Sanjaya Kumar Singh : टेलीग्राम को तकनीक ने मार दिया। अफसोस जताने वालों ने अफसोस भी जताया पर क्या आप कभी डाकघर गए हैं? किसी आधुनिक सेवा प्रदाता के ग्राहक केंद्र की तुलना में कैसी थी हालत? वैशाली (गाजियाबाद) में जहां मैं रहता हूं, डाकघर नहीं है। निकटतम पीएसी केंद्र कौशाम्बी में और दूसरा वसुन्धरा में है। पीएसी सेंटर में काउंटर के बाहर ग्राहकों के खड़े होने के लिए शेड तक नहीं है। पंखा एसी तो बहुत दूर। वसुंधरा का डाकघर ऐसा है जैसे कभी साफ-सफाई हुई ही नहीं। और साधारण चिट्ठियां तो लेटर बॉक्स में ही डालेंगे ना पर वैशाली में कोई ऐसा लेटर बॉक्स नहीं है जिसमें चिट्ठी डालने की हिम्मत की जा सके।
समय के साथ चलते हुए क्या कायदे की जगह पर, जैसे ऐसी जगह जहां कार में बैठे-बैठे चिट्ठी पोस्ट कर सकें, नहीं होने चाहिए? आज भी बहुत सारी चिट्ठियां, दस्तावेज, बिल आदि डाक से भेजे जा सकते हैं और कूरियर कंपनियां तो इन्हीं से चल रही हैं पर डाक विभाग को मानो चिन्ता ही नहीं है – वो दिन दूर नहीं जब लेटर बॉक्स भी नहीं दिखेंगे। कूरियर की ये रसीदें फेंकते हुए ध्यान आया कि लेटर बॉक्स होता तो कई चिट्ठियां मैंने डाक से भेजी होतीं। वैशाली के भिन्न लेटर बॉक्स की तस्वीरें। जो मेरे घर के सबसे करीब था उसका नामो निशान नहीं मिला।
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.