प्रेस की आजादी के मामले में 179 देशों की सूची में और नीचे गिरकर भारत 140वें स्थान पर पहुंच गया है. वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत वर्ष 2002 के मुकाबले नौ स्थान नीचे गिरकर 140वें नंबर पर पहुंच गया और चिंतकों का कहना है कि यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के हिसाब से शोचनीय हालत है. रिपोर्टर्स विदाउट बार्डर्स ने वर्ष 2013 के लिए वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में कहा है कि एशिया में, पत्रकारों के खिलाफ बढ़ती हिंसा के मामलों में कार्रवाई नहीं करने की बढ़ती प्रवृति तथा इंटरनेट सेंसरशिप के चलते भारत इस पायदान पर 2002 के बाद से सर्वाधिक नीचे पहुंच गया है.
इसमें कहा गया है कि चीन (173वां) में कोई सुधार नहीं दिखता. इसकी जेलों में अभी भी बहुत से पत्रकार बंद हैं तथा इंटरनेट सेंसरशिप के लगातार बने रहने से सूचना तक पहुंच में एक बडी बाधा बनी हुई है. पिछले वर्ष जारी इस सूची में प्रेस की आजादी के लिहाज से तीन यूरोपीय देश फिनलैंड, नीदरलैंड और नार्वे शीर्ष पर थे जबकि सूची में सबसे नीचे तुर्कमेनिस्तान, उत्तर कोरिया तथा इरिट्रिया हैं. ये तीनों देश पिछले तीन साल से लगातार इसी स्थान पर बने हुए हैं.
रिपोर्टर्स विदाउट बार्डर्स के महासचिव क्रिस्टोफ देलोयरे ने कहा कि तानाशाही शासन में समाचार प्रदाता तथा उनके परिवारों को कड़े परिणाम भुगतने पड़ते हैं लेकिन लोकतंत्र में पत्रकारों को मीडिया के आर्थिक संकट और हितों के टकराव के बीच सामंजस्य बिठाना पड़ता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व के सबसे बड़े लेकतंत्र भारत में प्रशासन वेब सेंसरशिप पर जोर दे रहा है तथा अधिक कड़े प्रतिबंध लगा रहा है. इसके साथ ही पत्रकारों के खिलाफ हिंसा के मामलों में कोई सजा नहीं दी जाती तथा कश्मीर और छत्तीसगढ़ जैसे क्षेत्र अलग थलग पड़ रहे हैं.
इसमें आगे कहा गया है कि बांग्लादेश में भी बहुत अधिक बेहतर हालात नहीं हैं. वहां पत्रकारों को अक्सर पुलिस हिंसा का शिकार होना पड़ता है. मीडिया के दुश्मनों को छूट मिली होती है और कभी कभार ही ऐसा होता है कि ऐसे लोगों को सजा मिलती हो. मीडियाकर्मियों के संरक्षण की कोई सरकारी नीति नहीं होने के कारण पाकिस्तान (159) और नेपाल (118) में पत्रकारों के स्वतंत्र रूप से काम करने की स्थिति लगातार बदतर हो रही है. एक जीवंत मीडिया होने के बावजूद पाकिस्तान पत्रकारों के लिहाज से दुनिया का सर्वाधिक खतरनाक देश बना हुआ है. (समय)