सेवा में, श्रीमान् सम्पादक जी, भडास 4 मीडिया डाट काम। विषय- अपनी संस्था/सा0 समाचार पत्र में एक वर्ष से ज्यादा कार्य कराने के बावजूद भी प्रशासन को बताया फर्जी पत्रकार। महोदय, बडे़ दुख के साथ आपको अवगत कराना चाहता हूं कि मैं प्रार्थी प्रशांत सक्सेना वर्तमान ब्यूरो चीफ, आवाज प्लस कानपुर नगर में सन् 2006 से पत्रकारिता का कार्य कर रहा हूं। मैंने 2010 तक निजी अखबारों/पत्रिका/न्यूज चैनलों में कार्य किया जिसकी सूचना मैंने जिलाधिकारी/उपपुलिस महानिरीक्षक/सूचना विभाग कानपुर को लिखित दी थी। पत्रकारिता के इस गन्दे माहौल में घुसने के बाद 2009-2010 में जन शिक्षण संस्थान, कानपुर (मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार) से पत्रकारिता सर्टिफिकेट का एक वर्ष का कोर्स किया। बडे़ अखबारों/चैनलों में काफी प्रयास किया परन्तु कोई मौका नहीं मिला, यदि मौका मिला तो मैं चैनल की आईडी खरीदने में असमर्थ रहा। सम्पादकों व न्यूज हेड से जान-पहचान न होने के कारण आज मैं बडे़ बैनर से बहुत दूर हूं।
जब मुझे छोटे बैनरों से एक भी रुपये का सहारा नहीं मिला तो मेरे लिये पत्रकारिता एक शौक के रूप में हो गयी। मैंने सोचा किसी पत्रकार संगठन से जुड़ कर प्राइवेट नौकरी करूंगा। तब मैंने अखिल भारतीय स्वतन्त्र पत्रकार महासंघ रजि0 के लिये आवेदन किया, जिसका सदस्ता शुल्क 200 रुपये वार्षिक/ 500 रुपये विशिष्ट/1100 रुपये आजीवन व 50 रुपये नवीनीकरण है। महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. सर्वेश कुमार ’सुयश’ (राजकीय मान्यता प्राप्त पत्रकारा) द्वारा मांगी गयी सभी औपचारिकताओं को पूर्ण कर मैंने जनवरी 2011 में 200 रुपये की वार्षिक सदस्यता हेतु अपना पंजीकरण कराया। संस्था ने दिनांक 20/01/11 को मेरा आवेदन स्वीकारते हुये परिचय पत्र जारी किया। राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा मुझे 06/02/11 महासंघ की प्रदेश कार्यकारिणी में स्वतंत्र पत्रकारों की समस्याओं का निराकरण कर उनके कल्याण और संगठन को मजबूती प्रदान करने हेतु मुझे जिलाध्यक्ष, उन्नाव मनोनीत किया गया।
राष्ट्रीय अध्यक्ष के कहेनुसार मैंने उन्नाव जनपद में 11 लोगों की (200 रुपये/1100 रुपये) कार्यकारिणी 2011 एक वर्ष के लिये बनाकर अनुमोदन हेतु राष्ट्रीय अध्यक्ष को सौंप दी और उन्होंने भी कार्यकारिणी को स्वीकार कर कार्यालय खोलने की अनुमति दे दी। मैं इस दलदल में और फंसता गया। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मुझे अपना विश्वास पात्र बनाकर छोटे भाई की उपाधि दी। अपनी पत्नी के नाम से प्रकाशित कानपुर संवाद सा0 अखबार से जोड़ कर संवाददाता का परिचय पत्र जारी किया। डा. साहब काफी समय से 2012 तक कानपुर का इतिहास लिख रहे हैं। उनके कहेनुसार कानपुर संवाद अखबार के अलावा मैंने कानपुर का इतिहास के लिये काफी भाग-दौड़ की उनका कहना था कि तुम्हारा नाम भी रिसर्च टीम में डाल दिया है, तुम भी इतिहास में दर्ज हो जाओगे।
वह हमेशा मुझे बडे़ पेपरों में नौकरी लगवाने के साथ-साथ कई चीजों का लालच देते रहे, लालच के आगे मेरी भी आंखें बंद थी। मैं यह सोच कर उनका साथ देता रहा कि शायद यह कभी मुझे किसी अखबार में नौकरी लगवा देंगे। जब मैं उनसे किसी पेपर में साक्षात्कार देने के लिये पूछता था तो वह मुझे मना कर देते थे कि तुम अभी और सीखों, मैं जब किसी अखबार में कार्य करूंगा तो तुमें जरूर लगावांऊगा। ज्यादा करीबी होने के नाते मुझे विशेष संवाददाता का पद दिया। रिर्पोटिंग के दौरान प्रत्येक सप्ताह मेरे नाम से खबरें भी प्रकाशित की गयी। राष्ट्रीय अध्यक्ष के कहेनुसार संगठन में मैंने लगभग मीडिया से जुडे़ 30 से 35 लोगों को कानपुर व उन्नाव में (200 रुपये से 1100 रुपये) तक की सदस्ता के साथ जोड़ा, जिसमें कुछ पत्रकार व कुछ प्राइवेट कार्यों से जुडे लोग शामिल हैं।
सदस्ता शुल्क लेते समय डा. साहब को गैर पत्रकार नहीं दिखाई दिये, उनका कहना था कि जिसको भी संगठन में जोड़ो 1100 रुपये का आजीवन सदस्य बनाना। यदि वह पत्रकारिता से वास्ता नही रखता है तो मैं अपने कानपुर संवाद में उसके नाम से खबर लगाकर उसका रिकार्ड मेंटेन करुंगा। ठीक ऐसा ही हुआ, मेरे द्वारा कानपुर, कन्नौज व रमाबाई नगर से कई पत्रकारों को जोड़ा गया, जिसमें से इन्होंने तीनों जिलों में जिलाध्यक्ष मनोनीत किये। मनोनीत करने के बाद इन्होंने ठीक मेरी तरह उन पर भी 11 लोगों की 1100 रुपये की कार्यकरिणी बनाने के लिये डंडा किया, जिसका शुल्क 12,100 रुपये होता है। 11 लोगों की कार्यकारिणी के अलावा अनगिनत सदस्य बनाये जा सकते हैं। कार्यकारिणी बनाने के बाद नुख्स निकालना और उनका शुल्क लेकर दूसरे को जिलाध्यक्ष बनाना और उनके नाम से अपने अखबार में खबर प्रकाशित कर उन्हें स्वतन्त्र पत्रकार बनाना आम बात है।
संगठन के नाम पर स्वतन्त्र पत्रकार बनाने वाले डा. साहब का जब मैंने बिल्कुल साथ छोड़ दिया तो उनको बहुत खराब लगा और उनकी पत्नी द्वारा जारी किया गया कानपुर संवाद परिचय पत्र वापस ले लिया गया, क्योंकि मेरी हर जगह से बुराई हुयी। पहले किसी को जिलाध्यक्ष मनोनीत करना, किसी को स्वतंत्र प्रेस क्लब का अध्यक्ष बनाकर प्रेस क्लब खोलने की अनुमति देना और प्रशासन को सूचित करना, फिर उससे वह पत्र वापस मांगना और उसे फर्जी बताकर पुनः प्रशासन को सूचित करना। एक वर्ष तक उनके साथ रहकर कुछ भविष्य न देखते हुए मैंने फरवरी 2012 में प्राइवेट नौकरी करनी चाही, लेकिन वहां से भी मेरी बुराई करा दी। मैं जानबूझ कर आवाज प्लस न्यूज नेटवर्क से जुड़ा, क्योंकि इनके साथ रह कर मेरी मीडिया में बहुत बुराई हुयी। मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था। यह बात उनको और खराब लगी। मेरे ही आदमियों को फोन कर फर्जी, 420 और लाखों रुपये का गबन बताकर सीबीआई जांच कराने की बात कह कर मुझे अपमानित किया। क्योंकि जब से मैंने साथ छोड़ा उनका प्रत्येक माह नुकसान हुआ।
दूसरे मीडिया कर्मियों की बुराई करना, उसे दलाल बताना और मुझे ईमानदारी का पाठ पढ़ाने वाले अखिल भारतीय स्वतन्त्र पत्रकार महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. सर्वेश कुमार सुयश राजकीय (मान्यता प्राप्त पत्रकार) मेरे प्रति कितनी घृणा रखते हैं, उनके द्वारा दि0 11/05/12 को भेजे गये आरोप/निष्कासन/अनुशासनात्मक कार्यवाही पत्र से पता चल जाता है – ''महोदय, आपको सन् 2011 की कार्यसमिति में उन्नाव का जिलाध्यक्ष नियुक्त किया गया, लेकिन आप स्वंय व आपकी कार्यसमिति में सभी फर्जी पत्रकार पाये गये, जो स्वतन्त्र पत्रकारों की बजाय अनेक व्यवसायों में लिप्त पाये गए। आप ने पत्रकारों के कल्याण के कम स्वंय के कल्याण के कार्य ज्यादा किये। आपने संगठन में ऐसे तथाकथित लोगों को जोड़ा जिन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष के आदेशों की अवहेलना करते हुये संगठन की छवि को धूमिल कर विशेषाधिकार हनन किया। आप संगठन को दिये गये पते पर रहते हुये नहीं पाये गये। जानकारी करने पर पता चला कि आप ने निवास बदल दिया है। भेजा गया आरोप पत्र वापस आ गया। आप जिलाध्यक्ष उन्नाव रहे, परन्तु आपका कार्य क्षेत्र कानपुर नगर रहा। दो वर्षों तक आप ने एक भी बैठक नहीं कराई और जेबी ईकाई के स्वयंभू अध्यक्ष बने रहे। आपके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के चलते हुये तत्काल प्रभाव से उन्नाव इकाई को भंग करके आपको संगठन से निष्कासित कर अध्यक्ष पद से मुक्त किया जाता है तथा आपको इस बात की सख्त हिदायत दी जाती है कि यदि आप भविष्य में स्वयं या कोई पदाधिकारी फेडरेशन का परिचय पत्र/लेटरपैड आदि का प्रयोग करते पाये गये तो आपके खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही की जायेगी।''
यशवन्त जी, मैं आपके बेव पोर्टल के सहारे अपनी भड़ास नहीं निकाल रहा हूं और न ही डा. साहब की बुराई कर रहा हूं, जो हकीकत हैं वह बयां कर रहा हूं ताकि और भी नये लोग जो पत्रकारिता जगत में कदम रख चुके हैं या रखने वाले हैं, जरा संभल कर इस दलदल पर पैर रखे, क्योंकि इस लाइन में कोई किसी का सगा नहीं है और न ही किसी पर विश्वास करना। जिसके लिये मैंने रात-दिन मेहनत की और हर परेशानियों में खड़ा रहा वह आज मुझे अपना दुश्मन मानने लगे हैं। डर इस बात का है कि मुझे किसी आरोप में न फंसा दें। क्या देख कर मेरा स्वंय व मेरे द्वारा जोडे़ गये लोगों का आवेदन स्वीकार कर पंजीकरण कर लिया और परिचय पत्र जारी किया, जो आज मुझे और मेरे लोगों को फर्जी पत्रकार की संज्ञा दी गयी। एक वर्ष तक डा. साहब के साथ पत्रकारिता करते हुये भी वह मुझे भांप नहीं पाये और हमारी जांच नहीं करा पाये। उनके द्वारा लगाये गये सभी आरोप गलत हैं, मेरे पास कई प्रमाण हैं जो साबित कर सकते हैं कि मैंने उनके साथ रहकर उनके निजी कार्यों के साथ संगठन/समाचार पत्र/कानपुर इतिहास के लिये कार्य किया। और आज साथ छोड़ते हुये ही मैं उनके लिये बुरा हो गया। ऐसी स्थिति में मेरा साथ कौन देगा।
प्रार्थी
प्रशांत सक्सेना
कानपुर
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