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15 जुलाई से बंद 160 वर्ष पुरानी तार उर्फ टेलीग्राम सेवा

डाक तार विभाग में क्रमशः कम हो रहे कर्मचारियों की परिस्थितियों में छंटनी का नया बहाना मिल गया है। खुशी हो या गम, शादी हो या मौत, नियुक्ति हो या कोई बेहद जरुरी सूचना, तार लेकर डाकिये के पहुंचते ही दिलों की धड़कने बढ़ जाती थीं। कम से कम मोबाइल क्रांति से पहले यह हाल था। अब इंटरनेट क्रांति भी हो गयी। किसी को तार का इंतजार नहीं रहता और न कोई तार भेजता है।

डाक तार विभाग में क्रमशः कम हो रहे कर्मचारियों की परिस्थितियों में छंटनी का नया बहाना मिल गया है। खुशी हो या गम, शादी हो या मौत, नियुक्ति हो या कोई बेहद जरुरी सूचना, तार लेकर डाकिये के पहुंचते ही दिलों की धड़कने बढ़ जाती थीं। कम से कम मोबाइल क्रांति से पहले यह हाल था। अब इंटरनेट क्रांति भी हो गयी। किसी को तार का इंतजार नहीं रहता और न कोई तार भेजता है।

इसी के मद्देनजर भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) ने अपनी 160 वर्ष पुरानी तार (टेलीग्राम) सेवा को 15 जुलाई से बंद करने का निर्णय लिया है। दो महीने पहले बीएसएनएल ने विदेश में दी जा रही तार सेवा को भी बंद कर दिया था।बीएसएनएल के वरिष्ठ महाप्रबंधक शमीन अख्तर ने निर्देश जारी कर दिया है कि 15 जुलाई, 2013 से तार सेवा को बंद कर दिया जाएगा।  बीएसएनएल ने कहा कि तार सेवा के कर्मियों को कंपनी द्वारा दी जा रही अन्य सेवाओं में नियुक्त कर दिया जाएगा।कम से कम इस महकमे में अब नई नियुक्तियां होंगी नहीं।

अब तार (टेलीग्राम) दिल के तारों को कभी नहीं झनझनायेगा। टेलीग्राम आने पर लोग घबरा तक जाते थे कि कहां क्‍या हो गया, कुछ गलत तो नहीं हो गया….जब तक टेलीग्राम पढ़ नहीं लिया जाता….लोगों की घबराहट कम नहीं होती थी। अब कभी आपको तार नहीं आएगा और न भेज सकेंगे। टेलीग्राम सेवा बंद करने का फैसला हो गया है। आज स्मार्टफोन, ईमेल और एसएमएस आदि आधुनिक संचार के माध्यमों के प्रचलन ने सादगीपूर्ण टेलीग्राम को कहीं पीछे छोड़ दिया है। लेकिन कभी इसी संचार सेवा के माध्यम से लोगों को कई खुशी व दुख की खबरें प्राप्त होती थीं। लेकिन नई तकनीक व नए संचार के माध्यमों के चलते तार सेवा को बाहर का रास्ता देखना पड़ रहा है।दूर देश से अपने परिचितों को जल्दी से जल्दी संदेश भेजने का माध्यम तब टेलीग्राम या तार ही हुआ करता था। इसके लिए देश के सभी इलाकों में सरकार ने तार-घर खोले हुए थे। 90 के दशक से पहले तक यह टेलीग्राम सेवा, त्वरित सूचना संप्रेषण के लिये अहम मानी जाती रही है। उसके बाद टेलीफोन सेवाओं में आयी प्रगति के चलते धीरे-धीरे कर 'तार' की उपयोगिता कमतर होती गयी।अब एसएमएस, ईमेल, मोबाइल, फोन सेवाओं के हुए तगड़े विस्‍तार ने टेलीग्राम को हमसे दूर कर दिया या लोग भूल से गए हैं। मुंबई, दिल्‍ली, कोलकाता, चेन्‍नई जैसे बड़े एवं मध्‍यम शहरों में जहां पहले तार घरों में लंबी लंबी लाइनें दिखाई देती थी, वहां अब दिन भर में मुशिकल से कोई आ पाता है। अमरीका के सैम्‍युल मोर्स ने 1844 में मोर्स कोड की खोज की थी तो संचार जगत में बड़ी क्रांति आ गई थी लेकिन ईमेल और एसएमएस ने तो समूची दुनिया ही बदल दी।

बीते तीन-चार दशकों से प्रधान डाकघर से जुड़े डाकघरों में नये डाकियों की नियुक्ति नहीं की गयी है।मुख्य डाकघरों, जिनमें कोलकाता जीपीओ भी शामिल है, ठेके पर काम लेने का चलन हो गया है।  नेशनल पोस्टल पॉलिसी- 2012 की सिफारिशों केतहत डाक विभाग के निजीकरण की योजना है। डाक विभाग से टेलीपोन सेवा और तार विभाग को पहले ही अलग कर दिया गाया था। टेलीफोन सेवा का निजीकरण पूरा हो गया है। वीएसएनएल को बेच दिया गा। देश में स्पेक्ट्रम देश में स्पेक्ट्रम घोटालों की चर्चा खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। तार सेवा खत्म होने के बाद अब बस, डाक सेवा के निजीकरण का काम अधूरा रह गया है, जो बहुत जल्द पूरा होने वाला है।

बहुत जल्दी डाक विभाग से चिट्ठी पत्री का किस्सा भी खत्म होने वाला है क्योंकि पोस्ट कार्ड का भी किस्सा खत्म हो गया। कुरियर सर्विस ने भारतीय डाक की हवा निकाल दी।भारत संचार निगम लिमिटेड के (टेलीग्राफ सेवाओं के) वरिष्ठ महाप्रबंधक शमीम अख्तर द्वारा नयी दिल्ली स्थित कारपोरेट कार्यालय से जारी किए सर्कुलर के मुताबिक टेलीग्राफ सेवाएं 15 जुलाई, 2013 से बंद कर दी जाएंगी।यह सर्कुलर विभिन्न दूरसंचार जिलों और सर्किल कार्यालयों को भेजा गया और इसमें कहा गया है कि टेलीग्राम सेवाएं 15 जुलाई से बंद हो जाएंगी।  इसके फलस्वरूप बीएसएनएल प्रबंधन के अंतर्गत आने वाले सभी टेलीग्राफ कार्यालय 15 जुलाई से टेलीग्राम की बुकिंग बंद कर देंगे।सर्कुलर में कहा गया है कि दूरसंचार कार्यालय बुकिंग की तिथि से केवल छह महीने तक लॉग बुक, सेवा संदेश, आपूर्ति स्लिप को रखना होगा।

डाक विभाग द्वारा यू पी सी की सेवा समाप्त कर दी गयी है। यूपीसी एवरीभिएशन है। अंडर (यू) पोस्टिंग(पी) सर्टिफिकेट(सी)। यू पी सी में डाक विभाग का कुछ भी अतिरिक्त खर्च नहीं होता है बल्कि डाक विभाग को इससे लाभ होता है। उपभोक्ता साधारण डाक को उचित टिकट लगाने के बाद उसे लेटर बॉक्स में डालने के बजाय पोस्ट ऑफिस में दे देता है। उपभोक्ता इस लिफाफे के साथ एक सादे कागज पर तीन रूपये का टिकट लगा देता है और उस टिकट युक्त कागज पर पोस्ट ऑफिस उक्त पत्र की प्राप्ति के सबूत के तौर पर मात्र एक मुहर लगा देता है। उपभोक्ताओं को यह छूट होती है कि तीन रूपये के टिकट पर एक साथ तीन लिफाफे यू पी सी के तहत दे सकता है। नाम से स्पष्ट है कि पोस्ट किए गए लिफाफे का महज एक प्रमाण पत्र उपभोक्ता को मिल जाता है। जिस देश में 76 प्रतिशत से ज्यादा आबादी 20 रूपये से कम पर गुजारा करती है वैसे समाज में इस तरह की सेवा की उपयोगिता का अंदाजा लगाया जा सकता है।लेकिन डाक विभाग ने यह सेवा समाप्त करके डाक विभाग में निजीकरण की प्रक्रिया को तेज करने की कोशिश की है। डाक विभाग ने पहले से ही रजिस्टर्ड डाक काफी महंगा कर दिया है।रजिस्टर्ड डाक महंगा किए जाने के पीछे देश में कूरियर कंपनियों को बढ़ावा देने योजना रही है।

देश में पहली बार टेलीग्राम (तार) सेवा सन 1853 में आगरा से कोलकाता के बीच शुरू हुई थी। अंग्रेज सरकार अपने सारे दस्तावेज इसी के जरिए भेजती और मंगाती थी। आजादी के बाद भी लोगों ने इसका खूब लाभ उठाया। यहां तक कि समुद्र में सबमरीन केबिल डालकर विदेशों से भी टेलीग्राम मंगाए जाने लगे।तार सेवा शुरू होने पर आगरा एशिया का सबसे बड़ा ट्रांजिट दफ्तर था। यहां से रावलपिंडी तक लाइन थी और यह 24 घंटे संचालित होता था। शहजादी मंडी के कार्यालय में सैकड़ों कर्मचारी थे, लेकिन अब केवल 22 हैं। जीएम ने बताया कि टेलीग्राम सेवा में अब मासिक 4-5 हजार रुपये की कमाई हो रही है, जबकि खर्च लाखों में हैं। तार सेवा का समय भी परिवर्तित करके सुबह सात से रात 10 हो गया है।

लेकिन पिछले दो-तीन दशक में इंटरनेट, ब्रॉडबैंड, मोबाइल और 3जी सेवाओं के चलते लोगों का रुझान तार सेवा से काफी घटा है। रिकॉर्ड दस्तावेज या सबूत के लिए चंद लोग ही इसका प्रयोग करते हैं। आंकड़ों के अनुसार आगरा में 1980 में हर रोज टेलीग्रामों की संख्या 15000 से ज्यादा थी, अब केवल 40-50 टेलीग्राम होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय टेलीग्राम साल में एक या दो होते हैं। लगातार घाटे में चलने से शासन ने अब इस संचार सुविधा को बंद करने की तैयारी की है।

दिवंगत अर्जुन सिंह  22 अक्तूबर 1986 से 14 फरवरी 1988 तक ही संचार मंत्री रहे थे। उस दौर में टेलीफोन आम आदमी की पहुंच के बाहर थे। फिर भी छोटे कार्यकाल के बावजूद श्री सिंह ने देश में न केवल संचार क्रांति की मजबूत आधारशिला रखी, बल्कि बहुत से साहसिक फैसले लिए। सैम पित्रोदा का असली नाम भी अर्जुन सिंह के संचार मंत्री काल में ही हुआ। सेंटर फार डिवलपमेंट आफ टेलीमेटिक्स (सी-डाट) के कार्यकलापों को श्री सिंह का खुला समर्थन मिला जिस नाते  स्वदेशी प्रौद्योगिकी को पंख लगे।

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भारत सरकार ने जनवरी 1985 में डाक विभाग और दूरसंचार विभाग को अलग कर उनका पुनर्गठन कर दिया था। श्री सिंह ने दूरसंचार सेवाओं के साथ श्री सिंह का ध्यान हमेशा डाक सेवाओं की गुणवत्ता के विकास पर रहा है। आज संचार क्रांति तथा मोबाइल-इंटरनेट युग में बहुत तेजी से बदलाव देखने को मिल रहे हैं।  खास तौर पर मोबाइल फोनो के आंकड़े बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। लेकिन 1995 से पहले आंकड़े इतने तेजी से नहीं बढ़ते थे और किसी के घर फोन लगना एक बड़ी घटना होती थी। अरसे तक संचार का  सारा दारोमदार केवल डाक सेवाओं और स्थिर फोनों के साथ टेलीग्राम पर टिका हुआ था। तब टेलीफोन स्टेटस सिंबल बना हुआ था और फोन लगना बहुत टेढी खीर था। बहुत से लोग 10-10 साल से टेलीफोन विभाग का चक्कर लगाते-लगाते थक गए थे पर उनकी प्रतीक्षा सूची खत्म नहीं होती थी।

1986-87 में 3.47 लाख टेलीफोन लगने के साथ भारत में कुल टेलीफोनों की संख्या बढ़ कर 39.89 लाख हो गयी। 1986-87 में मीटर के आधार पर हुई एसटीडी और स्थानीय कालों की संख्या 1648 करोड हो गयी,जबकि 1985-86 में यह  1382 करोड़ थी। वर्ष 1987-88 में मीटर की गयी कालों की संख्या 1933.4 करोड़ पार कर गयी। 1986-87 में 819 नए ग्रामीण टेलीफोन एक्सचेंज लगाए गए ,जबकि गांवो में संचार सुविधाओं के विकास के तहत 1558 पीसीओ लगे। अर्जुन सिंह ने तार सेवाओं (टेलीग्राम) के विकास पर भी विशेष ध्यान दिया। तार वितरण सेवा में व्यापक सुधार का फैसला करते हुए अर्जुन सिंह ने यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि  500 प्रमुख शहरों तथा कस्बों में 99 फीसदी तार 12 घंटों में बांट दिए जायें। कार्यरूप में यह फैसला साकार भी हुआ और सर्वेक्षणों में प्रगति का शानदार परिणाम निकला।

राजीव गांधी भारत में विश्वस्तरीय संचार तंत्र चाहते थे। उनकी ही पहल पर 1984-85 में भारत में पहली बार मोबाइल टेलीफोन सेवा की दिशा में गंभीर पहल हुई। कार टेलीफोन के नाम से यह सेवा  31 दिसंबर 1985 को बहुत सीमित आधार पर दिल्ली में शुरू की गयी थी।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​ की रिपोर्ट.

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