नवभारत की पहचान आजादी की लड़ाई से लेकर अब तक एक विश्वासनीय अखबार के रूप में रही है। लेकिन कुछ जगह अब इस विश्वास को कैश कराया जाता है। जहां यह खेल खुलेआम चल रहा है वह है नवभारत का रायगढ़ एडीशन। अभी यहां ब्यूरो चीफ प्रमोद अग्रवाल को बनाया गया है जो सिर्फ अपने मतलब का समाचार बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं और अच्छे समाचार रोक देते हैं। समाचारों को अपने हिसाब से कैश करने का प्रयास करता है।
जैसे यदि शहर में एक बड़े निजी अस्पताल (संजीवनी अस्पताल) में छग नर्सिंग होम एक्ट के तहत कार्यवाही हुई तो इसे लास्ट पेज के बाॅटम में छोटी जगह पर लगाया गया जबकि बार एसोसिएशन के चुनाव की खबर प्रमुखता से लगाई गई। चुनाव में ऐसा कुछ खास नहीं था जो चर्चा का विषय बने। इसी तरह राइस मिलरों पर कार्यवाही 4 दिन पहले हुई लेकिन फालोअप उसका 4 दिन बाद लगा वह भी प्रथम पेज पर लीड समाचार के रूप में।
आदिवासियों की जमीन पर उद्योग का कब्जा बार-बार यह समाचार विभिन्न तरीकों से पेश किया गया और लीड समाचार के रूप में लेकिन नीयत कुछ और थी। लारा एनटीपीसी में भूमि घोटाले का प्रमुख दोषी कलेक्टर है जिसके रहते खरीद फरोस्त पर रोक लगाने के लिए धारा 4 प्रकाशित हुई। फिर भी उसे के इशारे पर एक जमीन के सैकड़ों टुकड़े हुए तब प्रशासन मौन था। फिर जांच के नाम पर भू स्वामियों से और वसूली जबकि सच्चाई यह है कि जांच के आदेश के बाद भी मुआवजे बंटे। लेकिन कलेक्टर की चापलूसी कर बार-बार भूमि घोटाले को उठाना और कलेक्टर को दोषी ना बताना। आदि शामिल है।
अंदर का बड़ा सच
सामान्यतः देखने में ये लीड समाचार एक बेवकूफी पूर्ण चुनाव कहे जा सकते है लेकिन इसके पीछे का असली कारण हैरान कर देने वाले है। दरअसल प्रमोद का बड़ा भाई प्रहलाद राय चक्रधर बाल सदन (अनाथालय) का सचिव था और 3 सितंबर 2013 को एक नाबालिक लड़की से दुष्कर्म का प्रथम आरोपी था तब से यह फरार था और 12 फरवरी 2014 को न्यायालय में सरेंडर किया। इसे देखते हुए पूर्व में ही वकीलों की जी हजूरी चालू थी। इसलिए बार एसोसिएशन के चुनाव को प्राथमिकता दी गई जबकि यह अंदर के पेज का समाचार होना चाहिए और अन्य अखबारों में इसे प्राथमिकता नहीं दी गई।
इसी तरह राइस मिलरों की मिली भगत से करोड़ों के धान की फर्जी खरीदी का समाचार इसलिए लगाया गया कि राइस मिलरों से इस मुद्दे पर पैसे लेकर सेटिंग की जा सके। इसमें कामयाब भी हुआ और प्रमोद, पत्रिका के ब्यूरो चीफ प्रवीण त्रिपाठी, क्रांतिकारी प्रेस के मालिक रामचंद्र शर्मा के बीच 50 हजार रूपए का बंटवारा हुआ। तीन प्रेस की जुगलबंदी और रह रहकर एक दूसरे द्वारा फालोअप लेना एक ब्लैकमेलिंग का तरीका है। आदिवासियों की जमीन के नाम से जिन उद्योगों का नाम आया वे प्रेस का मुंह बंद करने के लिए कुछ राशि तो जरूर देगे। इसलिए बार बार इस मुद्दे को उछाला गया और अब भी रहकर उछाला जा रहा है।
उन्हीं का समाचार क्यों लगा
अब वेलेनटाइन डे पर बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष जेम्स फिलिप व आईबीसी के ब्यूरो चीफ अविनाष पाठक के सफल प्रेम कहानी की खबर नवभारत सुरूचि में आल एडीषन में लगी। कारण बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष ही नाबालिग से रेप मामले की रिपोर्ट लिखाई और बार-बार संपर्क करने पर उनका समझौते से जवाब ना था। लेकिन समाचार छपने के बाद वे नरम हो गई। और अविनाश पाठक भी समाचार कवर ना करें इसलिए उन्हें प्राथमिकता दी गई। कुल मिलाकर कहे तो हर समाचार के पीछे एक सुनियोजित चाल होती है जिसका एक अपना मतलब होता है। इस तरह एक बैनर का फायदा निजी उपयोग में किया जा रहा है। नवभारत के नाम का ही असर है कि सरेंडर के बाद 14 फरवरी से आज तक दुष्कर्म का आरोपी प्रहलाद राय अग्रवाल आज भी बिना किसी गंभीर बीमारी के ना होते हुए भी अस्पताल में भर्ती है।
क्या है परंपरा
चूंकि रायगढ़ में मारवाड क्षेत्र के व्यापारी निवास करते है और वे हर क्षेत्र में कब्जा बनाए रखना चाहते है। पहले तो सफल भी हुए एक समय था जब भास्कर में अनील रतेरिया ब्यूरो चीफ हुआ करते थे जबकि लिखना एक शब्द नहीं आता। नवभारत में प्रमोद अग्रवाल का भी यही हाल था। भास्कर ने शिकायत के बाद अनील को व नवभारत ने भी प्रमोद अग्रवाल को निकाला। और नवभारत में दिनेष मिश्रा को ब्यूरो चीफ बनाया लेकिन वे खुद को प्रेस से ऊपर मानने लगे और अपना विकल्प किसी और को नहीं जानते थे। उन्हें हटाकर फिर प्रमोद को लाया गया। अब फिर वही खेल जारी है। जब प्रमोद अग्रवाल को नवभारत से हटाया गया तो इस्पात टाइम एक बड़े पैकेज में ज्वाइन किए और तीन साल में 35 लाख का विज्ञापन दिए जिसमें 25 लाख रूपए सरकारी थे। यह विज्ञापन जनसंपर्क विभाग को 10 से लेकर 20 प्रतिशत कमीशन पर दिए गए। लिए गए। अर्थात् जनसंपर्क विभाग द्वारा निर्धारित कोटे से ज्यादा विज्ञापन पैसे देकर लिए गए। लेकिन रायपुर में इस्पात टाइम को जबरदस्त घाटा हुआ और प्रेस बंद कर दिया गया साथ ही प्रिटिंग मशीन हटा ली गई। अब रायगढ़ शहर में नवभारत का प्रसार 2900 है जबकि इस्पात टाइम का प्रसार 300 कापी है। मतलब साफ है नवभारत की एक पुराने पाठकों में पहचान है और विज्ञापन भी खुद चलकर आता है। किसी व्यक्ति विशेष के रहने या ना रहने पर असर नहीं पड़ता।
किसका कितना असर
रायगढ़ में पेपरों की समीक्षा करें तो शहर में सबसे ज्यादा प्रसार भास्कर का 7000 कापी। नवभारत का 2900, हरिभूमि का 1900, पत्रिका का 2000 लेकिन कापी 5600 उतरती है। लोकल अखबार केला प्रवाह का 6500 कापी रायगढ़ शहर में बंटता है। जबकि नई दुनिया महज 500 कापी है। विज्ञापन देखे तो दैनिक भास्कर का 1 करोड़ 25 लाख सालाना विज्ञापन आय है नवभारत की 70 से 80 लाख, हरिभूमि की 30 से 35 लाख, केलो प्रवाह की 90 लाख रूपए सालाना आय है। लेकिन कम खर्च में ज्यादा आय के हिसाब से नवभारत बेहतर है। कारण पुराने पाठकों का प्यार व ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच। लेकिन अब पत्रकारिता में दलाली नवभारत के साख पर बट्टा लगा रही है। वैसे भी विज्ञापन प्रभारी को कभी समाचार की कमान नहीं देनी चाहिए। यदि विज्ञापन प्रभारी इतने योग्या होते है दो अलग विभाग बनाने की जरूरत नहीं होगी। विज्ञापन के आदमी को समाचार पर हस्तक्षेप से रोकना चाहिए।
एक पत्रकार के भेजे खत के अनुसार.