मुंबई। भारत में दसवीं सदी तक 16 हिंदू राजवंशों के पास 60 टकसालें थीं। देवगिरि का यादव राजवंश इनमें सबसे समृद्ध था, जहां अलाउद्दीन खिलजी को 62 तरह के सिक्कों का हैरतअंगेज खजाना हाथ लगा था। उसने ठक्कर पेरू नाम के एक टकसाल विशेषज्ञ को इन सिक्कों का ब्यौरा लिखने के लिए लगाया था, जिसने यहां के खजाने पर एक किताब लिखी थी। अलाउद्दीन ने इसी पूंजी की दम पर दिल्ली में एक ताकतवर हुकूमत कायम की थी। इसी दौलत के बूते देवगिरि का नाम बदलकर दौलताबाद रखा गया।
अकबर के समय तक तत्कालीन भारत के ज्यादातर छोटे-बड़े स्वतंत्र हिंदू राज्य मुगल साम्राज्य का हिस्सा हो चुके थे। इसलिए देश भर में अकबर की 107 टकसालें थीं। इनमें सोने, चांदी और तांबे के सिक्के ढाले जाते थे। अतीत की ऐसी रोचक जानकारियां मिंट, मार्केट एंड मनी पर केंद्रित एक शोध पत्रिका में सामने आई हैं। मुंबई कॉइन सोसायटी की पहल पर इसका विमोचन इनकम सेटलमेंट कमीशन के सदस्य सुरेंद्र मिश्रा किया गया। इस मौके पर सोसायटी के अध्यक्ष कायजाद टोडीवाला, सचिव दिनेश हेगड़े और एकेडमी ऑफ इंडियन न्यूमिस्मेटिक्स एंड सिगलाग्राफी के निदेशक डॉ. एस.के. भट्ट भी मौजूद थे। शोध पत्रिका के संपादक डॉ. भट्ट ने बताया कि इस रिसर्च में 10 वीं से 16 वीं सदी के भारत की अर्थव्यवस्था पर 26 लेख हैं। डेढ़ सौ पेज की यह रिसर्च भारत के सात सौ सालों के इतिहास में प्रचलित मुद्राओं, सिक्कों की ढलाई और शासकों के तौर-तरीकों का एक दिलचस्प दस्तावेज है। उस दौर के सिक्कों और शिलालेखों के जरिए यह जानना रोचक है कि महमूद गजनवी ने अपने सिक्कों में देवी लक्ष्मी की तस्वीर को जारी रखा था। वह भारत में ईश्वर के अवतारों की अवधारणा से इतना प्रभावित था कि उसने खुद को अपने पैगंबर मोहम्मद का अवतार तक कहा।