जिन सुभाष चंद्रा और पुनीत गोयनका के कहने पर इनके संपादक द्वय सुधीर चौधरी और समीर अहलूवालिया जिंदल समूह के मालिक नवीन जिंदल को ब्लैकमेल कर रहे थे, खबरें रोकने के लिए सौ करोड़ रुपये मांग रहे थे, उन मीडिया मालिकों को पुलिस ने अरेस्ट क्यों नहीं किया? क्या इसलिए कि वे बड़े लोग हैं, मालिक लोग हैं, रसूख वाले हैं, सत्ता केंद्रों तक उनकी सीधी पहुंच है… बस इसलिए? यह तो बड़ा अन्याय है.
आखिर संपादक लोग खबर रोकने के लिए पैसे मांगने का काम तो अपने मालिकों की सहमति से ही तो कर रहे थे. फिर क्यों बख्शा गया मालिकों को. जबकि एफआईआर तक में इन सुभाष चंद्रा और पुनीत गोयनका का नाम है. तो फिर यह नाइंसाफी क्यों हुई. क्या यही न्याय और कानून है..
सच तो यही है कि भारत में हर स्तर पर पूर्वाग्रह और जुगाड़ से ही काम होता है. न्याय केवल एक अमूर्त शब्द की तरह होता है. कानून कहने को सबके लिए बराबर होता है पर सच्चाई यही है कि कानून भी छोटा बड़ा देखता है. एक बार फिर न्याय और कानून का पक्षपात साफ साफ दिख रहा है. दो नौकरों को पकड़वा दिया और मालिक लोग बच निकले. इन्हीं दोनों मालिकों ने कभी खुद को और अपने संपादकों को पूरे प्रकरण में पाक-साफ बताया था.
यकीन न हो तो नीचे दिए गए शीर्षकों में से इनसे संबंधित शीर्षकों पर क्लिक करके पढ़ डालिए. बाकायदा पीटीआई ने खबर जारी की थी कि जी ग्रुप के मालिकों ने खुद को और अपने संपादकों को क्लीन चिट दे दिया. जी ग्रुप की तरफ से जीक्यू नामक पहला एजुटेनमेंट (एक से चौदह साल की उम्र के बच्चों के लिए केंद्रित एजुकेशन प्लस इंटरटेनमेंट) चैनल लांच किए जाने के मौके पर जी इंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज के मैनेजिंग डायरेक्टर और चीफ एक्जीक्यूटिव आफिसर पुनीत गोयनका ने कहा था कि नवीन जिंदल की कंपनी की तरफ से लगाए गए आरोप बकवास हैं. ऐसे आरोप लगते रहते हैं. आगे भी लगेंगे. यह सब दबाव बनाने की रणनीति है.
जी ग्रुप के चेयरमैन सुभाष चंद्रा ने भी तब कहा था कि उनके चैनल का कोई भी पत्रकार गलत काम में लिप्त नहीं है. उन पर लगाए गए आरोप झूठे हैं. इन बयानों की रोशनी में कहा जा सकता है कि एफआईआर में नाम होने के कारण मालिक लोग अपने संपादकों को पाक-साफ बताने के लिए मजबूर थे. पर अब समझ में आ रहा है कि अंदर ही अंदर कोई डील हुई है जिसके तहत संपादक लोगों को पकड़ कर अंदर कर दिया गया और मालिक लोगों को किन्हीं शर्तों पर राजी करके खुला छोड़ दिया गया है. ये शर्तें क्या हो सकती हैं, आप भी अंदाजा लगाइए.
यहां यह बताना चाहूंगा कि भड़ास ने जब ब्लैकमेलिंग कांड का सबसे पहले खुलासा किया तो एक एक करके अंग्रेजी अखबारों ने इसे छापना शुरू किया. फिर कुछ चैनलों पर खबर चली. जी न्यूज आत्मरक्षा में खुद अपनी छीछालेदर कराने वाली बहसें अपने चैनल पर दिखाने लगा. हिंदी अखबारों में भी थोड़ी बहुत खबरें छपी. लेकिन सबसे ज्यादा आक्रामक तेवर न्यू मीडिया और सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने अपनाया. इन न्यू मीडिया माध्यमों ने कारपोरेट मीडिया, भ्रष्ट मीडिया, पतित संपादक, हरामखोर मालिक, नैतिकता, अवमूल्यन.. सब पर बात की, बहस की, विचार रखे. अब जब संपादकों की गिरफ्तारी हुई है तो थोड़ी बहुत खबरें दिखाने के बाद कारपोरेट मीडिया वाले चुप्पी साध लेंगे लेकिन न्यू मीडिया माध्यमों पर बहस जारी रहेगी. खासकर यह बहस जरूर चलेगी कि आखिर मालिक लोगों को क्यों छोड़ दिया गया?
यशवंत सिंह
संपादक
भड़ास4मीडिया
yashwant@bhadas4media.com
09999330099
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