जयपुर। राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगरी जयपुर में चल रहे साहित्य उत्सव के दौरान रंगमंच पर आधारित पत्रिका समकालीन रंगमंच का भी शहर में संस्था रंगशीर्ष के सहयोग से लोकार्पण हुआ। पत्रिका का विमोचन प्रख्यात साहित्यकार और चिंतक डॉ. अशोक वाजपेयी ने किया। पिंक सिटी प्रेस क्लब में आयोजित एक कार्यक्रम में रंगमंच की आवाज़ बनने का मिशन लिए इस पत्रिका और रंगकर्मियों के साथ साथ समाज के बीच ऐसी पत्रिका की आवश्यक्ता और रंगमंच के वर्तमान परिदृश्य को लेकर एक परिचर्चा भी हुई।
इस परिचर्चा और समारोह में अशोक वाजपेयी के अलावा जयपुर के वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद श्री राजाराम भादू, राजस्थान के वरिष्ठ रंगकर्मी श्री अशोक राही, इप्टा जयपुर के युवा थिएटर निर्देशक श्री संजय विद्रोही ने भी हिस्सा लिया। कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन देते हुए पत्रिका के सम्पादक राजेश चंद्र ने उस पीड़ा और संघर्ष के बारे में बात की, जिससे हिंदी का एक आम रंगकर्मी गुज़रता है। राजेश चंद्र ने कहा कि उस घनीभूत पीड़ा और संघर्ष की भावना से ही इस पत्रिका का जन्म हुआ है, जिसे आगे ले जाना रंगकर्मियों के साथ साथ रंगमंच के दर्शकों के हाथ भी है।
राजेश चंद्र ने पत्रिका की ज़रूरत के बारे में कहा कि ये हिंदी की पहली ग़ैर संस्थानिक पत्रिका है, और ये ही इसकी आवश्यक्ता है। मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए डॉ. अशोक वाजपेयी ने रंगकर्म को सबसे अनोखी कला बताते हुए, दर्शक और रंगकर्मी के सम्बंधों के धागों को पिरो दिया। डॉ. वाजपेयी ने रंगकर्मियों और रंगमंच की दुर्दशा के लिए सरकारी तंत्र के साथ साथ राजनैतिक नेतृत्व को भी दोषी ठहराते हुए, इस पत्रिका को अपनी शुभकामनाएं दीं और रंगमंच के आने वाले भविष्य के लिए दिल्ली के बाहर विकेंद्रित नाट्य समूहों की ज़िम्मेदारी को अहम बताया।
कार्यक्रम में उपस्थित सभी वक्ताओं ने समकालीन रंगमंच के उज्ज्वल भविष्य के लिए सकरात्मक कामनाएं की और पत्रिका के लिए अमूल्य सुझाव भी दिए। लोकार्पण के कार्यक्रम का संचालन युवा पत्रकार मयंक सक्सेना ने किया और धन्यवाद ज्ञापन रंगशीर्ष संस्था की ओर से किया गया।
प्रेस विज्ञप्ति