Yashwant Singh : लखनऊ में पत्रकार नहीं हैं.. सब लायजनर और दलाल हैं… एकाध फीसदी जो ठीकठाक पत्रकार होंगे, वे भी प्रदेश सरकार के खिलाफ खुलकर नहीं लिखते बोलते क्योंकि उनकी पूंछ मकान, दुकान, मान्यता, भ्रमण, अनुदान, नौकरी आदि चीजों के तले दबी है.. यही कारण है कि इतने बड़े प्रदेश की राजधानी में प्रदेश की जनता की जेनुइन प्राब्लम्स को तो छोड़िए, खुद मीडिया वालों की समस्याओं तक पर कोई आवाज नहीं उठती, किसी की कलम नहीं चलती..
याद होगा आप लोगों को, नोएडा में महुआ न्यूज के कर्मियों का आफिस पर कब्जा और सेलरी की मांग वाला आंदोलन.. लखनऊ से किसी पत्रकार न किसी पत्रकार संगठन ने न तो बयान जारी किया और न ही अफसरों, नेताओं, सीएम से मिले… सब चुप्पी साधे रहे… जुआ, दारू, दलाली, पीआर, टूर एंड ट्रैबल में मस्त रहे…
लखनऊ के अखबार वाले सरकार के खिलाफ लिखते नहीं क्योंकि उनको विज्ञापन से लेकर बिजली-पानी तक बंद हो जाने का खतरा सताता रहता है… दो तीन जो पत्रकार संगठन हैं, वो मुलायम-अखिलेश की छाया तले खुद को पाकर धन्य धन्य हुए जा रहे हैं.. विक्रम राव से लेकर हेमंत तिवारी तक, सब स्वार्थों का गठजोड़ कायम कर पत्रकारिता को नीलाम कर रहे हैं… इन्हें खुद नहीं एहसास हो रहा कि ये क्या कर रहे हैं.. न कोई इनसे सवाल पूछने वाला है और न कोई इन पर सवाल उठाने वाला..
सभी पत्रकारों को लगता है कि वे इन बड़े मगरमच्छों से पंगा लेकर, सवाल उठाकर अपना करियर जीवन क्यों खराब करें… देखते हैं, लखनऊ की सड़ियल, दलाल, घटिया, बौनी पत्रकारिता का लंबा व बुरा दौर बदलता है या यूं ही सब कुछ चलता रहेगा.. प्रदेश के किसी कोने में कुछ हो जाए, सब चुप्पी साधे रहते हैं क्योंकि सबको डर लगता है कि कहीं नेता जी आंख न तरेर दें.. सबको डर लगता है कि कहीं उनके सरकार के नेताओं रहनुमाओं से अच्छे रिश्ते खराब न हो जाएं.. यही कारण है कि ढेर सारी खबरें हम लोगों तक पहुंच ही नहीं पाती… ऐसे में अगर किसान सुसाइड कर जाए तो करे.. गरीब तो हैं ही मरने के लिए… साहब लोग, सरकार लोग, पत्रकार लोग अपने-अपने काम में मस्त हैं.. लखनऊ में राहत और आराम है.. बाकी किसी को किससे काम है…
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.
संबंधित खबर…