बजट गाथा : जानिए किसने पेश किया पहला बजट और किसने सबसे अधिक बार

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वित्‍त वर्ष 2013-14 के लिए आम बजट की उलटी गिनती शुरू हो गई। बजट पूर्व हुए आर्थिक समीक्षा में वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान आर्थिक वृद्धि दर 6.1 से 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है। इसी तरह से और भी कई बातें आर्थिक सर्वेक्षण मे सामने आयी है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 में भारत के केन्द्रीय बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण के रूप में निर्दिष्ट किया गया है। आज मैं देश की बजट को समझने के लिए उसका इतिहास, अवधारणा, बजट की आवश्यकता और इसकी व्यवस्था पर कुछ बातें प्रस्तुत करने जा रहा हूं, जो तीन से चार भाग मे आपके सामने लाने की कोशिश करूंगा।

हमारे देश मे प्रतिवर्ष संसद मे पेश किए जाने वाले बजट का इतिहास बेहद दिलचस्प और शानदार है। हम लोग हर साल पेश किए जाने वाले बजट को लेकर तमाम किस्म के अन्दाजे लगाते हैं, लेकिन देश के स्वतंत्र होने से अब तक इस दिलचस्प बजट के इतिहास पर शायद ही कभी गौर किया गया हो। दरअसल 1947 से अब तक का बजट इतिहास राजनीतिक बवंडर की कहानी तो कहता ही है, साथ ही कई ऐसे तथ्य भी उजागर करता है जो राजनीति के अध्ययन के लिए बेहद जरूरी और गम्भीर भी है।

इन तथ्यों में आर.के.षण्मुखम शेट्टी का अविभाजित भारत और स्वतंत्र भारत दोनों के लिए बजट पेश करना, गांधी-नेहरू परिवार द्वारा तीन बार बजट पेश करना, राजीव गांधी द्वारा शून्य आधारित बजट पेश करना और वित्त मंत्री के रूप मे डा. मनमोहन सिंह द्वारा एक अंचभित कर देने वाला बजट, जिसमे अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के लिए देश का दरवाजा खोला गया। इनमें उल्लेखनीय हैं 1987-88 का बजट जो राजीव गांधी ने पेश किया था, और वहीं से देश मे शून्य आधारित बजट की परम्परा शुरू हुई।  

यहां इस बात का जिक्र होना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि स्वतंत्र भारत का पहला बजट 26 नवम्बर, 1947 को आर.के.षण्मुखम शेट्टी द्वारा पेश किया गया था, लेकिन वास्तव मे यह नियमित बजट नहीं था। षण्मुखम शेट्टी ने तब कहा था कि अप्रैल, 1946 से मार्च, 1947 के बजट को मार्च, 1946 के अंतरिम सरकार ने स्वीकार किया और वह अविभाज्य भारत का अंतरिम बजट था। फिर वर्ष 1948-49 में षण्‍मुखम शेट्टी ने पूर्ण बजट पेश किया था, और तभी से अंतरिम बजट भी पेश किए जाने लगे।

भारत के बजट के ऊपर कोई भी बात गांधी-नेहरू परिवार के जिक्र बिना आगे बढ़ाना सम्भव नहीं हो सकता है। गांधी-नेहरू परिवार ने कई बार असाधारण हालातों मे बजट पेश किए है, जिन्हें आगे के कुछ बातों से समझा जा सकता है। घटना वर्ष 1958 की है, जब वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णामचारी ने इस्तीफा दिया बजट प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी अचानक से प्रधानमंत्री पंडित नेहरू पर आई। नेहरू जी ने 28 फरवरी, 1958 को बजट पेश करते हुए कहा था कि “प्रथा के मुताबिक अगले वर्ष का बजट आज पेश किया जाना है। अमूमन वित्त मंत्री को यह बजट पेश करना होता है, लेकिन अप्रत्याशित कारणों से आज वे हमारे साथ नही हैं, और यह महती जिम्मेदारी मेरे ऊपर आन पड़ी है”।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गान्धी को भी कुछ इसी तरह की राजनीतिक बाध्यता के कारण बजट पेश करना पड़ा था। मोरारजी देसाई ने जब वित्त मंत्री के पद से त्याग पत्र दिया तो प्रधानमंत्री इंदिरा गान्धी ने वित्त मंत्रालय अपने पास रखा और उन्हें बजट पेश करने का मौका मिला। और इसके बाद अस्सी के दशक में राजीव गांधी ने वर्ष 1987-88 का आम बजट पेश किया और अपने नाना एवं मां के बाद तीसरे प्रधानमंत्री बने जिन्होंने बजट पेश किया हो। लेख में मैंने पहले भी उस शून्य आधारित बजट की चर्चा की है।

अब बात करते है भारत के गणराज्य बनने के बाद के बजट का, तो 1950-52 का अंतरिम बजट पेश किया था जान मथाई ने। सर्वप्रथम उन्होंने ही योजना आयोग के गठन की घोषणा की थी, लेकिन यहां यह भी बताना जरूरी हो जाता है कि बाद में उन्होंने यह महसूस करते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था कि योजना आयोग सुपर कैबिनेट बनता जा रहा है। वर्ष 1951-52 का अंतरिम बजट पेश करने का अवसर भारतीय रिजर्व बैंक के पहले गवर्नर सी.डी. देशमुख को मिला, लेकिन उन्होंने भी राज्य पुनर्गठन आयोग से मतभेदों के चलते पने पद से इस्तीफा दे दिया।
 
इसके बाद वित्त मंत्री बने टी.टी.कृष्णामचारी ने अगले बजट से पहले 30 नवम्बर, 1956 को संसद मे पांच हजार शब्दों का भाषण देते हुए नए कर लगाने का प्रस्ताव किया। बाद में कुछ विवादों के कारण फरवरी 1958 में उन्होंने भी त्यागपत्र दे दिया। आर.के.षण्मुखम शेट्टी ने भी इसके पूर्व प्रधानमंत्री पंडित नेहरू मतभेद के चलते इस्तीफा दे चुके थे। उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्री के रूप में मोरारजी देसाई ने सबसे अधिक दस बार बजट पेश किए। उन्होंने अपने वित्त मंत्री रहने के पहले कार्यकाल से पांच नियमित वार्षिक बजट और एक अन्तरिम बजट पेश किया था।

अपने पद के दूसरे दौर में मोरारजी देसाई ने तीन नियमित बजट और एक अंतरिम बजट पेश किया था। बजट के सम्बन्ध में वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चर्चा भी जरूरी है। उन्होंने वित्त मंत्री के रूप में न केवल पांच बार नियमित बजट पेश किए, बल्कि उदारीकरण के लिए अर्थव्यवस्था के द्वार भी खोले। वर्तमान वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम का बजट गैर कांग्रेसी वित्त मंत्री के रूप मे प्रस्तुत किया था। तब वह तमिल मानिल पार्टी में थे। वर्तमान वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम का 1997-98 का बजट भी विशेष रहा था, क्यूंकि तब संवैधानिक संकट के चलते गुजराल सरकार टिक नहीं पाई और संसद का विशेष अधिवेशन बुलाकर वर्तमान पी. चिदम्बरम का बजट बिना किसी चर्चे के पारित किया गया था।

वर्ष 2000 तक, केंद्रीय बजट को फरवरी महीने के अंतिम कार्य-दिवस को शाम 5 बजे घोषित किया जाता था। यह अभ्यास औपनिवेशिक काल से विरासत में मिला था जब ब्रिटिश संसद दोपहर में बजट पारित करती थी, जिसके बाद भारत ने इसे शाम को करना आरम्भ किया। यशवंत सिन्हा देश के ऐसे पहले केन्द्रीय वित्त मंत्री बने, जिन्होने दोपहर मे बजट प्रस्तुत करने की नई परम्परा डाली। इससे पहले तक शाम पांच बजे संसद मे बजट पेश किया जाता था। अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार (बीजेपी द्वारा नेतृत्व) में वर्ष 2001 का बजट शाम पांच बजे के बजाय दोपहर 11 बजे घोषित किया गया था। वर्तमान मे देश के राष्ट्रपति डा. प्रणव मुखर्जी, एन.डी. तिवारी, एस.बी. चव्हाण, मधु दंडवते, जसवंत सिंह भी ऐसे वित्त मंत्री रहे जिन्हें बजट पेश करने का मौका मिला।       

जारी….

अनिकेत प्रियदर्शी की रिपोर्ट.

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