इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट के अनुसार वर्ष 2012 में अपना काम करते हुए कम से कम 133 पत्रकार मारे गए। इस लिहाज से यह बहुत हिंसक वर्ष भी साबित हुआ। यह इससे पहले के वर्ष की तुलना में 53 और ज्यादा मौतें थीं।
कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने यह जानकारी भी दी कि आलोच्य अवधि में 232 से अधिक रिपोर्टर्स अथवा मीडिया कर्मी गिरफ्तार भी किए गए। इसके साथ यह भी जान लें कि इन आंकड़ों में उन ब्लागर्स या सिटीजन जर्नर्लिस्ट्स की संख्या शामिल नहीं है जिन्होंने अपने बंद समाजों पर रोशनी डालकर खुद की जान को जोखिम में डाल दिया।
विकासशील देशों सें हमें मिनट दर मिनट पर बहुत सी सूचना मिलती है इसलिए हम मीडिया के महत्व को नजरअंदाज करते हैं और इस बात को नहीं सोचते हैं कि वे कौन से लोग हैं जो टैंक या संगीनों के सामने खड़े होने से नहीं घबराते या फिर वे अपने बोलने के अधिकार का इस्तेमाल कर अपनी जान को जोखिम में डालने से नहीं डरते हैं। लेकिन अधिनायकवादी शासकों के सामने सारी दुनिया में एक मुक्त मीडिया इतना बड़ा खतरा पैदा कर देता है कि वे उसकी अंतत: उपेक्षा नहीं कर पाते हैं।