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शशि शेखर और उनकी टीम ने एक राष्ट्रीय अखबार को क्षेत्रीय अखबार में बदल कर रख दिया

‘तरक्की को चाहिए नया नजरिया’ श्लोगन वाला एक अखबार है हिन्दुस्तान। अखबार में किसी का नजरिया बदलने का माद्दा तो नहीं है, लेकिन मैंने इस अखबार में 14 साल तक काम किया है, इसलिए मुझे इससे आज भी प्यार है। शायद यही वजह है कि इसमें प्रकाशित होने वाली हर छोटी-बड़ी चीज पर आज भी मेरी बारीक नजर रहती है। रखना पड़ता है भाई, आखिर इतना अच्छा अखबार था लेकिन अब तिल-तिल कर मर रहा है। मेरी ही तरह इस अखबार से जुड़े रहे कई अन्य पत्रकार भी इसमें छपने वाली खबरों पर पैनी नजर रखते हैं।

‘तरक्की को चाहिए नया नजरिया’ श्लोगन वाला एक अखबार है हिन्दुस्तान। अखबार में किसी का नजरिया बदलने का माद्दा तो नहीं है, लेकिन मैंने इस अखबार में 14 साल तक काम किया है, इसलिए मुझे इससे आज भी प्यार है। शायद यही वजह है कि इसमें प्रकाशित होने वाली हर छोटी-बड़ी चीज पर आज भी मेरी बारीक नजर रहती है। रखना पड़ता है भाई, आखिर इतना अच्छा अखबार था लेकिन अब तिल-तिल कर मर रहा है। मेरी ही तरह इस अखबार से जुड़े रहे कई अन्य पत्रकार भी इसमें छपने वाली खबरों पर पैनी नजर रखते हैं।

खैर, आज सुबह मुझे कई पुराने हिन्दुस्तानियों के फोन आए। ताज्जुब हुआ। फोन हालचाल पूछने के लिए नहीं, बल्कि यह बताने के लिए आया था कि क्या तुमने आज का हिन्दुस्तान देखा। मैंने पूछा क्या कोई खास खबर है। हां भाई, हिन्दुस्तान देखो। उत्सुकता बढ़ गई। जब से शशि शेखर संपादक बने हैं तब से घर पर मैं यह अखबार नहीं मंगाता क्योंकि इसमें पढ़ने लायक कोई खास खबर तो होती नहीं। मुहल्ले में पूछताछ की। पता चला मेरी गली में भी हिन्दुस्तान किसी के घर नहीं आता है। ऑफिस पहुंचा। अखबार के बंडलों में से हिन्दुस्तान निकाला।

14 सितंबर यानि आज के हिन्दुस्तान में मेरी नजर जब प्रिंट लाइन पर पड़ी तो मैं चौंक गया। प्रिंट लाइन से शशि शेखर का नाम गायब है। शशि शेखर का नाम बतौर समूह संपादक हिन्दुस्तान में छपता था। सवाल है कि क्या शशि शेखर अब हिन्दुस्तान के संपादक नहीं रहे। इतना ही नहीं, कल तक प्रताप सोमवंशी का नाम बतौर वरिष्ठ स्थानीय संपादक छपा करता था। लेकिन 14 सितंबर के हिन्दुस्तान में उनका नाम सिर्फ संपादक के तौर पर छपा है। सवाल यह है कि क्या प्रताप सोमवंशी का डिमोशन हो गया है? प्रिंट लाइन में शशि शेखर के नाम नहीं छपने से मीडिया जगत में चर्चाओं का दौर तेज हो गया है। बाजार की सूचनाओं पर यदि यकीन करें तो बहुत दिनों से यह चर्चा है कि हिन्दुस्तान में उच्च पद पर फेरबदल होना है। क्या फेरबदल हो गया है? संपादक हटा दिए गए हैं? या फिर बाइ मिस्टेक शशि शेखर का नाम नहीं छपा है। या फिर कुछ और तकनीकी कारण है। खैर जो भी हो, हिन्दुस्तान में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। ठीक ठाक हो भी नहीं सकता क्योंकि वैसे भी शशि शेखर एंड कंपनी के आने के बाद हिन्दुस्तान की प्रिंटिग, फौंट, ले आउट, न्यूज प्रिंट, कन्टेंट सब घटिया स्तर का हो गया है। शशि शेखर की टीम ने एक राष्ट्रीय अखबार को क्षेत्रीय अखबार में बदल कर रख दिया है। पुराना अखबार है, विज्ञापन मिल रहा है, इसलिए चल रहा है। शशि शेखर एंड कंपनी से जितना जल्द पीछा छूटे, हिन्दुस्तान और उसके पाठकों के लिए उतना ही बेहतर है।

लेखक संदीप ठाकुर साईं प्रसाद मीडिया समूह के हिंदी वीकली 'हमवतन' के नेशनल ब्यूरो चीफ हैं. संदीप कई अखबारों में वरिष्ठ पदों पर रह चुके हैं.


मूल खबर…

प्रिंट लाइन से नाम हटने के बाद हिंदुस्तान अखबार से शशि शेखर की विदाई की चर्चाएं

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