राघवेंद्र मुद्गल ने धरती से खुद की विदाई का दिन भी क्या चुना…जिस दिन पूरा देश बाला साहब ठाकरे को अपने-अपने तईं विदाई दे रहा था…सबको जगाने वाली आवाज सो गई…बेहतर आवाज के धनी राघवेंद्र मुद्गल को उनकी प्रतिभा और प्रतिभा पर अत्यधिक भरोसा ही खा गया..अन्यथा उन्हें अपने आवाज की जादुई तासीर को बेहतर तरीके से दुनिया को और भी बहुत कुछ देना-दिखाना था…लेकिन सेहत से खिलवाड़ की हद तक की शराबनोशी की उनकी आदत ने उन्हें अंदर से खोखला बना कर रख दिया था…
इसका हश्र यह हुआ कि उनसे उम्मीद लगाए बैठे लोगों को झूठा और नाउम्मीद करते हुए वे गुजर गए..अभी पंद्रह दिनों पहले उन्होंने फोन किया था..जिंदगी के झंझावात में कई बार खुद पर भरोसा खत्म होने लगता है..लेकिन पता नहीं क्यों राघवेंद्र को मुझसे बहुत कुछ का भरोसा था…जब भी फोन करते तो कहते-भैया आपको अभी बहुत कुछ करना है…पता नहीं उम्र में वे मुझसे बड़े थे या नहीं…लेकिन उनके मुख से भैया संबोधन सुन खुद को ही नहीं..आसपास मौजूद लोगों को भी अटपटा लगता।
उन्हें कई बार समझाया भी..लेकिन आखिरी वक्त तक नहीं माने..टेलीविजन उनका पैशन था…यह बात और है कि उन्होंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय की तालीम हासिल की थी..लेकिन वे टेलीविजन में ही नौकरी ढूंढ़ रहे थे…आखिरी फोन भी उसी सिलसिले में था… और….
वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी के ब्लाग मीडिया मीमांसा से साभार.