-आप नाम क्यों नहीं ले रहे हैं कौन अफसर ऐसे हैं। परियोजना में तो आईएएस सिर्फ राजीव अग्रवाल है, आप उनका नाम लेने में क्यों झिझक रहे हैं?
–मैं इतने छोटे लोगों का नाम नहीं लेता। मैंने आपसे मुख्य सचिव का नाम ले तो लिया मुख्य सचिव ही जिम्मेदार हैं। मुख्य सचिव ही अफसरों को संरक्षण दे रहे हैं।
-मुख्य सचिव तो सभी आईएएस का संरक्षणदाता होता ही है, इसमें बुरा क्या है?
–यह गलत संरक्षण है। अफसरों की गलतियों को छुपाया जा रहा है, यह अफसर सरकार को बदनाम कर रहे हैं।
-आपने मुख्यमंत्री को यह सब नहीं बताया?
–मुख्यमंत्री को मैने सारी जानकारी दे दी। सब कुछ उन्हें पता है।
-अगर उन्हें सब कुछ पता है तो क्या मुख्यमंत्री बेबस हैं?
–मुख्यमंत्री बेबस नहीं हैं। वह शरीफ हैं। उनके पॉजिटिव दृष्टिïकोण को अफसर गलत तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं।
-इस तरह से तो अगर आपकी बात सही मानी जाये तो मुख्य सचिव के फैसलों से सरकार की बदनामी होगी, इससे कैसे निपटेंगे आप?
–इस पर जल्द ही फैसला ले लिया जायेगा। सरकार अब गलत नीतियों को बर्दाश्त नहीं करेगी।
-मतलब मुख्य सचिव को हटाया भी जा सकता है?
–यह मेरे स्तर का फैसला नहीं है मेरा काम सुझाव देना है और मैंने मुख्यमंत्री जी को बता दिया है, फैसला वही लेंगे।
-एक राज्य मंत्री स्तर का राजनेता अपनी ही सरकार के मुख्य सचिव पर गंभीर आरोप लगा रहा है क्या यह गंभीर बात नहीं है?
–दिल्ली मेट्रो कॉरपोरेशन ने आठ नवंबर को कह दिया कि वह लखनऊ का काम संभाल नहीं सकते। मुख्य सचिव ने समय दे दिया कि दिल्ली में सरकार बन जाने दें उसके बाद फैसला करेंगे। और फिर और समय दे दिया। उनसे पूछा जाना चाहिए कि आखिर वह इस परियोजना को देर करने के लिए समय क्यों बढ़ाते जा रहे थे।
-चीफ सेक्रेट्री परियोजना के चेयरमैन हैं उनका भी कुछ हक है?
–मैं पहले भी कह चुका हूं कि वह गैरकानूनी ढंग से इस परियोजना के चेयरमैन बने हुए हैं। उन्हें हटना ही होगा। आप ही बताइये कि यह अफसर पूरे साल नियमों की बात करते हैं और उनके लिए कोई नियम नहीं है। इस प्रदेश में अब यह नहीं चलने वाला।
-मेट्रो से अलग हटकर देखें तो प्रदेश में निवेश की स्थिति थोड़ी धीमी है, आपने पिछले दिनों मुंबई में टाटा के सीईओ साइरस मिस्त्री से मुलाकात की थी, टाटा की परियोजनायें फिर प्रदेश से बाहर क्यों जा रही हैं?
–उन्होंने मुझे प्रदेश में कई अन्य जगह भी टाटा के निवेश का भरोसा दिलाया है और आप देखियेगा आने वाले दिनों में टाटा के अलावा भी देश के कई जाने माने उद्योगपतियों के निवेश प्रदेश में होते नजर आयेंगे।