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उत्तराखंड

शराब तस्करों के हाथों मारी गई उत्तराखंड की संगीता को न्याय कब मिलेगा?

उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में शराब तस्करों ने आशा वर्कर तथा महिला नेता संगीता मलड़ा की हत्या कर दी। शराब के खिलाफ उठने वाली इस आवाज को हमेशा के लिये खामोश कर दिया गया। बागेश्वर पुलिस और शराब तस्करों की पुरानी दोस्ती के चलते हत्या के इस मामले को आत्महत्या में बदल दिया गया। ढाई माह बाद भी संगीता मलड़ा हत्याकाण्ड पर पड़ा पर्दा नही उठ सका। उत्तराखंड पुलिस से लोगों का भरोसा पहले से ही उठ चुका था।

उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में शराब तस्करों ने आशा वर्कर तथा महिला नेता संगीता मलड़ा की हत्या कर दी। शराब के खिलाफ उठने वाली इस आवाज को हमेशा के लिये खामोश कर दिया गया। बागेश्वर पुलिस और शराब तस्करों की पुरानी दोस्ती के चलते हत्या के इस मामले को आत्महत्या में बदल दिया गया। ढाई माह बाद भी संगीता मलड़ा हत्याकाण्ड पर पड़ा पर्दा नही उठ सका। उत्तराखंड पुलिस से लोगों का भरोसा पहले से ही उठ चुका था।

स्थानीय पुलिस से इस जांच को छीन कर राज्य सरकार की जांच एजेन्सी सीबीसीआईडी को सौंप दी है। एजेन्सी ने पड़ताल तो कर दी है, लेकिन अभी तक खुलासा नहीं किया कि उसे जांच में क्या मिला। उत्तराखंड की धरती में शराब विरोधी आन्दोलनों का एक लंबा इतिहास रहा है। आज भी गांव कस्बों में शराब के खिलाफ प्रदर्शनों का क्रम जारी है।

बागेश्वर जिले के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक की कुर्सी से मात्र तीन किमी की दूरी पर स्थित मंडलसेरा ग्राम के बानरी तोक में महिलाऐं शराब के खिलाफ एकजुट होने लगी थी। इसका कारण था कि वर्श 2000 से 2012 तक 9 लोगों ने शराब के कारण आत्महत्या की थी, जिसमें पांच महिलाएं शामिल हैं। इस गांव में 15 मई को एक नौजवान लड़की ने शराब के कारण घर में हो रही अषांति के चलते जहरीला पदार्थ पी लिया। हालांकि उसे समय पर अस्पताल पहुंचाया गया और उसकी जान बच गयी।

इस ताजी घटना के कारण महिलाऐं अपने कदमों को गांव में न रोक पायी और उन्होंने पूर्व से गठित महिला समूह की अध्यक्ष और आशा वर्कर संगीता मलड़ा के नेतृत्व में 20 मई को बागेश्वर जाकर जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को मंडलसेरा क्षेत्र में खुलेआम बिक रही अवैध शराब की षिकायत की। चार दिन की इंतजार के बाद पुलिस हरकत में नहीं आयी तो 24 मई को जिले के नये जिलाधिकारी की प्रेस वार्ता के बाद फिर संगीता महिलाओं के हुजूम के साथ डीएम बीएस मनराल से मिली।

शराब तस्करों के खिलाफ उठ रही इस आवाज के चलते गांव के शराब तस्कर एकजुट होने लगे। 20 मई के बाद उन्होंने गांव में हथियार लेकर घूमना शुरू किया। जिसका जिक्र 24 मई के ज्ञापन में संगीता मलड़ा ने किया। इस ज्ञापन में स्पष्ट तौर पर लिखा गया था कि शराब तस्कर महिलाओं को धमकी दे रहे हैं कि अगर उन्होंने दुबारा शिकायत की तो वे शिकायत करने वालों की जान ले लेंगे। गांव में शराब तस्करों का आतंक चल रहा है।

ज्ञापन में इन बिंदुओं पर नये डीएम ने भी कोई संज्ञान नहीं लिया। बागेश्वर की पुलिस ने 21 मई से 13 जून के भीतर देवेन्द्र मर्तोलिया, विनोद कुमार, प्रदीप दत्त भट्ट, बिशन सिंह, नवीन खेतवाल की दुकानों में अवैध शराब पकड़ी और आबकारी अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर दिया। फिर भी बागेश्वर की पुलिस शराब तस्कर और महिलाओं को जान से मारने की धमकी देने वाले पूरन सिंह, मदन सिंह तक नहीं पहुंच पायी।

महिलाओं ने ज्ञापन में इन दोनों का नाम स्पष्ट रूप से लिखा हुआ था। पुलिस, शराब तस्करों तक स्थानीय जन प्रतिनिधियों की साठगांठ के चलते शराब तस्करों पर पुलिस का कोई खौफ नजर नहीं आया। शराब तस्करों ने उक्त कार्यवाही को भी मात्र दिखावा मानते हुए शराब बेचना जारी रखा। शराब विरोधी आन्दोलन की नेता संगीता मलड़ा के साथ शराब तस्करों की कहासुनी, छींटाकशी चलती रहीं। 28 मई को संगीता का हाईस्कूल का परीक्षाफल आया। षादी के 9 वर्शों बाद संगीता ने प्राइवेट परीक्षा देकर हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी। इस खुशी में उसके पैर जमीं पर नहीं थे। 29 मई 2013 को सुबह उसके घर पर महिला समूह की बैठक हुई। शराब विरोधी आन्दोलन और समूह को आगे ले जाने की चर्चा के बीच शराब तस्कर परिवार की दो महिलाऐं बैठक में आयी और संगीता को पीटने लगी। समूह की महिलाओं ने बमुश्किल संगीता को उनके हाथों से बचाया।

बैठक के बीच में ही संगीता ने ग्राम प्रधान, बागेश्वर पुलिस के कोतवाल को सूचना दी। इस घटना के दो घंटे के भीतर गांव में हो रही षादी का होहल्ला और संगीता के घर में अकेले होने का फायदा उठाने शराब तस्करों ने संगीता के घर में घुसकर इतनी मारपीट की कि वह बेहोष हो गयी। शराब तस्करों ने उसके मुंह में जहरीला पदार्थ उड़ेल दिया, ताकि मामला आत्महत्या का बन जाय। इस बीच पुलिस संगीता को देखने नहीं आयी। संगीता के अंतिम फोन के बाद बागेश्वर शहर के एक प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी कर रहे संगीता के पति प्रकाश मलड़ा जैसे ही घर के भीतर दाखिल हुए तो संगीता अंतिम सांसें गिन रही थी। घर का सारा सामान बिखरा हुआ था। घर के कोने-कोने में उसके सिर के बिखरे बाल इस बात की कहानी बता रहे थे कि उसके साथ निर्मम ढंग से मारपीट हुई है।

पुलिस की इंतजारी किये बिना गांव की महिलाओं ने संगीता को उठाया और अस्पताल पहुंचा दिया जहां संगीता ने शराब विरोधी आन्दोलन को अंतिम सलाम करते हुए आंखें हमेशा के लिये बंद कर दी। संगीता अपने पीछे तीन मासूम बच्चों को छोड़ गयी। पुलिस ने एक ग्राम प्रधान से रिपोर्ट लिखवाई और पत्नी के खोने के गम में बेहोश पड़े प्रकाश मलड़ा से हस्ताक्षर कराकर प्राथमिकी दर्ज कराने में कोई देरी नहीं की। बागेश्वर कोतवाली में भारतीय दंड सहिता 306, 504 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया गया। शराब तस्करों के इस कृत्य के बाद गांव में सुनसानी छा गयी। संगीता के आशा वर्कर होने के नाते उत्तराखंड राज्य की आशा वर्कर्स यूनियन ने प्रदेशभर में आन्दोलन करने की घोषणा कर दी और 2 जून को मंडलसेरा गांव में इसके लिखाफ बैठक की।

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शराब तस्करों और पुलिस के खिलाफ आन्दोलन की चिंगारी के सुलगते ही पुलिस ने मदन सिंह, पूरन सिंह, धनुली देवी तीनों आरोपियों को जेल भेज दिया। चार जून के प्रदर्शन के बाद चौथी आरोपी कविता को भी जेल भेजा गया। आशा यूनियन और भाकपा माले के संयुक्त नेतृत्व में चले धारावाहिक आन्दोलन के बाद सीबीसीआईडी के इंसपेक्टर गंगा सिंह के नेतृत्व में हल्द्वानी से आयी टीम ने नये सिरे से जांच पड़ताल शुरू कर दी। अभी संगीता का मामला आत्महत्या की धाराओं में दर्ज है। महिला समूह की कोषाध्यक्ष परूली देवी का कहना है कि शराब तस्करों से मिलकर पुलिस ने पहले समूह के खाते में गड़बड़ होने के कारण संगीता के आत्महत्या करने का झूठा प्रचार किया। जांच के बाद साबित हो गया कि संगीता पाक साफ थी। परूली कहती है कि शराब तस्कर पुलिस की शह पर वर्षों से इस इलाके में शराब बेच रहे हैं। पुलिस इनसे मिली हुई है।

भाकपा माले के राज्य कमेटी सदस्य कैलाश पाण्डेय का कहना है कि 24 मई के ज्ञापन में हत्या की धमकी देने वाले शराब तस्करों का नाम संगीता ने लिखा था। उसके बाद ही पुलिस ने बिना जांच के मामले को आत्महत्या का क्यों बना दिया। इस घटना के बाद पुलिस की कोई जांच टीम संगीता के घर नहीं पहुंची। हत्या के सबूतों, फारेन्सिक जांच, फिंगर प्रिंट आदि  की कार्यवाही नहीं की गयी। पुलिस पहले से ही तस्करों को बचाने में जुटी हुई थी। वे चाहते हैं कि मामला केवल हत्या का ही न बने बल्कि शराब तस्करों के साथ मिली पुलिस, प्रशासन के अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही भी हो। अस्सी के दशक में उत्तराखंड का ‘नशा नही रोजगार दो’ आन्दोलन पूरी दुनिया में चर्चित हुआ था वह आज भी राज्य के हर गांव में शराब पहुंच गयी है। पानी, बिजली, सड़क, डाक्टर, मास्टर और राशन गांव में नहीं है, लेकिन शराब की मौजूदगी ने महिलाओं और बच्चों का जीवन दुश्वार कर दिया है। इसके खिलाफ बनी एक आवाज संगीता को कब न्याय मिलेगा यह सवाल उत्तराखंड में बना हुआ है।

जगत मर्तोलिया

उत्तराखंड

मोबाइल – 09411308833

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