मार्च 2012 के विधानसभा चुनाव के पहले जब समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और मौजूदा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं की राय से इतर दागी सांसद डीपी यादव के मामले पर सख्त रुक अपनाते हुए ये कहा था कि सपा में बाहुबलियों की कोई जगह नहीं है, तो लगा था कि यदि सपा की सरकार आई तो राज्य में सुशासन स्थापित होगा। पर परिणाम इसके ठीक विपरीत निकल रहे है।
मार्च 2012 से लेकर आज फरवरी 2013 हो गया पर सुशासन के नाम पर स्थापित होने वाली इस सरकार ने केवल कुशासन को ही स्थापित किया। चोरी, हत्या रेप, दंगा जैसे अपराध इस सरकार की लगभग एक साल के कार्यकाल की उप्लब्धि बन गए हैं। और बने भी क्यों न? कानून व्यवस्था के नाम पिछले एक साल से ये सरकार जो कुछ भी करती आ रही उसे सियासी भाषा में सिर्फ मीठे शब्दों का मायाजाल कहा जा सकता है।
जहाँ एक तरफ सपा प्रमुख मुलायम सिंह प्रशानिक अधिकारियों की कार्यशैली पर तल्ख़ टिप्पणी करते हैं तो वहीं दूसरी ओर उन्हीं की पार्टी का युवा मुख्यमंत्री बेहतर कानून व्यवस्था के नाम पर ऐसे अधिकारियों को ला रहा है जो खुद कानून व्यवस्था के लिए एक सवालिया निशान हैं। अभी पिछले माह जनवरी में राज्य सरकार ने प्रशासनिक अधिकारियों की स्थानान्तरण और प्रोन्नति लिस्ट ये कहते हुए ख़ारिज कर दी थी कि इस लिस्ट में निचले स्तर काफी गड़बड़ी हुई लिहाजा अब नयी सिरे से लिस्ट बनेगी।
फरवरी माह में नई लिस्ट बनी और अधिकारियोंको प्रोन्नति और स्थानान्तरण भी मिला। इस क्रम में जो महत्वपूर्ण फेरबदल हुआ वो प्रदेश की राजधानी लखनऊ और गोंडा जिले में हुआ। दोनों ही जगह के पुलिस प्रमुख बदले गए। बदले तो कई जिलों के पुलिस प्रमुख गए लेकिन इन दोनों जिलों में हुआ फेरबदल सत्ता के गलियारों में चर्चा का विषय बना क्योंकि उस समय ये दोनों जिले एक खास कारण से चर्चा में थे। लखनऊ के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) राम कृष्ण चतुर्वेदी जहाँ जिले की बिगड़ती कानून व्यवस्था के लिए चर्चा का विषय बने हुए थे तो वही गोंडा के त्तकालीन पुलिस अधीक्षक (एसपी) नवनीत राणा एक गौ तस्कर केसी पाण्डेय, जो वर्तमान में राज्य मंत्री का दर्जा पाए हुए है, के विरुद्ध मोर्चा खोलने के कारण चर्चा के केंद्र बिंदु में थे।
लिहाजा फरवरी में आयी स्थानान्तरण लिस्ट में दोनों को हटाया गया। लखनऊ में राम कृष्ण चरुर्वेदी की जगह पर जे रवींद्र गौड़ को लाया गया और गोंडा में नवनीत राणा की जगह पर हरी नारायण को लाया गया, पर जब तक तक हरिनारायण एसपी गोंडा का चार्ज सँभालते एक बार फिर फेरबदल किया गया और आरपीएस यादव को एसपी गोंडा बना कर भेजा गया। यानी नवनीत राणा की जगह पर आरपीएस यादव ने एसपी गोंडा का चार्ज संभाला।
इन दोनों के स्थानातरण में जो खास बात रही वो ये कि एक को उसकी नाकामी के चलते युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रोन्नति देते हुए पुलिस उप-महानिरीक्षक कानपुर रेंज बना दिया और दूसरे को उसकी ईमानदारी के चलते पुलिस महानिदेशक कार्यालय से सम्बद्ध कर दिया। यानी युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की नजर में प्रदेश की स्वस्थ कानून व्यवस्था का मतलब निक्कमे अधिकारियों को प्रोन्नति देना और इमानदार अधिकारियों का पर कतरना है। अब बात करते हैं लखनऊ के वर्तमान पुलिस अधीक्षक जे रवींद्र गौड़ की। सन 2005 बैच के इस आईपीएस अधिकारी की विशेषता और महानता का अंदाजा केवल इस बात लगाया जा सकता है कि मात्र आठ साल की सर्विस में इनको प्रदेश की राजधानी का पुलिस प्रमुख बना दिया जाता है, जहाँ पुलिस का प्रमुख बनने के लिए तमाम आईपीएस अधिकारी अपनी पूरी सर्विस के दौरान प्रतीक्षारत रहते है और उनका मौका नहीं मिलता। वो भी उस परिस्थिति में जब इस आईपीएस अधिकारी के भी दामन बेदाग नहीं है।
10 फरवरी 2013 को एक अखबार में प्रकशित रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जे रवींद्र गौड़ पर फर्जी इनकाउंटर कर एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या का आरोप है। दरअसल 30 जुलाई 2007 को बरेली पुलिस ने दावा किया कि उसने बैंक डकैती करने जा रहे टाटा सूमो में सवार कुछ लोगों को फतेहगंज इलाके में रोकने की कोशिश की तो सूमो सवार बदमाशों ने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी। जवाबी फायरिंग में एक शख्स मारा गया, जिसकी पहचान मुकुल के रूप में हुई। वहीं पुलिस ने मुकुल के दो साथियों ड्राइवर विक्की शर्मा और पंकज की गिरफ्तारी दिखाई। साथ ही बताया कि चौथा शख्स मौके से भागने में सफल रहा। बाद में बताया कि भागने वाला शख्स प्रेम शंकर है। इसके बाद पुलिस ने पंकज, मुकुल और अन्य के खिलाफ तत्कालीन एएसपी जे रवींद्र गौड़ की शिकायत पर फतेहगंज पुलिस स्टेशन में हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज कराया। यही नहीं पुलिस ने उसके साथ में तीन कट्टे और एक रिवाल्वर की बरामदगी भी दिखाई। मामले में तीन लोगों को सबूतों के अभाव में अदालत से जमानत मिल गई। इस दौरान मुकुल के पिता बृजेंद्र कुमार गुप्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण ली और इस इनकाउंटर को फर्जी बताया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में जून में मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी। सीबीआई ने 23 जून को मामले में 12 पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली, जिनमें 2005 बैच के आईपीएस अफसर जे रवींद्र गौड़ भी थे। अब सवाल उठता है कि 2005 बैच के आईपीएस अधिकारी जो 2007 तक अपर पुलिस अधीक्षक के पद पर रहा हो और जिस पर हत्या का आरोप रहा हो। कैसे मात्र आठ साल की सर्विस में प्रदेश की राजधानी का पुलिस प्रमुख बन गया? जवाब साफ़ है कि अब सत्ता के गलियारों में अधिकारियों का स्थानान्तरण योग्यता और ईमानदारी के दम पर नहीं अपितु सत्ता में बैठी सरकार के प्रति अधिकारी के समपर्ण से होता है। जिसकी एक बानगी गोंडा के वर्तमान एसपी आरपीएस यादव साहब भी है। जिनके आने के बाद से गौ तस्कर और मौजूदा राज्यमंत्री केसी पाण्डेय के विरुद्ध गौ तस्करी के मामले निवर्तमान पुलिस अधीक्षक नवनीत राणा द्वारा की जा रही जांच ख़त्म हो गयी है और उन्हें क्लीन चिट मिल गयी।
ऐसी स्थिति में अखिलेश सरकार का ये दावा कि राज्य की कानून व्यवस्था में सुधार के लिए ईमानदार अधिकारियों की तरजीह दी जाएगी एक छलावा लगता है, क्योंकि यदि ये दावा सही होता तो राजधानी का पुलिस प्रमुख एक दागी अधिकारी को बनाने की जगह पर अखिलेश सरकार किसी बेदाग और निष्पक्ष अधिकारी को लखनऊ का पुलिस प्रमुख बनाती, जिसके आने बाद जिले की कानून व्यवस्था सुधरती और अपराधियों को उनकी असली जगह जेल में पहुंचाया जाता।
लेखक अनुराग मिश्र स्वतंत्र पत्रकार हैं. इनसे संपर्क मो -0938990111 के जरिए किया जा सकता है.