नई दिल्ली। एक और कार्यकाल हासिल करने के लिए कई दांव-पेच आजमाने के बाद महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के विवादग्रस्त कुलपति विभूति नारायण राय ने क्या ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल किया है? पता चला है कि वे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे सांसद अभिजीत मुखर्जी और बांग्ला की प्रख्यात लेखिका महाश्वेता देवी के जरिए राष्ट्रपति पर दबाव बनाने में जुटे हैं।
राष्ट्रपति हिंदी विश्वविद्यालय के विजिटर हैं। पूर्व पुलिस अधिकारी राय की मुश्किल यह है कि उनके खिलाफ गंभीर शिकायतों का अंबार ही नहीं है, सतर्कता आयोग तक में अनेक शिकायतों की जांच लंबित है। महिला-विरोधी विचार प्रकट करने के लिए उन्हें केंद्र सरकार को सफाई देने के बाद सार्वजनिक माफी मांगनी पड़ी थी। इस मुद्दे को लेकर किसी कुलपति के खिलाफ संभवत: पहली बार हिंदी के लगभग दो सौ लेखकों ने बयान जारी किया था।
दिलचस्प बात यह है कि नए कुलपति के लिए केंद्र सरकार गठित सर्च कमेटी में राष्ट्रपति द्वारा ही मनोनीत संयोजक, कवि-आलोचक और हिंदी विश्वविद्यालय के संस्थापक-कुलपति अशोक वाजपेयी, के विरोध के बावजूद राष्ट्रपति को भेजे गए पांच नामों में विभूति नारायण राय अपना नाम जुड़वाने में सफल रहे हैं। कमेटी में लखनऊ से आए ‘मैनेजमेंट गुरु’ प्रीतम सिंह के साथ विदुषी कपिला वात्स्यायन ने भी चौथे नाम के स्थान पर राय का नाम जुड़वाने में सहमति जाहिर कर दी। इस पर अशोक वाजपेयी ने इस विवादास्पद नाम पर अपनी लिखित कड़ी आपत्ति दर्ज की।
राष्ट्रपति के प्रतिनिधि होने के कारण राष्ट्रपति के समक्ष अशोक वाजपेयी की राय का महत्त्व बढ़ जाता है। माना जाता है इसी की काट के लिए विभूति नारायण राय ने राष्ट्रपति के बेटे और प्रतिष्ठित बांग्ला कथाकार महाश्वेता की शरण ली है। महाश्वेता देवी के करीबी पत्रकार को राय अपने विश्वविद्यालय में अच्छी-खासी नियुक्ति दे चुके हैं। बताया जाता है कि पत्रकार राष्ट्रपति के बेटे अभिजीत के बीच भी कड़ी का काम कर रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक सर्च कमेटी ने जो पांच नाम हिंदी विश्वविद्यालय के अगले कुलपति के लिए प्रस्तावित किए, उनमें पहला नाम संघ लोक सेवा आयोग के पूर्व सदस्य और आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल का है। दूसरा भाषाविद् और विश्व भारती के प्रो-वाइस चांसलर उदय नारायण सिंह का, तीसरा राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के कुलपति राधावल्लभ त्रिपाठी का और चौथा विभूति नारायण राय का है। आखिरी नाम प्रो गिरीश्वर मिश्र का बताया जाता है। हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति के तौर पर विभूति नारायण राय का कार्यकाल इसी महीने के अंत में पूरा होने वाला है।
गौरतलब है कि कपिला वात्स्यायन और प्रीतम सिंह को विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद ने सर्च कमेटी के लिए नामित किया है। आरोप है कि राय की ओर से सर्च कमेटी के एक सदस्य के जरिए प्रस्तावित सूची में राय का नाम शामिल करवाने के लिए संयोजक अशोक वाजपेयी पर दबाव डाला गया। एक सदस्य के अंत तक अड़ जाने पर वाजपेयी ने पांच नामों में विभूति का नाम तो शामिल कर लिया, लेकिन साथ में अपनी असहमति का नोट भी नत्थी कर दिया। बताया जाता है राष्ट्रपति को भेजी गई पांच लोगों की सूची में अपना नाम जुड़वाने और इसके लिए सर्च कमेटी के सदस्यों को प्रभावित करने के प्रयास में राय ने दिल्ली और कोलकाता में भारी लाबिंग की।
इस बारे में संपर्क करने पर वाजपेयी ने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। सूत्रों के मुताबिक वाजपेयी ने राष्ट्रपति को भेजे गए अपने असहमति नोट में कई मुद्दे उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि मार्च में केंद्रीय सतर्कता आयोग ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को राय के खिलाफ मिली शिकायतों की जांच करने को कहा था। सतर्कता आयोग ने मंत्रालय को जांच के लिए बारह हफ्ते का समय दिया था। लेकिन मंत्रालय ने अब तक अपनी जांच रिपोर्ट आयोग को नहीं भेजी है। वाजपेयी ने कहा कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने भी 2009-11 और 2011-12 की अपनी रिपोर्ट में विश्वविद्यालय प्राधिकारियों की गंभीर वित्तीय अनियमितताओं की ओर संकेत किया था।
सूत्रों का यह भी कहना है कि वाजपेयी ने कहा है कि राय के कुलपति रहते हिंदी विश्वविद्यालय उम्मीदों पर खरा उतरने में नाकाम रहा है। उन्होंने विश्वविद्यालय के स्तर में गिरावट के लिए कमजोर फैकल्टी और शोध कार्य को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने यह भी कहा है कि यह विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय होना तो दूर, राष्ट्रीय भी नहीं हो सका और क्षेत्रीय विश्वविद्यालय होकर रह गया। सर्च कमेटी के बाकी दो सदस्यों से संपर्क करने का प्रयास किए जाने के बावजूद उनसे संपर्क नहीं हो पाया।
सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रपति, उनकी सचिव और मंत्रालय को विभूति नारायण राय के खिलाफ आरोपों से जुड़े और कई पत्र अन्य लोगों की ओर से भी भेजे गए हैं। देखना है कि इन पत्रों और अशोक वाजपेयी की आपत्ति के मद्देनजर अब विश्वविद्यालय के विजिटर के नाते राष्ट्रपति क्या फैसला करते हैं। हालांकि कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति के निर्णय में मानव संसाधन विकास मंत्रालय की राय अहम होगी और इसी के मद्देनजर आशंका यह भी जताई जा रही है कि कहीं मंत्रालय के स्तर पर ही असहमति का वह नोट रफा-दफा न कर दिया जाए।
दूसरी तरफ राष्ट्रपति के कामकाज के तरीके और स्वतंत्र निर्णयों को देखते हुए जानकारों का कहना है कि वे सर्च कमेटी की वरीयता सूची में से विभूति नारायण को चौथे नंबर से पहले नंबर पर ले आने का फैसला नहीं करेंगे। सतर्कता विभाग में लंबित मामले को देखते हुए मंत्रालय में भी राय का समर्थन मजबूत होने की आशंका जानकार कम मानते हैं।
राकेश तिवारी की रिपोर्ट. साभार: जनसत्ता
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