Rajen Todariya : विजय बहुगुणा उत्तराखंड के छठे मुख्यमंत्री होंगे। कांग्रेस आलाकमान ने जब जसपाल राणा को कांग्रेस में शामिल किया था तब ही संकेत दे दिया था कि बहुगुणा ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनाए जायेंगे और उनकी जगह जसपाल राणा टिहरी संसदीय सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। समझा जाता है कि कांग्रेस आलाकमान हरीश रावत को पहले ही यह स्पष्ट कर चुका था। शायद इसीलिए रावत ने हरिद्वार और देहरादून जिले से कमजोर प्रत्याशियों की वकालत की। हरीश रावत के अधिकांश प्रत्याशी चुनाव हारे। हरिद्वार जिले में कांग्रेस की जो दुर्गत हुई उसी ने कांग्रेस को पूर्ण बहुमत का रास्ता रोक दिया।
कहा जा रहा है कि रावत नहीं चाहते थे कि कांग्रेस अपने बल पर सरकार बनाए। उन्होने बसपा के खिलाफ कमजोर प्रत्याशी उतारे। अंबरीष रानीपुर से चुनाव जीतने जा रहे थे पर उनको कांग्रेस का टिकट नहीं मिलने दिया। वह बसपा को तुरुप के पत्ते के रुप में इस्तेमाल करना चाह रहे थे। रावत का अनुमान शायद यह था कि बसपा 7-8 सीट जीत जाएगी और कांग्रेस 25-26 सीट तक ही रह जाएगी। तब बसपा कांग्रेस को सशर्त समर्थन देकर उन्हे मुख्यमंत्री बनवा देगी।
बसपा और रावत के बीच का यह तालमेल तब भी साफ हो गया जब 6 मार्च को हरीश रावत ने बसपा के समर्थन से सरकार बनाने का ऐलान कर दिया। रावत के इस बयान ने कांग्रेस आलाकमान के कान खड़े कर दिए। क्योंकि निर्दलीय कांग्रेस के ही बागी थे और कांग्रेस को समर्थन देने से उनको परहेज नहीं था। इन निर्दलीयों में सभी हरीश विरोधी थे। हरीश रावत ने तुरुप के पत्ते के रुप में आखिरी वक्त में बसपा का इस्तेमाल किया। लेकिन यह उनके खिलाफ गया। आलाकमान में उनकी छवि पार्टी को नुकसान पहुंचाकर बसपा को लाभ पहुंचाने वाले नेता की बन गई। कांग्रेस के बाकी सारे धड़ों द्वारा हरीश की मुखालफत ने भी उन्हे नुकसान पहुंचाया।
सोमवार की रात उनके आवास के बाहर सोनिया गांधी के खिलाफ जिस तरह से नारेबाजी हुई उससे उन्हे और नुकसान होने वाला है। सन् 2002 में भी उनके ऐसे ही समर्थकों ने सोनिया गंाधी के पुतले जलाकर उन्हे दस जनपथ की काली सूची में दर्ज करवा दिया था। हरीश रावत बुद्धिमान नेता हैं और उनका मीडिया मैनेजमेंट भी बेहतरीन है पर पराजय के क्षणों में उनका और उनके समर्थकों का संयम जवाब दे जाता है।
उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार राजन टोडरिया के फेसबुक वॉल से साभार.