उत्तर प्रदेश में राजधानी लखनऊ के करीब एक जिला है बहराइच. यह जिला प्रदेश के तमाम शैक्षणिक और विकास पायदानों पर जितना नीचे है उतना ही पत्रकारिता को लेकर तेजतर्रार है. अब इस तेज़ी का मतलब सच्चे अर्थों वाली पत्रकारिता से ना लगा लीजियेगा. यहाँ पत्रकारिता का वही रूप अपने पूरे शबाब है जिसके लिए आजकल पत्रकारिता जानी जाती है. यहाँ के पत्रकार बनने की इच्छा रखने वाले निवेशक राजधानी का रुख जेब में पैसे रखकर करते हैं कि किसी भी उचित (दाम देकर मिलने वाली पत्रकारिता क्या उचित होगी खैर) मूल्य पर उन्हें पत्रकार बनने का लाइसेंस मिल जाए. जिसका प्रमाणपत्र माइक आईडी या अखबार की एजेंसी के रूप में मिल जाए. हाँ इसके बाद असली वाली पत्रकारिता मतलब सरकारी अधिकारियों थानों और मुख्य रूप से डीएम कुर्सी के सामने जितनी बड़ी पहचान बना ली जाए, वहां से शुरू होती है. डीएम अगर पहचान ले और पत्रकार उसे जिले का मालिक कहकर भरी मीटिंग में प्रचारित करे, यह बहराइच की पत्रकारिता की खास पहचान है.
अब आते हैं मुख्य बात पर. इसी जिले में 30 अक्टूबर को यानि आज श्री न्यूज़ ग्रुप जिसमें अखबार और न्यूज़ चैनल शामिल हैं, के द्वारा एक पत्रकारिता संवाद सम्मलेन का आयोजन किया जा रहा है. शहर के डायमंड पैलेस में होने वाले इस कार्यक्रम के बड़े बड़े होर्डिंग जगह जगह लगे हैं. इन होर्डिंग पर बड़े बड़े लोगों के नाम दर्ज हैं जिसमें मुख्य अथिति श्रम मंत्री डॉ वक़ार से लेकर जनपद के सारे विधायक तक और अतिथियों में जिलाधिकारी किंजल सिंह से लेकर हर बड़े अधिकारी तक दर्ज हैं. लेकिन इस पूरे शवाब पर लगे होर्डिंग में कहीं भी पत्रकारिता या इसका पर्याय माने जाने वाले बौद्धिक वर्ग के किसी भी अतिथि का नाम नहीं होना बड़ी गड़बड़ी लगता है. इस पूरे कार्यक्रम की रूपरेखा पढकर यह समझना ही मुश्किल हो जाता है कि यह किसी समाचार समूह के पत्रकारिता पर आधारित कार्यक्रम का बैनर है या किसी सरकारी आयोजन का.
जिलों में ध्वस्त होती पत्रकारिता का प्रमुख कारण मुख्य अधिकारियों की चमचागिरी या चापलूसी करते हुए किसी तरह अपनी दलाली की दुकान चलाना होता है. ऐसे में इन्हें बौद्धिक लोगों या पत्रकारों से ज्यादा जरूरत अधिकारियों और जनपद के प्रमुख नेताओं की हो जाती है. श्री ग्रुप के इस कार्यक्रम में अधिकारियों के आगमन का महिमा मंडन करना पत्रकारिता की गिरावट को बखूबी दर्शाता है. अधिकारियों मंत्रियों और विधायकों के इस महिमामंडित कार्यक्रम को देखकर इस पूरे समूह के पत्रकारों की चापलूसी और चाटुकारिता का तत्व दिखने लगता है. शायद लोगों को याद हो कि इसी ग्रुप के न्यूज़ चैनल लांचिंग के समय लखनऊ के एक बड़े होटल में जमकर मार पीट हुई थी. अगर पत्रकारिता के संवाद आयोजन में केवल अधिकारी और नेता अपने भाषण झाड़ेंगे तो इसमें आलोचनात्मक पत्रकारिता की जगह चरणों में बिछी पत्रकारिता का संवाद बन जायेगा. ऐसे में श्री ग्रुप का यह सारा कार्यक्रम पत्रकारिता नहीं चाटुकारिता का संवाद लग रहा है.
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.