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रवीश कुमार की बात पर, मोहर नहीं लगेगी हाथ पर

रवीश कुमार बिहार में अपने गांव जाकर आए हैं। गांव में जो उन्होंने देखा, जाना, समझा, महसूस किया और पाया, वह पूरी बेबाक किस्म की ईमानदारी से अपनी कलम से निचोड़कर उन्होंने जस का तस पेश कर दिया। रवीश की बातों के सार को अपने शब्दों में पेश करते हुए एक लाइन में तो सिर्फ यही लिखा जा सकता है कि कांग्रेस नरेंद्र मोदी को अगर कमजोर मान रही है तो यह उसकी बहुत बड़ी भूल होगी, क्योंकि मोदी सिर्फ सोश्यल मीडिया में ही समाहित नहीं है, देश के गरीब प्रदेशों के गांवों तक में मोदी इस कदर पसर चुके हैं कि कांग्रेस के लिए अब मामला आसान नहीं है। रवीश कुमार अच्छा सोचते हैं, इसीलिए अच्छा बोलते भी हैं और अच्छा लिखते भी हैं। लेकिन यही अच्छा कांग्रेस को शायद पसंद नहीं आएगा। सच सुनना बहुत खराब लगता है। पर, सच यही है कि अगली बार देश में फिर सरकार बनाने के मामले में कांग्रेस को बहुत चिंता करनी होगी। उसे समझना चाहिए कि कोई चाहे कुछ भी कहे, लेकिन नरेंद्र मोदी का असर बहुत बढ़ गया है। यह असर देश के गांवों तक घुस गया है।
रवीश कुमार बिहार में अपने गांव जाकर आए हैं। गांव में जो उन्होंने देखा, जाना, समझा, महसूस किया और पाया, वह पूरी बेबाक किस्म की ईमानदारी से अपनी कलम से निचोड़कर उन्होंने जस का तस पेश कर दिया। रवीश की बातों के सार को अपने शब्दों में पेश करते हुए एक लाइन में तो सिर्फ यही लिखा जा सकता है कि कांग्रेस नरेंद्र मोदी को अगर कमजोर मान रही है तो यह उसकी बहुत बड़ी भूल होगी, क्योंकि मोदी सिर्फ सोश्यल मीडिया में ही समाहित नहीं है, देश के गरीब प्रदेशों के गांवों तक में मोदी इस कदर पसर चुके हैं कि कांग्रेस के लिए अब मामला आसान नहीं है। रवीश कुमार अच्छा सोचते हैं, इसीलिए अच्छा बोलते भी हैं और अच्छा लिखते भी हैं। लेकिन यही अच्छा कांग्रेस को शायद पसंद नहीं आएगा। सच सुनना बहुत खराब लगता है। पर, सच यही है कि अगली बार देश में फिर सरकार बनाने के मामले में कांग्रेस को बहुत चिंता करनी होगी। उसे समझना चाहिए कि कोई चाहे कुछ भी कहे, लेकिन नरेंद्र मोदी का असर बहुत बढ़ गया है। यह असर देश के गांवों तक घुस गया है।
 
कांग्रेस के लिए जो टीम देश भर में सोशल इंजीनियरिंग के असर का अध्ययन करती हैं, उसने पता नहीं पार्टी के नेताओं को अब तक यह समझाया है या नहीं कि इतने दिन तक तो, जो हुआ सो हुआ, पर मोदी को अब हल्के से लेना खतरे से खाली नहीं है। मोदी का असर हिंदी बेल्ट के गांवों में गहरे तक समा गया है। बिहार हो या बंगाल, यूपी हो या झारखंड, या फिर हो कोई और प्रदेश। हर प्रदेश के हर गांव पर गुजरात का असर है। मोदी ने गांवों के इन लोगों को अपने समर्थन में सारे तर्क और तेवर दोनों थमा दिए हैं। इन प्रदेशों के गांवों और घरों में पैसा गुजरात से ही आ रहा है। और घर में रहनेवालों के चेहरों की खुशहाली का रास्ता गुजरात से ही शुरू होता है। जाकर देख लीजिए, इन प्रदेशों के किसी भी गांव पंचायत में अब साठ से सत्तर फ़ीसदी घर पक्के बन गए हैं। यह बदलाव बीते कुछेक सालों में ही हुआ है। गांवों में बने इन पक्के मकानों में आधे से ज़्यादा अभी अभी बने हए से लगते हैं। किसी की दीवारों पर सीमेंट नहीं लगा है, तो किसी पर प्लास्टर बाकी है। ज्यादातर पर रंग रोगन नहीं हुआ है। ऐसे घर पिछड़ी और दलित जातियों के लोगों के ज़्यादा हैं। ये वे जातियां हैं, जो परंपरागत रूप से कांग्रेस का वोट बैंक रही हैं। पर अब मोदी की महारत को मानती हैं। कांग्रेस मोदी के बारे में चाहे कुछ भी कहती रहें, कोई भरोसा नहीं करता, क्योंकि इन घरों की दीवारें अपने विकास में गुजरात के सहयोग की कहानी कह रही हैं।
 
रवीश कुमार अपने गांव गए तो उन्होंने देखा कि अब उनके वहां के लोग लोग पंजाब और दिल्ली नहीं गुजरात कमाने जाते हैं। अपन भी गुजरात आते जाते रहते हैं। मुंबई से राजस्थान जाने के लिए आधे गुजरात की छाती पर से ही गुजरना होता है। वापी–वलसाड़ से लेकर राजकोट और भावनगर से लेकर जामनगर ही नहीं सूरत-बड़ौदा से लेकर पालनपुर तक में ज्यादातर मजदूर बिहार, बंगाल, झारखंड और यूपी का है। सूरत और राजकोट तो पूरे के पूरे उन्हीं से भरे पड़े हैं। मोदी का मुखर विरोध करनेवाले नीतीश कुमार वाले बिहार के मजदूर सबसे ज्यादा गुजरात में है। अपने अशोक गहलोत के राजस्थान के लाखों घरों की अर्थव्यवस्था का भी बहुत बड़ा हिस्सा गुजरात ही संभालता है। राजकोट, सूरत और जानमगर ही नहीं पूरा गुजरात भरा पड़ा है देश के बाकी हिस्सों के मजदूरों से। अपन मुंबई में रहते हैं, और इसीलिए जानते हैं कि काम की आस में अब मुंबई के मुकाबले लोग गुजरात ज्यादा जाते हैं। संजय निरुपम अपने दोस्त हैं। जनसत्ता में हर तरह से अपन उनके साथ थे। टीवी कैमरों के सामने चीख चीख कर मोदी को कोसना उनकी कांग्रेसी होने की मजबूरी हैं, लेकिन अंदर की बात उनका दिल भी जानता है। रवीश कुमार लिखते हैं कि गुजरात में राज मिस्त्री को सात सौ रुपये दिन के मिलते हैं। गुजरात से ही गाँवों में पैसा आ रहा हैं। जो पैसे गुजरात में बैठे लोग अपने गांव भेजते हैं, वे घर खर्चे के होते हैं। लेकिन उसमें से भी बहुत सारा बचता है, तो लोग घर बना रहे हैं। इसीलिए, यह अब मान लेने में कोई गलती नहीं है कि गुजरात से कमाकर आने वाला मालामाल मज़दूर देश के अन्य प्रदेशों के गांवों में नरेंद्र मोदी का ब्रांड एंबेसडर हैं।
 
राजस्थान में चुनाव चल रहा है। वहां के नेता मुंबई आ रहे हैं। लोगों से कह रहे हैं कि आप अपने गांव चिट्ठी लिखो कि वे हमको वोट दें। कमानेवाले की बात में वजन होता है। कमानेवाला जब घर वालों को कुछ कहता है तो वे उसकी बात मानते हैं। सही भी है। मुंबई के बहुत सारे लोग इसी रास्ते से राजस्थान जाकर भी चुनाव जीतते रहे हैं, विधायक और सांसद बनते रहे हैं। कमाई वाकई में बहुत अहमियत रखती है। रही बात राजस्थान के मुसलमानों की, तो वहां का तो आधे से भी ज्यादा मुसलमान न केवल शुद्ध रूप से भाजपाई है, बल्कि मोदी में बहुत भरोसा भी करता है। रही बात घरेलू विकास की, तो रवीश ने तो सिर्फ बिहार के गांवों की बात की, मगर राजस्थान ही नहीं बिहार, बंगाल, यूपी और झारखंड सहित देश के कई प्रदेशों के गांव गुजरात की कमाई से विकसित हो रहे हैं। मोदी के गुजरात ने इन गांवों के लोगों को अपनी तारीफ के तर्क और तेवर दोनों उपलब्ध करा दिये हैं। रवीश कुमार जब गांव गए तो उनके गाँव से लेकर मोतिहारी और ट्रेन में जिससे भी मिले सबने नरेंद्र मोदी की बात की। खूब बात की। जो मोदी के बारे में बतिया रहे थे, उनमें हर जाति और वर्ग के लोग थे। रवीश कुछ कांग्रेसी परिवारों में भी गए तो वहाँ भी लोगों ने नरेंद्र मोदी के बारे में ही चर्चा की। रवीश दिल्ली लौटते वक्त लिखने के लिए ट्रेन में जब इन बातों की सूची बना रहे थे तो उनको खयाल आया कि किसी ने भी उनसे राहुल गांधी के बारे में तो एक लाइन नहीं पूछी। एक आदमी ने भी नहीं पूछा कि सोनिया क्या करेंगी या राहुल क्या कर रहे हैं। गाँव गाँव में मोदी के पोस्टर हैं। नीतीश कुमार के नहीं। राहुल गांधी के भी पोस्टर नहीं दिखे। मगर मोदी हर जगह बिहार में दिख रहे हैं। झारखंड में, छत्तीसगढ़ में, एमपी, यूपी, राजस्थान और बंगाल में भी दिख रहे हैं। अपन अभी महाराष्ट्र और एमपी और राजस्थान के गांवों में जाकर आए हैं। मोदी का डंका वहां भी बज रहा है।
 
अपना मानना है कि देश के गांवों का गरीब तक अब यह मानने लग गया है कि भारत के प्रधानमंत्री के रूप में किसी मोहरे, मुखौटे या कमजोर कठपुतली जैसे आदमी की जरूरत नहीं है। देश को एक मजबूत प्रधानमंत्री चाहिए। बीते एक दशक से देश पर राज करनेवालों की आंतरिक कमजोरियों की वजह से हमारे देश की राजनीतिक जमीन की उर्वरा की तासीर में तरह तरह की तब्दीलियां आ गई हैं। जिनको राहुल गांधी और समूची कांग्रेस को समझने में शायद अभी कुछ साल और लगेंगे। नरेंद्र मोदी शहर तक सीमित नहीं हैं। गांवों की तह तक उनका फैलाव साफ दिख रहा है। रवीश कुमार सही कहते हैं कि कांग्रेस में वो नज़रिया ही नहीं है कि महँगाई के इस दौर में गाँवों की इन तस्वीरों को कैसे पेश किया जाए, इस पर चिंतन करे। कांग्रेस सन्न है, क्योंकि मोदी ने खाली नेम प्लेट पर अपना नाम सबसे ऊपर और सबसे पहले लिख दिया है। जो लोग यह मान कर दिल बहला रहे हैं कि मोदी सिर्फ फेसबुक, ट्वीटर, वॉट्सएप्प पर ही बड़े हो रहे हैं, सोशल मीडिया में ही पसर रहे हैं और टीवी पर ही दिख रहे हैं। वे अपने दिलों को बहलाए रखने के लिए चाहे कुछ भी माने, लेकिन सच्चाई यही है कि मोदी कांग्रेस के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बनकर उभर चुके हैं और उनकी ताकत के तेवर कांग्रेस की सीमाओं के पार जाकर बोल रहे हैं।  
 
                    लेखक निरंजन परिहार राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे 09821226894 पर संपर्क किया जा सकता है.
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