Connect with us

Hi, what are you looking for?

No. 1 Indian Media News PortalNo. 1 Indian Media News Portal

विविध

सांप्रदायिकता एक सवर्ण मानसिकता है

सांप्रदायिकता एक मानसिकता है जिसमें रहने वाले लोग दूसरी तरफ़ की कमियों को नाजायज़ मानते हैं और अपनी तरफ़ की कमियों को जायज़ । सांप्रदायिकता हमेशा समूह में होने का अहसास कराती है । सत्ताखोर और रक्तपिपासु लोग राष्ट्रवाद की आड़ में मज़हबी राजनीति करते हैं और दूसरे तरफ़ को तुष्टीकरण कहते हैं । सांप्रदायिकता का घर एक होता है मगर उसके आँगन दो होते हैं । गोतिया युद्ध की तरह एक दूसरे का ख़ून पीते हैं और गिरती बूँदों को गिनते हैं । आपकी मानसिकता साम्प्रदायिक है तो आप उसका बचाव अंत अंत तक करते हैं । इस बचाव का सबसे सशक्त ढाल है दूसरी तरफ़ की ग़लतियाँ, कमियाँ और नाकामियां ।

सांप्रदायिकता एक मानसिकता है जिसमें रहने वाले लोग दूसरी तरफ़ की कमियों को नाजायज़ मानते हैं और अपनी तरफ़ की कमियों को जायज़ । सांप्रदायिकता हमेशा समूह में होने का अहसास कराती है । सत्ताखोर और रक्तपिपासु लोग राष्ट्रवाद की आड़ में मज़हबी राजनीति करते हैं और दूसरे तरफ़ को तुष्टीकरण कहते हैं । सांप्रदायिकता का घर एक होता है मगर उसके आँगन दो होते हैं । गोतिया युद्ध की तरह एक दूसरे का ख़ून पीते हैं और गिरती बूँदों को गिनते हैं । आपकी मानसिकता साम्प्रदायिक है तो आप उसका बचाव अंत अंत तक करते हैं । इस बचाव का सबसे सशक्त ढाल है दूसरी तरफ़ की ग़लतियाँ, कमियाँ और नाकामियां ।

सांप्रदायिकता एक सवर्ण मानसिकता भी है । सवर्ण समाज और सवर्ण मानसिकता इसकी वाहक होती है । क्योंकि उसका अस्तित्व धर्म से जुड़ा होता है । इसके शिकार होने वाले ज़्यादातर गैर सवर्ण रहे हैं । इसलिए गैर सवर्णों पर ख़ासकर दलितों या पिछड़ों पर वर्चस्व क़ायम करने की यह अचूक रणनीति है । यह धर्म को एक करने की ताक़त के विचार का प्रदर्शन करती है । इसकी बुनियाद सामने वाले के धर्म के नाम पर नहीं बल्कि अपने धर्म के भीतर भी समुदायों को बाँटकर बनाई हुई गोलबंदी पर टिकीहोती है । आप सांप्रदायिक है इसका प्रमाण समाजवादी या कांग्रेस में नहीं है बल्कि यह है कि आपको हिंसा की इन बातें पर कोई अफ़सोस नहीं होता । आप इन कारणों का इस्तमाल कर सांप्रदायिकता का बचाव कर रहे होते हैं । उसने ऐसा किया, उनके लोगों ने किया टाइप ।

जिस राष्ट्रवाद की समझ किसी धर्म पर आधारित हो उसका बेड़ाग़र्क होना तय है । हमने इसका एक प्रमाण देख लिया है इसके बावजूद कुछ लोग राष्ट्रवाद को धर्म से परिभाषित करते हैं । उसमें यानी जो जो हो चुका है और इसमें जो होना चाहता है कोई फ़र्क नहीं है । धर्म के आधार पर राष्ट्रवाद विभाजन की उस प्रक्रिया को अपनी सीमा में जारी रखता है जो १९४७ से शुरू हुआ था । राष्ट्रवाद एक समस्याग्रस्त और कृत्रिम अवधारणा है । इसे दुनिया भर के साहसिक सैनिकों के बलिदान की गाथाओं की चासनी में गढ़ा जाता रहा है । राज्य विस्तार की क्रूर आकांक्षाओं ने इसे रचा और बाद में आर्थिक संसाधनों के लिए होड़ करता हुआ ठोस रूप पाया । अब यही राष्ट्रवाद धंधे के लिए सीमाओं को ख़ारिज कर ग्लोब को गाँव कहता है । हम खुद को ग्लोबल नागरिक !

भारत जैसे धर्म बहुल एक देश में राष्ट्रवाद को सिर्फ एक धर्म से चिन्हित करना सवर्णों के वर्चस्व प्राप्ति की लालसा से ज़्यादा कुछ नहीं । यह धार्मिक प्रतिस्पर्धा का चयन करता है और उसके भय के नाम पर बाक़ी धर्मों को अपनी पहचान में शामिल करने के लिए प्रचार तंत्रों का सहारा लेता है । जिन सैनिकों ने बलिदान दिया उन्होंने किसी धार्मिक राष्ट्रवाद के लिए नहीं दिया । उस भारत के लिए दिया जो भारत है न कि जिसका राष्ट्रवाद धार्मिक है । एक चतुर रणनीति के तहत सांप्रदायिक मानसिकता धार्मिक राष्ट्रवाद का सहारा लेती है । यह बहस की हर संभावना को समाप्त कर हिंसक तरीके से अपनी सोच थोपेगी । आप सांप्रदायिक हैं तो आपको ये बातें अच्छी लगेंगी । कोई सांप्रदायिक और धार्मिक राष्ट्रवादी जुनून की बात करे तो उसकी जात पर ध्यान दीजियेगा । ज़्यादातर सवर्ण मिलेंगे । वे सवर्ण जो धार्मिक बहुलता को समाप्त कर अपना खोया हुआ ऐतिहासिक वर्चस्व पाना चाहते हैं जो आज की राजनीति उन्हें नहीं दे पाती है । इस सोच के दायरे में बाक़ी जातियाँ भी मिलेंगी लेकिन नेतृत्व सवर्ण का होगा । ये बाकी जातियाँ  सांप्रदायिकता से पैदा किये जाने वाले राजनीतिक अवसरों में छोटी हिस्सेदारी की ताक में होती हैं । यही प्रवृत्ति आप प्रतिस्पर्धी धार्मिक सांप्रदायिकता में भी देखेंगे । वहाँ भी मरने वाले निचले तबके के लोग होते हैं । ऊपरी तबक़ा उनका रक्षक बनकर नेतृत्व हासिल करने का प्रयास करता है । सेकुलर सत्ता से लाभ प्राप्त करता है और व्यापक समाज को पिछड़ने के लिए छोड़ देता है ।

फिर कहता हूं सांप्रदायिकता एक मानसिकता होती है । उसके पास दूसरे पक्ष की ग़लतियों की जानकारी का अंबार होता है । अपनी कमी नहीं बतायेगा मगर दूसरे की कमी गिनेगा । राजनीति इस मानसिकता का लाभ उठाने के लिए इन ग़लतियों की पृष्ठभूमि तैयार करती है क्योंकि उसे लाभ मिलता है । कई राजनीतिक दलों ने इसका खूब फ़ायदा उठाया । सरकार को ऐसे भेदभाव करने की छूट दी जिससे सांप्रदायिक विमर्श की खुराक कम न हो । विरोधी पक्ष ने भी यही किया । जब तक सरकार और राजनीति धर्म निरपेक्ष नहीं होंगे सांप्रदायिकता ज़िंदा रहेगी । राजनीति चाहती है कि ज़िंदा रहे ताकि इन अंतरों को उभार कर वोट ले सके ।

यह सब हम जानते हैं । मूल बात है कि सांप्रदायिक लोग सामने वाले की मज़हब को बर्दाश्त नहीं करते । ख़ून के प्यासे होते हैं । अपनी कृत्रिम कुंठा को वीरगाथा के रूप में प्रदर्शित करने के लिए एक अभाववादी और पीड़ित मानसिकता का सहारा लेते हैं जिसकी बुनियाद झूठ पर टिकी होती है । कुछ बातें सही भी होती हैं । सवर्ण मानसिकता दूसरे के नागरिक अधिकारों को हमेशा तुष्टीकरण के रूप में देखती है । अपने धर्म के भीतर और दूसरे धर्म के भीतर भी । आप सांप्रदायिक हैं इसीलिए आपको ये बातें जँचती हैं न कि कोई छद्म सेकुलर है इससे । अपने भीतर की सांप्रदायिकता से लड़िये । पहले इस बीमारी को दूर कीजिए फिर सेकुलर नाम की राजनीति के बंदरबाँट के घावों को दूर कर लिया जाएगा । बल्कि ये सेकुलर घाव अपने आप सूख जायेंगे । हर धर्म में सांप्रदायिक तत्व होते हैं । हर धर्म में लोग इनसे लड़ते हैं । जैसे कभी दलितों और पिछड़ों ने मिलकर सांप्रदायिकता या धर्म आधारित राजनीतिक अवसरों को कुंद कर दिया था । अब धार्मिक राष्ट्रवाद की सांप्रदायिक सोच दलित पिछड़ों में से किसी को आगे कर अपनी व्यापकता प्राप्त करने का प्रयास कर रही है । पिछड़ी जाति के नेता इसके ध्वजवाहक हैं और नेतृत्व अभी भी सवर्णों के पास है ।

राष्ट्रवाद किसी धर्म की चादर में लिपट कर महान होता है या उसका अवसान । अगर राष्ट्रवाद अपने दम पर टिकने लायक नहीं है तो धर्म की आड़ में जल्दी ही निर्मल बाबा की दुकान बनने वाला है । बन चुका है । सोचियेगा । आसपास देखते रहियेगा । कौन दबा रहा है राजनीतिक असहमतियों को । सेकुलर होने में सौ समस्याएँ हैं क्योंकि यह एक तकलीफ़ देह और जटिल प्रक्रिया है । क्योंकि आप सेकुलर दलो को देखकर होना चाहते हैं , खुद को देखकर नहीं । सेकुलर दलों की सांप्रदायिकता भी कम खतरनाक नहीं है । तब भी क्या आप यह कहेंगे कि सांप्रदायिक होना गर्व की बात है क्योंकि सेकुलरों ने छला है । तभी कह रहा हूँ ऐसा आप इसलिए नहीं कहते कि सेकुलरों ने ठगा है बल्कि आप सांप्रदायिक हैं । अगर हैं तो !

रवीश कुमार के ब्लाग 'कस्बा' से साभार.

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

… अपनी भड़ास [email protected] पर मेल करें … भड़ास को चंदा देकर इसके संचालन में मदद करने के लिए यहां पढ़ें-  Donate Bhadasमोबाइल पर भड़ासी खबरें पाने के लिए प्ले स्टोर से Telegram एप्प इंस्टाल करने के बाद यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia 

Advertisement

You May Also Like

विविध

Arvind Kumar Singh : सुल्ताना डाकू…बीती सदी के शुरूआती सालों का देश का सबसे खतरनाक डाकू, जिससे अंग्रेजी सरकार हिल गयी थी…

विविध

: काशी की नामचीन डाक्टर की दिल दहला देने वाली शैतानी करतूत : पिछले दिनों 17 जून की शाम टीवी चैनल IBN7 पर सिटिजन...

प्रिंट-टीवी...

सुप्रीम कोर्ट ने वेबसाइटों और सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट को 36 घंटे के भीतर हटाने के मामले में केंद्र की ओर से बनाए...

सुख-दुख...

Shambhunath Shukla : सोनी टीवी पर कल से शुरू हुए भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप के संदर्भ में फेसबुक पर खूब हंगामा मचा।...

Advertisement