पूरा देश देख रहा है कि चिटफंड के उस्ताद सुब्रत राय का क्या होगा. फिलहाल सारी कवायद हवाबाजी सरीखी ही नजर आ रही है. पर आज जब सेबी ने यह अनुरोध कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट अवमानना के मामले में सुब्रत राय को छह माह जेल भेज दे तो ज्यादातर लोग इस बात पर चर्चा करने लगे हैं कि क्या वाकई सुब्रत राय जेल जाएंगे? हालांकि इस सिस्टम में इतने पेंच हैं कि सु्ब्रत राय बच भी सकते हैं, ऐसा विशेषज्ञों का मानना है.
फिलहाल सेबी की बात करें जिसने उच्चतम न्यायालय से पुरजोर गुहार लगायी है कि निवेशकों को 24 हजार करोड़ रूपए लौटाने के न्यायिक आदेश का पालन नहीं करने के कारण सहारा समूह के मुखिया सुब्रत राय और उनकी दो कंपनियों तथा उनके निदेशकों को दंडित किया जाये. सेबी ने सुप्रीम कोर्ट में सुब्रत राय के इस तर्क का प्रतिवाद किया कि सहारा इंडिया हाउसिंग इंवेस्टमेन्ट कार्प लि. और सहारा इंडिया रियल इस्टेट कार्प लि, द्वारा निवेशकों का धन नहीं लौटाने के कारण उन्हें दंडित नहीं किया जा सकता है. सेबी ने कहा कि इन कंपनियों में सुब्रत राय के 70 फीसदी शेयर हैं और ऐसी स्थिति में उसे न्यायालय की अवमानना के लिये छह महीने की कैद या जुर्माने की सजा दी जा सकती है.
न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जे एस खेहड़ की खंडपीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता अरविन्द दत्तार ने कहा, इन कंपनियों का प्रवर्तन होने के नाते इसमें उनकी स्थिति है जो कंपनियों में निदेशकों की होती है और वह भी अवमानना के लिये जिम्मेदार हैं. उन्हें भी कंपनियों के दूसरे निदेशकों के साथ दंड दिया जाना चाहिए. दात्तार ने न्यायालय की अवमानना कानून की धारा 12 के तहत राय और अन्य को अधिकतम सजा देने का अनुरोध किया. इस धारा के तहत अधिकतम छह महीने की कैद की सजा का प्रावधान है. उन्होंने कहा, इन कंपनियों द्वारा एकत्र की गयी धनराशि की मात्रा को देखते हुये यह राय और कंपनियों को अधिकतम दंड देने का उचित मामला है. उन्होंने कहा कि कंपनियों ने एक नहीं बल्कि शीर्ष अदालत के तीन तीन आदेशों का उल्लंघन किया है.
सेबी के वकील ने कहा कि इन कंपनियों ने निवेशकों को धन लौटाने के बारे में शीर्ष अदालत के 31 अगस्त और दिसंबर, 2012 के आदेशों पर अमल नहीं किया है. सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने जानना चाहा कि क्या यह रकम समूह की दूसरी कंपनियों से वसूली जा सकती है. सेबी ने दलील दी कि अन्य कंपनियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जा सकती है क्योंकि निवेशकों से एकत्र किया गया धन समूह की दूसरी कंपनियों में लगाया गया जिसका मुखिया वही प्रवर्तक है. न्यायालय राय, दो कंपनियों और उनके निदेशकों के खिलाफ दायर तीन अवमानना याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था. ये सभी छह अगस्त को अपना पक्ष रखेंगे. शीर्ष अदालत ने पिछले साल 31 अगस्त को सहारा समूह को निवेशकों को नवंबर के अंत तक धन लौटाने का निर्देश दिया था. न्यायालय ने यह समय सीमा आगे बढ़ाते हुये कंपनियों को 5120 करोड़ रूपए तत्काल जमा कराने और दस हजार करोड़ रूपए जनवरी के पहले सप्ताह में तथा शेष फरवरी के प्रथम सप्ताह में जमा कराने का निर्देश दिया था.
सेबी ने न्यायालय से कहा कि इस समूह ने पांच दिसंबर को 5120 करोड़ रुपए का ड्राफ्ट दिया था लेकिन इसके बाद वह शेष रकम का भुगतान करने में विफल रहा है. शीर्ष अदालत ने पिछले साल 31 अगस्त को सहारा समूह की दो कंपनियों को तीन महीने के भीतर अपने निवेशकों को 15 फीसदी ब्याज के साथ सारी रकम लौटाने का निर्देश दिया था. न्यायालय ने कहा था कि यदि कंपनी यह धन लौटाने में विफल रहती हैं तो सेबी उनकी संपत्ति कुर्क करने के साथ ही बैंक खाते जब्त कर सकती है. इन दोनों कंपनियों, इनके प्रवर्तक राय और निदेशक वंदना भार्गव, रवि शंकर दुबू और अशोक राय चौधरी को सेबी को यह धन लौटाने का निर्देश दिया गया था. (एजेंसी)