दिल्ली में फिर बलात्कार प्रसंग लौट आया है। राष्ट्रपति भवन के दरवाजे माओवादी घोषित बंगाल के बारासात के पास कामदुनि गांव की टुम्पा कयाल, मौसमी कयाल समेत तमात महिलाओं की दस्तक के साथ। रेल राज्यमंत्री अधीर चौधरी उन्हें राजधानी एक्सप्रेस से राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के दरबार तक ले गये हैं। कामदुनि का चेहरा बलात्कार सह माओवादी प्रसंग से काफी पहले सत्तर के दशक में पूरे देश ने देख लिया है अमिताभ बच्चन, नूतन और पद्मा खन्ना अभिनीत फिल्म सौदागर के मार्फत। मछली भेड़ी और खजूर के पेड़ों के लिए यह गांव विख्यात है। जहां अमिताभ बच्चन ही नहीं , बांग्ला फिल्मों की सर्वकालीन श्रेष्ठ रोमांटिक जोड़ी उत्तम कुमार और सुचित्रा सेन ने भी कई फिल्मों की शूटिंग के सिलसिले में डेरा डालती रही है।
रोमांस और प्राकृतिक छटाओं से घिरा यह गांव राजनीति का आखेटगाह में तब्दील हुआ है। इस गांव पर बसात्कारी सत्ता का कब्जा हो गया है। बलात्कार के बाद हत्या की शिकार लड़की तो मर गयी,लेकिन यह गांव रोज मर मर कर जी रहा है। बलात्कार के न्याय की गुहार लगोने वाली महिलाओं को खुद मुख्यमंत्री ने माओवादी घोषित कर दिया है। वे चरम असुरक्षा और अनिश्चितता से घिरी हुई हैं पर अपनी मांग से पीछे हट नहीं रही है।
कामदुनि एक प्रतीक है। भारतवर्ष का प्रतीक। भारत के गांवों का यही सामाजिक यथार्थ है। राजनीतिक सत्ता संघर्ष के शिकार देहात। जिसका चरित्र सिरे से बदल गया है। जमीन बेदखल हो गयी है। आजीविका है नहीं। कुपोषण और खाद्य असुरक्षा के शिकार लोग अब सामाजिक सुरक्षा का मोहताज बनकर सिर्फ सत्ता संघर्ष में सत्ता वर्चस्व के लिए वोट बैंक में तब्दील है। हर गांव में राजनीतिक शतरंज बिछी है और बिसात पर है असहाय निहत्था गांव। वाम शासन में जो अपऱाधकर्मी इलाका दखल के फौजी हुआ करते थे, वे अब परिवर्तन राज के सिपाहसालार हैं। जिन इलाकों में वाम वर्चस्व के लिए दूसरा रंग निषिद्ध था, वहां अब लाल निषिद्ध है। लेकिन राजनीतिक शिकंजे में कैद सामाजिक यथार्त में कोई परिवर्तन हुआ नहीं है।
मरीचझांपी में 1979 में इसी तरह महिलाओं से बलात्कार हुआ था। जिंदा शरणार्थियों को बाघों का चारा बना दिया गया था। गोलियां बरसायी गयी थीं। कत्ल हुए थे। उनकी तमाम नावें डुबो दी गयी थी। पेयजल में जहर मिला दिया गया था। स्कूल और चिकित्सालय शरणार्थी बस्ती के साथ फूंक दिये गये थे। लेकिन वे शरणार्थी वोट बैंक नही थे। उनकी सुनवाई कहीं नहीं हुई। मानवाधिकार और लोकतंत्र की आवाजें वाम शासन के अवसान के बावजूद खामोश है। हमने प्रत्यक्षदर्शियों और उस नरसंहार से बच गये लोगों की आपबीती को लेकर जो फिल्म बनायी, उसका चुनावों में खूब इस्तेमाल हुआ। लेकिन सत्ता बदलने के बावजूद न्याय नहीं हुआ।
हम लोग दिल्ली में हुए बलात्कार और बलात्कार विरोधी कानून के सिलसिले में भी बलात्कार रक्षा कवच के बारे में लगातार बोलते लिखते रहे हैं। कामदुनि कोई बंगाल के किसी गांव का नाम नहीं है। ऐसे कामदुनि हर राज्य में हर जिले में मिल जायेंगे। पक्ष विपक्ष सत्ता समीकरण के मुताबिक तय होगा। लेकिन बाहुबल धन बल सर्वस्व राजनीति का निरंकुश आखटगाह है हर कामदुनि, जहा प्रतिरोध की हर आवाज माओवादी और राष्ट्रविरोधी करार दी जाती है।
इस मायने में लोक गणराज्य भारतवर्ष में हर आदिवासी गांव कामदुनि है। पूर्वोत्तर भारत का चप्पा चप्पा कामदुनि है। लेकिन वहा से आती चीखें राजधानी के कानों में नहीं पहुंचती। कामदुनि की किस्मत अच्छी है कि उसे कम से कम राष्ट्रपति भवन के दरवाजे पर दस्तक देने का अवसर तो मिला। कामदुनि के चेहरे मीडिया पर फोकस होते रहेंगे कई दिन। घोटालों से फुरसत मिल गयी है मीडिया को और अब हिमालय में सनसनी खोजते खोजते ऊब होने लगी होगी। मुद्दा दर मुद्दा भटकते हुए राजनीति के निर्मम बलात्कारी, लुटेरा ौर कारपोरेट चरित्र को ही हम मजबूत कर रहे हैं।
कामदुनि को देखते हुए याद करने की बात है कि शालबनी में जिंदल के कारखाने का शिलान्यास करके लौट रहे मुख्यमंत्री के काफिले में बारुदी सुरंग पाये जाने के साथ साथ किसतरह बंगाल के पूरे वनक्षेत्र और वहां रहने वाले लोगों को माओवादी बना दिया गया। जिनके दमन के लिए अब भी सशस्त्र सेनाएं वहा तैनात हैं। अब भी जारी है आपरेशन लालगढ़ और आपरेशन ग्रीन हंट समेत तमाम रंग बिरंगी अभियान। शुक्र है कि कामदुनि और बारासात में न जंगल है और न आदिवासी। वरना अब तक आपरेशन कामदुनि शुरु हो गया होता।
बंगाल में अब तो अप्रिय प्रश्न करने पर भी सत्ता किसी को भी माओवादी बना सकती है। मंत्री औरविधायक चाहे तो किसी नगर या इलाका विशेष को जब चाहे तब माओवादी घोषित कर दें। बाकी रक्रारवाई पुलिस और सेना के हवाले। यह व्यवस्था दंडकारण्य और दूसरे इलाकों में माओवादी घोषित कर दिये गे लोगों का सच जानने का पैमाना बन नहीं सकता, सही है। लेकिन इस देश के कारपोरेट राज में कारपोरेट सामजिक यथार्त को समझने के लिए तो निश्चय ही मददगार है। बशर्ते कि आप इसके लिए तैयार हो।
गुवाहाटी की सड़कों पर नंगी दौड़ायी जाती आदिवासी कन्या के वीडियो फुटेज से हम लोग निजात पा चुके हैं। दिल्ली बलात्कार कांड के खिलाफ मोमबत्ती जुलूस का सिलसिला भी बंद है। स्त्री उत्पीड़न विरोधी कानून बन गया है पुलिस और सेना को पूरा रक्षा कवच के साथ। मणिपुर की माताओं की नग्न तस्वीरें टीवी पर देखकर जो लोक गणराज्य न्याय नहीं कर सका, मरीचझांपी जिसके विवेक को कचोट न सका, मध्य भारत की चीखें जिसे सुनायी नहीं पड़ती,वह कामदुनी के साथ कितना न्याय करेगा इसकी प्रतीक्षा रहेगी।
पश्चिम बंगाल में उत्तर 24 परगना जिले के बारासात पुलिस थाना क्षेत्र में पुलिस ने 7 जून को कालेज जाने वाली एक 20 साल की छात्रा का शव बरामद किया गया है जो कालेज से परीक्षा देकर रोज की तरह घर लौट रही थी। परिजनों औरग गांववालों के मुताबिक जो सामूहिक बलात्कार के बाद उसकी हत्या की गई है। वे सत्ता समर्थित बाहुबली प्रोमोटरों के खिलाफ लगातार बोल रहे हैं। मुख्यमत्री वारदात के दस दिन बाद पांच मिनट के लिए वहां पहुंची तो टुम्पा कयाल , मौसमी कयाळ और गांव की दूसरी औरतों ने उनपर सवालों की झड़ी लगा दी। इसपर मुख्यमंत्री ने आपा खोकर बलात्कारियों और प्रदर्शनकारियों को माकपाई बता दिया। फिर चुनाव प्रचार अभियान के दौरान उन्होंने पहले पर्दर्शनकारी महिलाओं को माओवादी घोषित कर दिया और फिर यह भी कह दिया कि कामदुनि में उनकी हत्या हो सकती थी।
जाहिर है कि कामदुनी में छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार और फिर उसकी हत्या कर दिए जाने की घटना के बाद आम लोगों के गुस्से को भी उन्होंने राजनीति के अपने इसी चश्मे से देखा है।उसी मुताबिक कार्रवाई और राजनीति चल रही है। हालंकि यह मामला रफा दफा होने को है। पुलिस ने मुख्यमंत्री की घोषणा मुताबिक महीनेभर में जो चार्जशीट दाखिल किया है , अह आधा अधूरा ही नहीं है , बल्कि उसमें अभियुक्तों को बेकसूर कलास हो जाने का पूरा इंतजाम है। इस पर अदालत तक ने जांच अधिकारी की खिंचाई कर दी। अब पता चला है कि मृतका के भाई से जबरन पुलिस ने सादा कागज पर दस्तखत करा लिये और अपनी मर्जी के मुताबिक कथा गढ़ दी।घटना के बाद आक्रोशित लोग लगातार ये बात कह रहे हैं कि बारासात में जंगलराज कायम है। बारासात और बैरकपुर की दूरी कुछेक किमी है। सीधे सड़क से जुड़े दोनों शहरों का फासला तेज शहरीकरण के कारण निरंतर घट रहा है। दोनों नगर इस वक्त बंगाल में कानून व्यवस्था का पर्याय बने हुए हैं।
पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध को लेकर चारों ओर से आलोचनाओं का शिकार हो रहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी सरकार का बचाव करते हुए पूछा है, 'क्या राज्य में सभी महिलाओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है?' देश में पिछले साल महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश सबसे आगे रहे। पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों के 12.7 फीसदी (29133 ) केस दर्ज किए गए। फिर पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ बड़े अपराधों को लेकर मचे शोर के बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक पंचायत चुनाव रैली में महिलाओं से सवाल किया कि क्या उन्हें गलियों में निकलने से डर लगता है?
फिर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक रैली में कहा कि टीवी पर बलात्कार की चर्चा करने वाले तथाकथित बुदि्धजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता पॉर्नोग्राफी से जुड़े हुए हैं।बर्दवान जिले के गलसी में ममता ने कहा कि कुछ समाचार चैनल सीपीएम के लिए काम कर रहे हैं। इन चैनलों पर टॉक शो आयोजित किए जाते है। तथाकथित बुदि्धजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता इसमें भाग लेकर हमारी मां और बहनों का अपमान करते हैं। वे हमारे भाईयों का भी अपमान कर रहे हैं. हमारे युवा भाई जो इस तरह की चीजें नहीं जानते वो इनके चलते बर्बाद हो रहे हैं।टॉक शो में भाग लेने वाले खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं लेकिन इन्होंने पूरी जिंदगी में कोई सामाजिक कार्य नहीं किया। सिर्फ पैसों के लिए टॉक शो में बलात्कार और सामूहिक बलात्कार पर चर्चा करते हैं। ये टॉक शो नहीं टेक शो है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि सत्ता में लौटने के लिए माकपा ने उनकी हत्या की खातिर माओवादियों से हाथ मिलाया है। ममता ने माकपा के साथ साथ साथ कांग्रेस और भाजपा की भी आलोचना की। ममता ने उत्तरी 24 परगना जिले के वनगांव के पास कहा कि पश्चिम बंगाल में सत्ता में लौटने के प्रयास के तहत माकपा ने उनकी हत्या का खाका तैयार करने में माओवादियों से हाथ मिलाया है। उन्होंने कहा कि उनके इरादे कभी सफल नहीं होंगे।
ममता अपने पहले पंचायत चुनाव अभियान में बोल रही थीं। उन्होंने कांग्रेस और भाजपा पर भी आरोप लगाया। मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि उनके पास ठोस खुफिया रिपोर्टें थीं कि सोमवार को कामदुनी गांव की उनकी यात्रा के दौरान हत्या की साजिश रची गयी थी।उन्होंने आरोप लगाया कि जब वह सामूहिक बलात्कार की पीड़ित के घर गयी थीं, उस दौरान बाहरी लोग गांव में घुस आए थे। उन्होंने कहा कि उनके सुरक्षाकर्मियों ने बाद में बताया कि हत्या की साजिश रची गयी थी जिसका बाद में पता लगा।
इसी बीच कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कहा कि बारासात के कामदुनी में कॉलेज की एक छात्रा से सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले की सीआईडी जांच की वह निगरानी करेगा। साथ ही उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा जांच की समय सीमा तय करने के औचित्य पर भी सवाल खड़े किए। मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्यो बागची की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि सात जून को हुए जघन्य हत्या की जांच की निगरानी अदालत करेगी और सीआईडी से कहा कि 30 जुलाई तक वह जांच की प्रगति रिपोर्ट पेश करे।
यह मामला अदालत के समक्ष 30 जुलाई को सुनवाई के लिए आएगा। घटना की जांच के लिए विशेष जांच दल के गठन और अदालत द्वारा जांच की निगरानी के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने राज्य प्रशासन के मुखिया द्वारा आरोपपत्र दायर करने और जांच के पूरा होने की समय सीमा तय करने के औचित्य पर सवाल किए। घटना के बाद 17 जून को कामदुनी दौरे पर गई ममता बनर्जी ने कहा था, ‘‘हम दोषियों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई का वादा करते हैं। हम 15 दिनों के अंदर आरोपपत्र दायर करेंगे और दोषियों को एक महीने के अंदर दंडित किया जाएगा। सरकार की तरफ से हम दोषियों के लिए मौत की सजा की मांग करेंगे।’’
खंडपीठ ने कहा कि ऐसी टिप्पणियां जांचकर्ताओं पर दबाव बनाती हैं और इससे जल्दबाजी में जांच होती है जिससे खामियों की गुंजाईश होती है। ऐसी टिप्पणियों को लोक लुभावन करार देते हुए पीठ ने कहा कि प्रशासन के प्रमुख पद पर आसीन व्यक्ति को ऐसी टिप्पणी करने में सावधानी बरतनी चाहिए। वकील बिकास भट्टाचार्य और उदयशंकर चटर्जी की जनहित याचिका में लड़की के परिजनों को 50 लाख रुपये मुआवजे का भी आग्रह किया गया है। यह लड़की सात जून को विश्वविद्यालय का परीक्षा देने के बाद जब घर लौट रही थी तो उससे बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी गई थी।
इसके बाद जाकर कहीं कामदुनि सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड मामले मे अपराध जांच विभाग सी आई डी ने आज मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत मे एक पूरक आरोप पत्र दाखिल किया। इस आरोप पत्र मे उन तीन लोगो के नाम है जिनके नाम एफ आई आर मे र्दज है। इनमे आरोपी अमीन अली. नूर अली उर्फ नूरो और मोहम्मद रफीक शामिल है। तीसरा आरोपी फरार है। पहला आरोप पत्र पिछले वर्ष 28 जुलाई को दाखिल किया था जिसमे छह आरोपियो के नाम थे। आज जो आरोप पत्र दाखिल किया गया है उसमे राज्य की फोरेसिक लेबोरेट्री की रिपोर्ट भी शामिल है। हालांकि एजेसी नेशनल फारेसिक लेबोरेट्री की रिपोर्ट अभी नहीं मिली है।इस मामले के नौ आरोपियो के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 ए. 302. 376 डी. 201 . 120 बी के तहत मामले र्दज किए गए है।
गौरतलब है कि एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2012 में पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ 30,942 आपराधिक मामले दर्ज किए गए, जिसमें 2,046 दुष्कर्म के मामले, अपहरण के 4,168 मामले, दहेज हत्या के 593 मामले तथा महिलाओं के साथ क्रूरता के 19,865 मामले हैं।
एनसीआरबी के ताजा आकड़े प्रकाशित होने के साथ ही पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारियों ने उच्चस्तरीय बैठक की जिसके तुरंत बाद उन्होंने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया। राज्य के पुलिस महानिदेशक नापराजित मुखर्जी ने एनसीआरबी से इसका डिस्क्लेमर भी प्रकाशित करने का अनुरोध किया ताकि मीडिया में उत्पन्न गलतफहमी दूर हो सके। मुखर्जी ने कहा, "हमने उन्हें (एनसीआरबी) कई डिस्क्लेमर भेजे हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि वे इसे प्रकाशित नहीं करेंगे। हमने उनसे फिर से डिस्क्लेमर प्रकाशित करने का आग्रह किया है ताकि मीडिया में उत्पन्न गलतफहमियां खत्म की जा सकें।"
मुखर्जी ने कहा कि 2011 की अपेक्षा 2012 में राज्य में दुष्कर्म के मामलों में काफी कमी आई है, जबकि महिलाओं के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों में महिलाओं पर पति के द्वारा किए गए मारपीट के मामलों की संख्या बहुत ज्यादा है। राज्य के मुख्य सचिव संजोय मित्रा ने कहा कि राज्य सरकार महिलाओं के खिलाफ दुष्कर्म एवं आपराधिक मामलों को जरा भी बर्दाश्त न करने के प्रति प्रतिबद्ध है।
वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार और एक्टिविस्ट पलाश विश्वास का विश्लेषण.