प्रेम शुक्ला जी, आप 'सामना' के संपादक हैं। उत्तर भारतीय हैं, मगर शिवसेना के सेवक हैं इसीलिए उत्तर भारतियों के खेलाफ शिवसैनिकों की किसी करवाई के खिलाफ ना कभी कुछ लिखते हैं ना कभी कुछ बोलते हैं। आजकल किसी न किसी न टीवी चैनल पर रोज़ नज़र आ जाते हैं। कभी कभी ऐसी बातें करते हैं जैसे सपने में हों। एक दिन आप कहने लगे हिन्दुस्तान के मुल्लाओं को सऊदी अरब और दूसरे अरब देशों से रिश्ता तोड़ लेना चाहिए। प्रेम शुक्ला जी, यहाँ के मुल्लाओं ने कौन सा राजनयिक संबंध स्थापित कर रखा है अरब देशों के साथ?
आप अपने यही शुभ विचार भारत सरकार के समक्ष रखिये, और साथ में ये भी बता दीजिए की पेट्रोल की आपूर्ति का क्या किया जाये? क्योंकि छोटी-ही सही, गाड़ी तो आपके पास भी होगी, और आपके आक़ा (Boss) के पास भी. पेट्रोल के अभाव में आपकी 'गाड़ी' कैसे चलेगी श्रीमान! अब कल की बात ही लीजिये. कहने लगे "शिवसेना और मैं राष्ट्रवाद में विश्वास रखते हैं।"
इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है कि आप राष्ट्रवादी हों, मगर शुक्ला जी आपने कभी ये सोचा है कि जब शिवसेना के 'राष्ट्रवादी' कार्यकर्ता मुंबई में बिहारियों और यूपी निवासियों को पीटते हैं, बिहार और दूसरे राज्यों के विद्यार्थियों के admit card फाड़ देते हैं, रिक्शा चालकों और फेरीवालों को मारते हैं, और उन्हें मुंबई से निकल जाने का आदेश देते हैं, तब आपका 'राष्ट्रवाद' कहाँ चला जाता है। आप भी तो उत्तर भारतीय हैं प्रेम जी, उनके लिए तो आपका प्रेम जागना चाहिए.
कहीं 'राष्ट्रवाद' से आपका मतलब 'राज्यवाद' तो नहीं था? और, हाँ शुक्ला जी, जिस अरब देशों से आप संबंध तोड़ने की बात कर रहे हैं, उसी अरब देशों में सैकड़ों बल्कि लाखों भारतीय रहते हैं जो वहां से मुद्रा अपने देश भेजकर भारत की economy को लाभ पहुंचाते हैं। मगर किसी अरब देश में भारतीयों के पासपोर्ट नहीं फाड़े जाते, कोई 'अरबसेना' वहां कार्यरत भारतीयों को अरब छोड़ने की धमकी नहीं देता।
मुस्तेजाब खान