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भ्रष्‍टाचार के आरोप में भास्‍कर के रमेश अग्रवाल सहित 21 के खिलाफ कोर्ट में अर्जी

: 26 जून को होगी अगली सुनवाई : इंदौर। केंद्र सरकार द्वारा संचालित नागरिक सुविधा केंद्र (कॉमन सर्विसेस सेंटर) योजना में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इंदौर की विशेष अदालत में एक अर्जी पेश कर धोखाधड़ी व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा में आपराधिक केस दर्ज करने की मांग की गई है। अर्जी में दैनिक भास्कर के रमेशचंद्र अग्रवाल को राईटर्स एंड पब्लिशर्स लिमिटेड भोपाल के डायरेक्टर के नाते आरोपी बनाया गया है, मामले में एनजीओ संस्था नेटवर्क फॉर इनफार्मेशन एंड कम्प्यूटर टेक्नालॉजी (एनआईसीटी) के कर्ताधर्ताओं सहित कुल 21 लोगों को आरोपी बनाया गया है।

: 26 जून को होगी अगली सुनवाई : इंदौर। केंद्र सरकार द्वारा संचालित नागरिक सुविधा केंद्र (कॉमन सर्विसेस सेंटर) योजना में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इंदौर की विशेष अदालत में एक अर्जी पेश कर धोखाधड़ी व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा में आपराधिक केस दर्ज करने की मांग की गई है। अर्जी में दैनिक भास्कर के रमेशचंद्र अग्रवाल को राईटर्स एंड पब्लिशर्स लिमिटेड भोपाल के डायरेक्टर के नाते आरोपी बनाया गया है, मामले में एनजीओ संस्था नेटवर्क फॉर इनफार्मेशन एंड कम्प्यूटर टेक्नालॉजी (एनआईसीटी) के कर्ताधर्ताओं सहित कुल 21 लोगों को आरोपी बनाया गया है।

परिवादी पत्रकार प्रदीप मिश्रा व जितेंद्र जायसवाल ने शुक्रवार को इंदौर की विशेष अदालत (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) में न्यायाधीश राजीवकुमार श्रीवास्तव के समक्ष सीआरपीसी की धारा 156 (3) में एक अर्जी एडवोकेट अभिषेक रावल के जरिये पेश की है। मिश्रा ने बताया कि अर्जी में योजना में अनियमितताओं का हवाला देते हुए आरोप लगाया गया है कि इंदौर -उज्जैन संभाग के 2158 लोगों के साथ करोड़ों की धोखाधड़ी की गई है। केंद्र ने प्रदेश में 9232 सेंटर्स खोलने की अनुमति दी थी। योजना के क्रियान्वयन के लिए आईटी विभाग की सहायक एजेंसी मप्र स्टेट इलेक्ट्रानिक डेव्लपमेंट कार्पोरेशन (एमपीसीईडीसी) को स्टेट डेसीगनेटेड एजेंसी (एसडीए) नियुक्त किया गया था। एसडीए का मुख्य कार्य प्रदेश के इन सेंटर्स को मूर्तरूप देना था और पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के माध्यम से इन केंद्रों की स्थापना हेतु निजी कपंनियों, ट्रस्टों व एनजीओ से निविदाएं आमंत्रित करना था। इसके तहत एनआईटीसी जो कि एक एनजीओ संस्था के रूप में पंजीकृत है को इंदौर-उज्जैन के 2158 सेंटर्स खोलने की जिम्मेदारी दी गई थी। एनआईटीसी की जमानत राईटर्स एंड पब्लिशर्स लिमिटेड, भोपाल ने दी थी।

केंद्र सरकार के नियमों के मुताबिक प्रत्येक सेंटर के लिए न्यूनतम 1106 रूपए प्रतिमाह की दर से सहायता राशि देने का प्रावधान था लेकिन एनआईसीटी ने सरकार से सहायता लेने की बजाय प्रोजेक्ट हासिल करने के लिए उज्जैन हेतु 3 व इंदौर हेतु 5 रुपए प्रतिमाह की बोली लगाकर यह ठेका हासिल कर लिया। यही नहीं सरकार ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि किसी भी सेंटर्स की स्थापना हेतु कोई राशि नहीं ली जाएंगी बल्कि सेंटर्स स्थापित करने के लिए सहायता दी जाएंगी, इसके विपरीत एनआईसीटी के संचालकों ने ग्रामीण बेरोजगारों से 35 हजार से 1.5 लाख तक की राशि मान्यता देने के नाम पर जमा कराई, जो करोड़ों में है और भी कई अनियमितताएं बरती। एमपीसीईडीसी ने एनआईसीटी के साथ अनुबंध में यह शर्त रखी थी कि किसी भी तरह की अनियमितताएं पई गई तो अनुबंध निरस्त कर धरोहर राशि को राजसात कर ली जाएंगी और यदि किसी प्रकार का भ्रष्टाचार सामने आया तो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत कार्रवाई की जाएंगी। 18 फरवरी 2008 से 31 मार्च 2012 तक एनआईसीटी की रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि 2158 सेंटर में से मात्र 918 सेंटर ही चालू थे, जबकि अनुबंध के अनुसार सेंटर बंद होने पर भारी पेनल्टी का प्रावधान था किंतु एनआईसीटी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।

अर्जी में राईटस एंड पब्लिशर्स लिमिटेड भोपाल एवं उसके डायरेक्टर रमेशचंद्र अग्रवाल, सहायक मैनेजर विवेक जैन, नेटवर्क फॉर इन्फार्मेशन एंड कम्प्यूटर टेक्नालॉजी (एनआईसीटी) एवं उसके प्रेसीडेंट डा. भरत अग्रवाल, मप्र स्टेट इलेक्ट्रॉनिक डेव्लपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड व उसके मैनेजिंग डायरेक्टर अनुराग श्रीवास्तव, सिनीयर जनरल मैनेजर पीएन धायनी, केआर नारायण, जनरल मैनेजर लक्ष्मीकांत तिवारी, मैनेजिंग डायरेक्टर हरी रंजन राव, आईटी विभाग के सचिव अनुराग जैन, एनआईसीटी के सीईओ मुकेश हजेला, डायरेक्टर जितेंद्र चौधरी, महेंद्र गुप्ता, रवी सावला, हिमांशु झंवर, पीजी मिश्रा, माया चौधरी, सोनिया हजेला, अरविंद चौधरी सहित कुल 21 लोगों को आरोपी बनाया है और उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 420,107,104, 415, 120 (बी) व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 के तहत आपराधिक मुकदमा दर्ज करने की मांग करते हुए 34 गवाहों की सूची पेश की गई है। इस अर्जी पर अब 26 जून को सुनवाई होगी।

क्या है कॉमन सर्विस सेंटर

वर्ष 2006 में केंद्रीय सूचना एवं प्रोद्योगिकी विभाग ने गांवों में कॉमन सर्विस सेंटर की स्थापना की गई थी ताकि गांवों में रहनेवाले लाखों लोग नई तकनीक का फायदा ले सकें और उन्हें सरकारी विभागों के चक्कर न लगाना पड़े। इन केंद्र से ग्रामीण नागरिक खसरे की नकल, जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र या आवेदन, रोजगार गारंटी जैसे कार्य व केंद्र व राज्य की विभिन्न योजनाओं आदि की जानकारी प्राप्त कर सकते है। इसमें डिजीटल फोटो, फोटोकापी, डीटीपी, ईमेल, रेल टिकट जैसी व्यावसायिक सेवाएं भी शामिल की गई थी। साभार : पीपुल्‍स समाचार

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