मध्य प्रदेश के शहर इंदौर में इंदौर प्रेस क्लब के प्रतिष्ठा प्रसंग 'राहुल स्मरण' में राहुल बारपुते जी को याद किया गया। इस प्रसंग की रिपोर्ट पढ़कर मैं भी पुरानी यादों में चला गया। भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) नई दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई करते समय यह बताया गया था कि हिंदी पत्रकारिता तीन समाचार पत्र नई दुनिया, अमर उजाला और राजस्थान पत्रिका ऐसी मिसाल हैं जिन्हें किसी उद्योगपति ने नहीं बल्कि श्रमजीवी पत्रकारों ने खड़ा किया और हिंदी पत्रकारिता में ये तीनों समाचार पत्र तीर्थ धाम जैसे हैं जहां कार्य करना पत्रकार अपना सौभाग्य समझते हैं।
मैं अपना सौभाग्य समझता हूं कि इन तीनों समाचार पत्रों से मुझे किसी न किसी रूप में जुड़ने का मौका मिला। राजस्थान पत्रिका, जयपुर में कार्य किया। इसके बाद भी वहां फ्रीलासंर के तौर पर बिजनेस और राजनीति पर कई लेख लिखे। अमर उजाला के बिजनेस न्यूज पेपर अमर उजाला कारोबार के मुंबई ब्यूरो में कार्य करने का मौका मिला। तीसरा, नई दुनिया में सीधे नौकरी करने का अवसर नहीं मिला लेकिन नई दुनिया और इसके बिजनेस पेपर 'भावताव' में लंबे समय तक फ्री लांसर के तौर पर लिखने का खूब मौका मिला। इन समाचार पत्रों में छपना एक समय काफी कठिन माना जाता था लेकिन इनके संपादकों से उनके समाचार पत्रों की भाषा, शैली और कंटेंट आवश्यकता को जानकर मुझे जो लिखने का मौका मिला वह मेरे लिए यादगार है।
नई दुनिया के बिजनेस पेपर के संपादक विठ्ठल नागर को मैं मुंबई से अनेक रिपोर्ट भेजता रहता था। नागर सा. इन रिपोर्ट को भावताव में प्रमुखता के साथ जगह देते थे। इस क्रम में मैंने उन्हें एक रिपोर्ट भेजी थी जब हैदराबाद का औद्योगिक समूह सांघी सीमेंट गुजरात के कच्छ जिले में सीमेंट प्लांट लगा रहा था। इस रिपोर्ट में यह लिखा गया था कि इस प्लांट को कच्छ के उस इलाके में लगाया जा रहा है जिसे वन्य पशु पक्षियों के रिजर्व रखा गया है और इस प्लांट के चालू होने पर कच्छी घुडखर, कच्छी गधों एवं अन्य जीवों का अंत हो जाएगा।
इस रिपोर्ट को नागर सा. ने 'भावताव' के बजाय 'नई दुनिया' में राहुल बारपुते जी को यह कहकर सौंप दिया कि 'भावताव' में इस रिपोर्ट के छपने का गहरा असर नहीं होगा। यह रिपोर्ट नई दुनिया में छपी और संयोग देखिए कि मैं नागर सा. से मिलने इसके अगले दिन इंदौर पहुंचा। सुबह नई दुनिया के बाबू लाभचंद छजलानी मार्ग स्थित कार्यालय पहुंचा तो नागर सा. ने बेहद उत्साहित होकर स्वागत किया और कहा बाबू सा. पधारो, आपको याद ही कर रहा था। इसके तत्काल बाद वे बोले- चलो आपको राहुल बारपुते जी से मिलवाता हूं।
मैं डर सा गया, इतने बड़े महान संपादक के सामने जाना होगा… क्या बात कर पाऊंगा मैं। विठ्ठल नागर सा. ने बारपुते जी मुझे मिलवाया और कहा कि यही है कमल भुवनेश। राहुल जी ने झट से पूछा कि क्या आपने आज का 'नई दुनिया' पढ़ा। मैंने कहा कि सर, मैं अभी अभी मुंबई से सीधे यहीं नई दुनिया आफिस आया हूं। बारपुते जी ने तत्काल नई दुनिया की कॉपी मेरे सामने रखी और कहा- पढि़ए, आज मैंने आपकी रिपोर्ट पर ही संपादकीय लिखा है… कल आपकी सांघी सीमेंट प्लांट की खबर नई दुनिया में छपी थी और उसी पर संपादकीय है।
राहुल जी ने वन्य जीवों के विनाश पर अपनी चिंता जताई और कहा कि इस तरह की खबरों और विश्लेषणों को उजागर करना चाहिए ताकि सरकार की आंखें खुले। इसके पश्चात बारपुते जी ने भविष्य में और अच्छी रिपोर्ट भेजने को कहा। साथ ही लिखते समय किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और गहराई से जानकारी लेकर लिखना चाहिए, इस बारे में समझाया। राहुल जी से तकरीबन आधा घंटा चर्चा हुई, लेकिन वह चर्चा हमेशा मैंने संजोकर रखी। इसके बाद नई दुनिया को पढ़ने एवं खासकर राहुल बारपुते जी के लेख और संपादकीय पढ़ने का चस्का लगा। राहुल बारपुते जी को मेरा सादर नमन। हिंदी पत्रकारिता को आज बारपुते जी जैसे ही संपादकों की जरुरत है।
लेखक कमल शर्मा, आईआईएमसी, नई दिल्ली के पूर्व छात्र है। इन दिनों मुंबई में एक मीडिया हाउस में कार्य कर रहे हैं। संपर्क- [email protected]
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