जयपुर : राजस्थान हाईकोर्ट में बैक डोर एंट्री से नौकरी हथियाने के खिलाफ दायर याचिका पर आज मंगलवार को राजस्थान हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस की खंडपीठ में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस अमिताभ राय और जस्टिस वी एस सिराधना की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई के लिए जस्टिस अजय रस्तोगी की खंडपीठ के समक्ष भेज दिया है। इससे पहले आज वरिष्ठ अधिवक्ता पूनम चंद्र भंडारी ने अदालत में प्रार्थना पत्र पेश किया और व्यक्तिगत रूप से पक्षकार बनने की गुहार लगाई। अदालत ने इस मामले को दूसरी बैंच के समक्ष लगाने के आदेश दिए हैं इससे पहले सीजे खुद के समक्ष इस मामले को लगाने के आदेश दिए थे।
इस याचिका में चहेतों को बैक डोर एंट्री देने और सीजे के निजी स्टाफ के करीबियों को नौकरी देने पर सवालिया निशान लगाते हुए याचिकाकर्ता त्रिलोक चंद सैनी को नौकरी देने की मांग की गई थी। याचिका दायर होने के बाद हाईकोर्ट में बैक डोर एंट्री से नौकरी हथियाने का मामला एक बार फिर से गरमा गया है। बैक डोर एंट्री के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट के एडवोकेट ललित शर्मा ने याचिका दायर कर दबे पडे जिन्न को फिर से बाहर ला दिया है। एडवोकेट ललित शर्मा ने याचिकाकर्ता त्रिलोक चंद सैनी की ओर से याचिका दायर कर न केवल याचिका कर्ता को भी बैक डोर एंट्री के जरिए नौकरी देने की कोर्ट से गुहार लगाई है जबकि बैक डोर एंट्री से आए चहेतों को चिंता में डाल दिया है।
याचिकाकर्ता ने चहेतों को बैक डोर एंट्री के जरिए पहले नौकरी पर लेने और बाद मे परमानेंट करने को न केवल चुनौती दी है बल्कि हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जरनल विजय कुमार व्यास को पक्षकार बनाते हुए इस मामले का संपूर्ण रिकॉर्ड अदालत में तलब करने की गुहार लगाई है ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके कि किस तरह से बिना विज्ञापनों को अपने चहेतों को नौकरियां नियमों को ताक पर रख कर बांटी गई। एडवोकेट ललित शर्मा ने याचिका में बताया कि सन 1999 में जस्टिस एम एन भंडारी (तब वकील थे जस्टिस एम एन भंडारी) ने भी इसी मुद्दे को लेकर याचिका दायर की और जस्टिस जे सी वर्मा ने न केवल बैक डोर नौकरियों को अवैध ठहराया था बल्कि 104 लोगों को नौकरी से निकाला था। उस समय तत्कालीन रजिस्ट्रार जरनल ने यह अंडर टेकिंग दी थी कि हाईकोर्ट में कभी भी आगे से बेक डोर नौकरी नहीं दी जाएगी।
बैक डोर एंट्री के खिलाफ पूर्व में भी एडवोकेट पूनम चंद भंडारी ने भूख हडताल की थी और सीजे को पत्र लिखकर बैक डोर एंट्री से नौकरी से आए लोगों को हटाने की मांग की थी। राजस्थान बार कौंसिल के चैयरमेन संजय शर्मा ने भी इस तरह से बैक डोर एंट्री से नौकरी देने की कडे शब्दों में निंदा की है। उन्होंने कहा कि बैक डोर एँट्री से भाई भतीजा वाद को बढ़ावा देती है और इस कारण योग्य उम्मीद्वारों का चयन नहीं हो पाता है।
एडवोकेट ललित शर्मा ने याचिका में बताया कि किस तरह से बिना किसी विज्ञापन के अपने चहेतों को आनन फानन मे नौकरियां बाट दी और बाद में उन्हें परमानेंट कर पदोन्नति भी दे दी। पूर्व मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा ने बैक डोर एंट्री की फाइल को सामने रखने के लिए मातहतों को मना कर दिया था लेकिन चीफ जस्टिस अमिताव राय ने आते ही इन कर्मचारियों को न केवल एरियर दिया बल्कि बैक डोर एंट्री से घुसे कर्मचारियों को परमानेंट करते हुए पदोन्नत भी कर दिया।
याचिका में बताया कि चीफ जस्टिस अमिताव राय के कोर्ट मास्टर घनश्याम शर्मा के बेटे अभिषेक शर्मा, पूर्व रजिस्ट्रार जनरल टी एच सम्मा के बेटे मोहसिन खान, चीफ जस्टिस के पीपीएस के पीए दिनेश शर्मा की पत्नी लीला शर्मा, चीफ जस्टिस के बंगले पर कार्यरत लंबे समय से जमे कर्मचारी गुलशन अरोड की पत्नी सीमा, चीफ जस्टिस के बंगले पर कार्यरत सुदीप माथुर की रिश्तेदार लक्ष्मी माथुर, चीफ जस्टिस के पीए शशिकांत गौड का भाई ऋषिकांत गौड़ और पूर्व न्यायाधीश ए के माथुर के करीबी और पूर्व चीफ जस्टिस दीपक वर्मा और पूर्व न्यायाधीश आर सी गांधी के करीबी भी बैक डोर एंट्री से नौकरी हथियाऩे में कामयाब रहे थे।