: देश को सामाजिक नेता की जरूरत, मुख्यधारा का मीडिया साम्प्रदायिक नहीं : हरिद्वार : वरिष्ठ पत्रकार और राष्ट्रीय सहारा देहरादून के सम्पादक दिलीप चौबे का मानना है कि राजनीति से समाज का सुधार नहीं होता. इसके लिए स्वयं समाज को आगे आना होगा. जब समाज में चेतना पैदा होगी और सामाजिक नेता उभरेंगे तो समाज सुधर जाएगा और बहुत सारी बुराइयां खुद-ब-खुद खत्म हो जाएंगी. उन्होंने कहा कि समाज को दिशा देने का कार्य पत्रकारों का है जिसे निष्ठापूर्वक किया जाना चाहिए. श्री चौबे यहां गणेश शंकर विद्यार्थी की जयन्ती पर एक विचार गोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे.
इसे नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट (एनयूजे) ने होटल पार्क ग्रैंड में आयोजित किया था. ‘गणेश शंकर विद्यार्थी और पत्रकारिता’ विषय पर मुख्य वक्ता श्री चौबे ने अपने विश्लेषक उद्बोधन में कहा कि यद्यपि पत्रकारिता का स्वरूप स्वतंत्रता के बाद से ही बदलता रहा किन्तु अब यह पूरी तरह परिवर्तित हो चुका है. पत्रकारिता का ध्येय पहले उदात्त व मिशनरी था, आज यह विशुद्ध प्रोफेशन हो गया है. हालांकि उन्होंने इस बात पर सन्तोष जताया कि देश में मुख्य धारा का मीडिया आज भी साम्प्रदायिक नहीं है. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेन्द्र कुमार ने की जिसमें अनेक जनप्रतिनिधि, पत्रकारों और समाज के अन्य वर्गों के लोग उपस्थित थे. इस अवसर पर पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सुशील उपाध्याय, डॉ. योगेश योगी, नवीन पाण्डेय, गुलशन नैय्यर, अवनीश प्रेमी व मुदित अग्रवाल और कला क्षेत्र में उभरती बाल कलाकार खनक जोशी तथा पर्यावरण के क्षेत्र में कार्यरत सुरेन्द्र शर्मा को गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मानित प्रदान किये गये. कार्यक्रम का सञ्चालन प्रोफेसर पी.एस. चौहान ने किया.
अपने सारगर्भित भाषण में श्री चौबे ने कहा कि विद्यार्थीजी पत्रकार तो थे ही, कुशल राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता भी थे जिन्होंने स्वतंत्रता से पूर्व के साम्प्रदायिक दंगों की आग बुझाने में अपना जीवन कुर्बान कर दिया. पत्रकारों के लिए विद्यार्थीजी का जीवन प्रेरणास्पद और अनुकरणीय है. उन्हें आत्मनिरीक्षण करते हुए अपना कार्य कर्मठतापूर्वक पूरा करना चाहिए. उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार उजागर करने तथा इसको मिटाने में अमूमन पत्रकारों से सक्रिय भूमिका की अपेक्षा की जाती है, परन्तु इसे समाप्त करना मीडिया के हाथ में नहीं है क्योंकि इसके पास कोई विधायी अधिकार नहीं हैं. वह एक सचेतन और जागरूक व्यक्ति के रूप में केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का सार्वजनीन हित में सतर्कतापूर्वक इस्तेमाल करता है जो सभी को समान रूप से प्राप्त है. उन्होंने पत्रकारों को आगाह भी किया कि उन्हें कोई भ्रम नहीं होना चाहिए.
राष्ट्रीय सहारा के वरिष्ठ पत्रकार दिलीप चौबे ने कहा कि मीडिया स्वयं अन्ना हजारे नहीं बन सकता. अलबत्ता, भ्रष्टाचार विरोधी किसी आन्दोलन का समर्थन कर सकारात्मक योगदान अवश्य कर सकता है. पिछले कुछ वर्षों के घटनाक्रमों के सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि मीडिया ने इसमें बढ़-चढ़कर अपनी भूमिका निभायी भी है. उन्होंने कहा कि इसी वजह से आज मीडिया को लोकतंत्र की सशक्त आवाज समझा जाता है किन्तु इसकी अपनी सीमाएं हैं. यह जन-निर्वाचित सरकार या जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध विद्रोह नहीं कर सकता. मीडिया समाज का दर्पण है जिसमे सभी की छवि स्पष्ट दिखनी चाहिए. इसी के साथ श्री चौबे ने सन्तोषपूर्वक कहा कि कतिपय अपवादों को छोड़ दिया जाये तो मीडिया अपनी भूमिका का निर्वाह ईमानदारी और सतर्कता के साथ कर भी रहा है.
श्री चौबे ने इसके साथ यह भी जोड़ा कि कथित बड़े पत्रकारों के मुकाबले तहसील व ग्रामीण स्तर पर कार्यरत पत्रकार अधिक सराहनीय और जिम्मेदारी के साथ अपना दायित्व निभा रहे हैं. उन्होंने कहा कि बड़ा होने के बाद तो पत्रकारों के साथ अनेक विसंगतियां भी जुड़ जाती हैं. इनसे बच पाना दुष्कर हो जाता है. यहीं पर वैचारिक आग्रह अथवा दुराग्रह पत्रकारों को अपना फर्ज निभाने से विमुख कर देता है. कर्त्तव्यपथ से इस भटकाव का समाज पर बुरा असर पड़ता है.
अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में प्रोफेसर सुरेन्द्र कुमार ने कहा कि मीडिया लोकतंत्र का प्रमुख रक्षक है किन्तु समाज की नकारात्मक घटनाएं ही समाचारपत्रों की सुर्खियां बनती हैं. पत्रकारिता अर्थप्रधान हो गयी है लिहाजा उससे अक्सर अनर्थ जुड़ जा रहा है. गोष्ठी के विशिष्ट अतिथि उद्योगपति हरेन्द्र गर्ग ने कहा कि पत्रकार समाज के सशक्त प्रहरी हैं. विधायक प्रेमचन्द्र अग्रवाल ने पत्रकारों से आग्रह किया कि वे विद्यार्थीजी की विचारधारा को अपनी कार्यशैली में जोड़ें.
गोष्ठी में उपस्थित प्रमुख लोगों में पद्मश्री खालिद जहीर, गांधीवादी पुरुषोत्तम शर्मा, सुभाष कपिल, कैलाश केशवानी, डॉ. कमलकान्त बुधकर, सुनील दत्त पाण्डेय, डॉ. रजनीकान्त शुक्ल, प्रवीण झा, विजय विश्नोई, अवधेश पुरी, सञ्जय आर्य, रामचन्द्र कनौजिया, अमित शर्मा, विवेक शर्मा, गुरप्रीत कालरा, चन्द्रशेखर जोशी, मञ्जू नेगी, राधिका नागरथ, राजेन्द्र नाथ गोस्वामी, ललितेन्द्र नाथ, राम अवतार सन्तोषी, मनोज सैनी, मनोज रावत, सन्तोष उपाध्याय, लव शर्मा तथा शिवा अग्रवाल के नाम उल्लेखनीय हैं.
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