सहारा समूह के मामले की सोमवार को सुनवाई शुरू होते ही उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एम कृष्णामूर्ति ने खड़े होकर प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ द्वारा इसकी सुनवाई करने पर आपत्ति की. उनका कहना था कि इस पीठ को मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि निवेशकों को धन लौटाने का आदेश दूसरी खंडपीठ ने दिया था. कृष्णामणि ने कहा, 'बार के नेता के रूप में मुझे यही कहना है कि इस अदालत की परंपरा का निर्वहन करते हुये इस खंडपीठ को इस मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए और आदेश में सुधार के लिये इसे उसी पीठ के पास भेज देना चाहिए. इस मामले की सुनवाई करने की बजाये उचित यही होगा कि दूसरी खंडपीठ इसकी सुनवाई करे. कई प्रकार की अफवाहें सुनकर मुझे तकलीफ हो रही है.'
प्रधान न्यायाधीश इस बात पर नाराज हो गये और उन्होंने कहा कि वह इस मामले के तथ्यों की जानकारी के बगैर ही बयान दे रहे हैं. उन्होंने कृष्णामणि को बैठ जाने का निर्देश दिया. न्यायमूर्ति कबीर ने कहा, 'आपको कैसे पता कि इस मामले में क्या होने जा रहा है. यदि कुछ हो तब आप कहिये. कृपया अपना स्थान ग्रहण कीजिये.' बहरहाल अपने निवेशकों को 24 हजार करोड़ रुपये लौटाने के लिये कुछ और मिलने की सहारा समूह की अंतिम उम्मीद सोमवार को उच्चतम न्यायालय ने खत्म कर दी. प्रधान न्यायाधीश अलतमस कबीर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सहारा समूह को और समय देने से इंकार करते हुए फरवरी के प्रथम सप्ताह तक निवेशकों का धन लौटाने की न्यायिक आदेश का पालन नहीं करने के लिए उसे आड़े हाथों लिया.
इसी खंडपीठ ने सहारा समूह की दो कंपनियों को निवेशकों का धन लौटाने के लिये पर्वू में निर्धारित अवधि बढ़ाई थी. न्यायाधीशों ने सख्त लहजे में कहा, 'यदि आपने हमारे आदेशानुसार धन नहीं लौटाया है तो आपको न्यायालय में आने का कोई हक नहीं बनता है.' उन्होंने कहा कि यह समय सिर्फ इसलिए बढ़ाया गया था ताकि निवेशकों को उनका धन वापस मिल सके. सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत राय और इसकी दो कंपनी सहारा इंडिया रियल इस्टेट कापरेरेशन और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेन्ट कॉपरेशन पहले से ही एक अन्य खंडपीठ के समक्ष न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही का सामना कर रही हैं. इस खंडपीठ ने निवेशकों का धन लौटाने के आदेश का पालन नहीं करने के कारण छह फरवरी को सेबी को सहारा समूह की दो कंपनी के खाते जब्त करने और उसकी संपत्तियां कुर्क करने का आदेश दिया था.
न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पिछले साल 31 अगस्त को सहारा समूह की दो कंपनियों को निवेशकों का करीब 24 हजार करोड़ रुपया तीन महीने के भीतर 15 फीसदी ब्याज के साथ लौटाने का निर्देश दिया था. आरोप है कि कंपनियों ने नियमों का उल्लंघन करके अपने निवेशकों से यह रकम जुटाई थी. लेकिन बाद में प्रधान न्यायाधीश कबीर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पांच दिसंबर को सहारा समूह को अपने करीब तीन करोड़ निवेशकों का धन लौटाने के लिये उसे नौ सप्ताह का वक्त दे दिया था. कंपनी को तत्काल 5120 करोड़ रुपए लौटाने थे. उस समय भी सेबी और निवेशकों के एक संगठन ने प्रधान न्यायाधीश से इस मामले को न्यायमूर्ति राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के पास भेजने का अनुरोध किया था लेकिन न्यायालय ने उनका यह आग्रह ठुकराते हुये निवेशकों के हितों ध्यान रखते हुये यह आदेश दिया था.