Siddharth Kalhans : सशक्त रचनाकार, कवि, कई बेहतरीन अनुवाद करने वाले रेडियो पत्रकार उज्ज्वल भट्टाचार्य इन दिनों लखनऊ में हैं। बीते 30 सालों से जर्मनी में रह रहे उज्ज्वल दा रेडियो डायचे वैले में कई दशक तक काम कर चुके हैं। लखनऊ श्रमजीवी पत्रकार यूनियन उज्ज्वल जी के साथ एक शाम उनसे बातचीत और सुनने का कार्यक्रम रखा है। तारीख 14 अक्टूबर समय शाम 4 बजे प्रथम तल हाल में।
आपकी शिरकत बायसे मसर्रत होगी। इंतजार रहेगा। हां इस आयोजन के पीछे अपनी स्वार्थ भी है। वो यह कि उज्ज्वल दादा की आवाज में अमेरिका में गोरो के सरदार को रेड इंडियन सियट्ल सरदार के भेजे गए संदेश का मार्मिक अनुवाद सुनना जो हमें भारत में आदिवासियों को उनकी जमीन से खदेड़ने के खिलाफ चल रहे संर्घषों की याद दिलाता है। कुछ ताजातरीन हाईकू की भी दरकार रहेगी।
पेश है उज्जवल दादा का एक कलाम…
जो कुछ धरती पर गुज़रता है, जल्द ही उसके बेटों पर भी आता है. तुम्हें अपने बच्चों को सिखाना पड़ेगा, कि उनके क़दमों के नीचे की धरती हमारे पुरखों की राख है. ताकि वे इस धरती से प्यार करें, उनको बताना कि इस धरती के नीचे हमारे पुरखों की आत्मा छिपी है. अपने बच्चों को सिखाना, जो हम अपने बच्चों को सिखाते हैं: धरती मां है. इंसान जब धरती पर थूकता है, वह खुद को गंदा करता है. हम इतना जानते हैं कि धरती इंसान की नहीं, इंसान धरती का है – इतना हम जानते हैं. सब एक-दूसरे के साथ जुड़े हैं. जो कुछ धरती पर गुज़रता है, उसके बेटों पर भी आता है. ज़िंदगी का ताना-बाना इंसान ने नहीं बनाया है, वह तो महज़ उसका एक धागा है. जब तुम इस ताने-बाने को छेड़ते हो, तुम अपने-आप पर चोट करते हो. नहीं, दिन और रात साथ-साथ नहीं रह सकते. हमारे मुर्दे धरती की मीठी नदियों में जीते रहते हैं, वसंत की हल्की आहट के साथ वे लौट-लौटकर आते हैं, झीलों को सहलाती हवा में उनकी आत्मा बसी हुई है.लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस के फेसबुक वॉल से.