एक तरफ थीं आतंक से लथपथ लाशें। दहशत और सहमा माहौल। दूसरी तरफ, आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब देती भाईचारगी विस्फोट में जख्मी लोगों की जान बचाने में लगी थी। क्या हिन्दू क्या मुस्लिम उस्मानिया हास्पिटल, ओवैसी व गांधी अस्पताल में खून देने वालों की लग गई थीं लंबी कतार। हैदराबाद से प्रो. मोहम्मद फरियाद ने वहां के ताजा हालात का हवाला देते हुए दूरभाष पर यह जानकारी दी।
थोड़े असहज, भावुक किन्तु मजबूत स्वर में वे बता रहे थे कि घटना स्थल पर मानवता के आगे आतंकियों की क्रूरता हार गई थी। लोग आगे बढ़ कर किसी भी हाल में लोगों की जान बचाने में लगे थे। कोई किसी को कांधे पर तो कोई किसी को वाहन से लिए-लादे जल्दी से जल्दी पहुंच जाना चाह रहा था अस्पताल।
उन्होंने बताया कि घटना के बाद पूरा शहर सहमा जरूर किन्तु थोड़ी ही देर बाद हालात को समझते हुए तनकर खड़ा हो गया। पुलिस और सुरक्षाकर्मियों ने भी मुस्तैदी दिखाई और चारमीनार, पत्थरगट्टी, टोलाचौकी, मेंहदी पटनम आसितनगर, हुमायूं नगर और अफजल गंज, एबिद मार्केट की दुकानें धड़ाधड़ बंद करा दिया। हूटर व बूटों की आवाज सन्नाटे को चीरती हुई पूरी रात गुजरती रही किन्तु इनसे बच-बचाकर गलियां, चौराहे और कालोनियों में लोग दहशतगर्दी को कोसते हुए घायलों के जल्दी ठीक हो जाने की कामना करते रहे।
नुरूल हसन खां की रिपोर्ट.