देहरादून : वरिष्ठ पत्रकार विलियम मार्क टुली को आज भी इस बात का अफसोस है कि हिंदुस्तान में न्याय प्रक्रिया बेहद धीमी है और पुलिस 1861 के नियम-कानून के आधार पर काम कर रही है। यही वजह है कि गुनहगार खुले घूम रहे हैं और राजनीति अपराधियों की गिरफ्त में है। मार्क टुली मंगलवार दोपहर राजपुर रोड स्थित एक होटल में अपनी पुस्तक ‘नो फुल स्टाप्स इन इंडिया’ पर चर्चा के लिए मौजूद थे। यहां आजाद भारत की उपलब्धियां गिनाते हुए उन्होंने चुनाव आयोग को सबसे पारदर्शी संस्था करार दिया।
मार्क टुली की यह पुस्तक यूएस में पत्रकारिता से जुड़े निबंधों का संकलन है। इन्हें यूएस में ‘द डिफीट आफ ए कांग्रेस मैन’ के रूप में छापा गया। कोलकाता में जन्में तकरीबन 78 साल के टुली ने बतौर पत्रकार इंडो-पाक युद्ध के साथ ही भोपाल गैस त्रासदी, आपरेशन ब्लू स्टार, राजीव गांधी की हत्या, बाबरी मस्जिद विवाद जैसे बड़े मुद्दे कवर किए। 1994 में बीबीसी से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने स्वतंत्र लेखन का रुख किया। उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण जैसे पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है। ‘अमृतसर’, ‘राज टू राजीव’, ‘इंडियाज अनएंडिंग जर्नी’, ‘इंडिया : द रोड अहेड’ उनकी लिखित अन्य पुस्तकें हैं। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार एलन सीले, सुभाष पंत, जनकवि डा. अतुल शर्मा, दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर के मनोज पंजवानी आदि उपस्थित रहे।
एमकेपी पीजी कालेज समेत कई स्कूलों के बच्चे कार्यक्रम में मौजूद थे। उन्होंने टुली पर सवालों के बाउंसर उछाले। एक सवाल राजनीति के अपराधीकरण हो जाने का था। इसे स्वीकारते हुए टुली ने गांवों में नौकरशाही को लेकर नाराजगी के आलम को सबके सामने रखा। टुली ने कहा कि नेता तो फिर भी पांच साल बाद वहां पहुंचते हैं, लेकिन गांव वालों की गर्दन नौकरशाही के जाल में फंसी है। एक सवाल राजनेताओं की छवि से जुड़ा था। पूछा गया कि क्या नेताओं की भी ट्रेड यूनियन तैयार हो गई है, जो एक नेता के फंसते ही उसे क्लीन चिट दिलाने के लिए ‘संघर्ष’ शुरू हो जाता है। इसे भी टुली ने न्याय प्रक्रिया की धीमी रफ्तार से जोड़ा। उन्होंने शासन की गुणवत्ता में कमी की बात कही। (अमर उजाला)