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सुख-दुख...

Fraud Nirmal Baba (12) : जो बाबा अपने एकाउंट की रक्षा नहीं कर सका वो दूसरों का भला कैसे करेगा

: तीसरी आंख मतलब लाफ्टर शो : भाई साधु संतों से तो मैं भी डरता हूं, इसलिए मैं पहले ही बोल देता हूं निर्मल बाबा के चरणों में मेरा और मेरे परिवार का कोटि कोटि प्रणाम। वैसे मैं जानता हूं कि साधु संत अगर आपको आशीर्वाद दें तो उसका एक बार फायदा आपको हो सकता है, पर वो चाहें कि आपको शाप देकर नष्ट कर दें तो ईश्वर ने अभी उन्हें ऐसी ताकत नहीं दी है। इसलिए ऐसे लोगों से ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है, लेकिन मेरा उद्देश्य सिर्फ लोगों को आगाह भर करना है, मैं किसी की भावना को आहत नहीं करना चाहता। चलिए आपको एक वाकया सुनाता हूं शायद आपकी समझ में खुद ही आ जाए।

: तीसरी आंख मतलब लाफ्टर शो : भाई साधु संतों से तो मैं भी डरता हूं, इसलिए मैं पहले ही बोल देता हूं निर्मल बाबा के चरणों में मेरा और मेरे परिवार का कोटि कोटि प्रणाम। वैसे मैं जानता हूं कि साधु संत अगर आपको आशीर्वाद दें तो उसका एक बार फायदा आपको हो सकता है, पर वो चाहें कि आपको शाप देकर नष्ट कर दें तो ईश्वर ने अभी उन्हें ऐसी ताकत नहीं दी है। इसलिए ऐसे लोगों से ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है, लेकिन मेरा उद्देश्य सिर्फ लोगों को आगाह भर करना है, मैं किसी की भावना को आहत नहीं करना चाहता। चलिए आपको एक वाकया सुनाता हूं शायद आपकी समझ में खुद ही आ जाए।

पिछले दिनों मुझे लगभग 11 घंटे ट्रेन का सफर करना था, इसके लिए मैं रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म के बुक स्टाल पर खड़ा देख रहा था कि कोई हल्की फुल्की किताब ले लूं, जिससे रास्ता थोड़ा आसान हो जाए। बहुत नजर दौड़ाई तो मेरी निगाह एक किताब पर जा कर टिक गई। किताब का नाम था धन कमाने के 300 तरीके। मैने सोचा इसी किताब को ले लेते हैं इससे कुछ ज्ञान की बातें पता चलेंगी, साथ ही बिजिनेस के तौर तरीके सीखने को मिलेगें और सबसे बड़ी बात कि ट्रेन का सफर आसानी से कट जाएगा। लेकिन दोस्तों सफर आसानी से भले ना कटा हो पर जेब जरूर कट गई। 280 रुपये की इस किताब में माचिस, टूथपेस्ट, पालीथीन पैक, जूते की पालिस, मोमबत्ती, आलू चिप्स, पापड, मसाले के पैकेट तैयार करने जैसी बातें शामिल थीं। पूरी किताब पढ़ने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा धन कमाने का सबसे कारगर तरीका तो इसमें शामिल है ही नहीं, यानि मेरी नजर में धन कमाने के 300 तरीके वाली किताब छाप कर जितनी कमाई की गई है, किताब में शामिल तरीकों को अपना कर उसका आधा भी नहीं कमाया जा सकता।

बस जी भूमिका समझा दिया ना आपको, क्योंकि आजकल कुछ ऐसा ही कहानी चल रही है निर्मल बाबा के समागम यानि टीवी के लाफ्टर शो में। निर्मल बाबा की खास बात ये है कि उनके भक्तों की किसी भी तरह की समस्या हो, ये बाबा हर समस्या का समाधान वो पलक झपकते बता देते हैं। अब देखिए ना हम बीमार होते हैं तो डाक्टर के पास जाते हैं, पढाई लिखाई में कामयाब होने के लिए कोचिंग करते हैं, नौकरी पाने के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की गंभीरता से तैयारी करते हैं, किसी ने मकान या जमीन पर कब्जा कर लिया तो पुलिस की मदद लेते हैं, दुर्घटना हो जाने पर जल्दी से जल्दी अस्पताल जाने की कोशिश करते हैं, बेटी की शादी तय नहीं होने पर दोस्तों और रिश्तेदारों की मदद लेते हैं, नौकरी में प्रमोशन हो इसके लिए अपने काम को और मन लगाकर करते हैं, व्यापारियों का कहीं पेमेंट फंस जाए तो तगादा और ज्यादा करते हैं, बाल झड़ने लगे तो कुछ दवाएं लेते हैं, सुंदरता बनाए रखने के लिए ब्यूटिशियन की मदद लेते हैं, बुढापे में चलने फिरने में तकलीफ ना हो तो व्यायाम और सुबह टहलने जाते हैं, लेकिन अब आपको ये सब करने की जरूरत नहीं है, बल्कि आप बिना देर किए चले आएं निर्मल बाबा के दरबार में।

बाबा के पास तीसरी आंख है, वो सामने आने वाले भक्त को 100 मीटर दूर से जान जाते हैं कि इसे क्या तकलीफ है और उसका इलाज क्या है। बाबा का मानना कि जीवन में अगर कुछ गड़बड़ होता है तो ईश्वर की कृपा आनी बंद हो जाती है और बाबा तीसरी आंख के जरिए बता देते हैं कि कृपा के रास्ते में कहां रुकावट है और इस रुकावट का इलाज क्या है। हालांकि बाबा कब क्या बोल दें, कोई भरोसा नहीं है। एक ओर तो वो खुद ही लोगों को बताते हैं कि पाखंड से दूर रहें। साधु संतों के ड्रामे में नहीं फंसना चाहिए, खुद पूजा करो, क्योंकि ईश्वर भावना देखते हैं, सच्चे मन से भगवान को याद करें तो कृपा खुद आ जाएगी। ये बात मैं नहीं कह रहा हूं, खुद निर्मल बाबा कहते हैं, फिर मेरी समझ में नहीं आता कि ये बाबा पाखंडी किसे बता रहे हैं। पाखंड की सारी बातें तो उनके समागम में होती हैं और ये ज्ञान की बातें किसे समझा रहे हैं।

अब देखिए दो दिन पहले निर्मल बाबा एक नवजवान भक्त से पूछ रहे थे – तुम अपनी कमीज़ की बटन कैसे खोलते हो जल्दी जल्दी या देर से। सकपकाया भक्त बोला कभी जल्दी तो कभी देर से भी। बाबा बोले आराम-आराम से खोला करो। कृपा आनी शुरू हो जाएगी। अब भला ये भी कोई प्रश्न है? एक भक्त से उन्होंने पूछा बाल कहां कटवाते हो, भक्त बोला नाई से कटवा लेता हूं। बाबा बोले कभी पारर्लर जाने का मन नहीं होता, भक्त संकोच करते हुए बोला होता तो है, तो जाओ पारर्लर में एक बार बाल कटवा लो, कृपा आनी शुरू हो जाएगी। एक गरीब महिला कुछ गंभीर समस्याओं से घिरी हुई थी, उनके सामने आई, वो बाबा से कुछ कहती, उसके पहले बाबा ही बोल पड़े, अरे भाई तुम्हारे सामने से मुझे कढ़ी चावल क्यों दिखाई दे रहा है। वो बोली मैने कल कढ़ी चावल ही खाया था, बाबा क्या बोलते, कहा अकेले ही खाया तुमने। वो बोली नहीं पूरे परिवार ने खाया। हां यही तो गलती है तुमने किसी बाहर के लोगों को नहीं खिलाया, जाओ चार दूसरे लोगों को कढ़ी चावल खिला देना, कृपा आनी शुरू हो जाएगी।

कुछ और वाकये का जिक्र करना जरूरी समझ रहा हूं। बाबा कहते हैं कि पूजा में भावना होनी चाहिए, लेकिन जब बिहार की एक महिला को देखते ही उन्होंने कहाकि तुम छठ पूजा करती हो। वो बोली हां बाबा करती हूं, बाबा ने कहा कितने रुपये का सूप इस्तेमाल करती हो, वो बोली दस बारह रुपये का। बाबा ने कहा बताओ दस बारह रुपये के सूप से भला कृपा कैसे आएगी, तुम 30 रुपये का सूप इस्तेमाल करो। कृपा आनी शुरू हो जाएगी। बात यहीं खत्म नही हुई। एक महिला भक्त को उन्होंने पहले समागम में बताया था कि शिव मंदर में दर्शन करना और कुछ चढ़ावा जरूर चढ़ाना। अब दोबारा समागम में आई उस महिला ने कहा कि मैं मंदिर कई और चढ़ावा भी चढ़ाया, लेकिन मेरी दिक्कत दूर नहीं हुई। बाबा बोले कितना पैसा चढ़ाया, उसने कहा कि 10 रुपये, बाबा ने फिर हंसते हुए कहा कि दस रुपये में कृपा कहां मिलती है, अब की 40 रुपये चढ़ाना देखना कृपा आनी शुरू हो जाएगी।

अब देखिए इस महिला को बाबा ने ज्यादा पैसे चढ़ाने का ज्ञान दिया, जबकि एक दूसरी महिला दिल्ली से उनके पास पहुंची, बाबा उसे देखते ही पहचान गए और पूछा शिव मंदिर में चढ़ावा चढ़ाया या नहीं। बोली हां बाबा चढ़ा दिया। बाबा ने पूछा कितना चढ़ाया, वो बोली आपने 50 रुपये कहा था वो मैने चढ़ा दिया, और मंदिर परिसर में ही जो छोटे छोटे मंदिर थे, वहां दस पांच रुपये मैने चढ़ा दिया। बस बाबा को मौका मिल गया, बोले फिर कैसे कृपा आनी शुरू होगी, 50 कहा तो 50 ही चढ़ाना था ना, दूसरे मंदिर में क्यों चली गई। बस फिर जाओ.. और 50 ही चढ़ाना। क्या मुश्किल है, ज्यादा चढ़ा दो तो भी कृपा रुक जाती है, कम चढ़ाओ तो कृपा शुरू ही नहीं होती है। निर्मल बाबा ऐसा आप ही कर सकते हो, आपके चरणों में पूरे परिवार का कोटि कोटि प्रणाम।

एक भक्त को बाबा ने भैरो बाबा का दर्शन करने को कहा। वो भक्त माता वैष्णों देवी पहुंचा और वहां देवी के दर्शन के बाद और ऊपर चढ़ाई करके बाबा भैरोनाथ का दर्शन कर आया। बाद में फिर बाबा के पास पहुंचा और बताया कि मैंने भैरो बाबा के दर्शन कर लिए, लेकिन कृपा तो फिर भी शुरू नहीं हुई। बाबा ने पूछा कहां दर्शन किए, वो बोला माता वैष्णों देवी वाले भैरो बाबा का। बाबा ने कहा कि यही गड़बड़ है, तुम्हें तो दिल्ली वाले भैरो बाबा का दर्शन करना था। अब बताओ जिस बाबा ने कृपा रोक रखी है, उनके दर्शन ना करके, इधर उधर भटकते रहोगे तो कृपा कैसे चालू होगी। भक्त बेचारा खामोश हो गया।

यहां मुझे एक कहानी याद आ रही है। एक आदमी बीबी से हर बात पर झगड़ा करता था। उसकी बीबी ने नाश्ते में एक दिन उबला अंडा दे दिया, तो पति ने बीबी को खूब गाली दी और कहा कि आमलेट खाने का मन था, और तुमने अंडे को उबाल दिया। अगले दिन बेचारी पत्नी ने अंडे का आमलेट बना दिया, तो फिर गाली सुनी। पति ने कहा आज तो उबला अंडा खाने का मन था। तुमने आमलेट बना दिया। तीसरे दिन बीबी ने सोचा एक अंडे को उबाल देती हूं और एक का आमलेट बना देती हू, इससे वो खुश हो जाएंगे। लेकिन नाश्ते के टेबिल पर बैठी पत्नी को उस दिन भी गाली सुननी पड़ी। पति बोला तुमसे कोई काम नहीं हो सकता, क्योंकि जिस अंडे को उबालना था, उसका तुमने आमलेट बना दिया और जिसका आमलेट बनाना था, उसे उबाल दिया। कहने का मतलब मैं नहीं समझाऊंगा। आप मुझे इतना बेवकूफ समझ रहे हैं क्या, कि निर्मल बाबा से सारे पंगे मैं ही लूंगा, कुछ चीजें आप अपने से भी तो समझ लो।

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बहरहाल दोस्तों तीसरी आंखे क्या क्या चीजें देखतीं है, मैं तो ज्यादा नहीं जानता। पर परेशान हाल आदमी से ये पूछा जाए कि आपने मटके का पानी कब पिया, भक्त कहे कि मटका तो बाबा मैंने कब देखा याद ही नहीं, फिर बाबा बोले कि याद करो, भक्त कहता है कि हां कुछ याद आ रहा है कहीं प्याऊ पर रखा देखा था। बाबा कहते है कि हां यही बात मैं याद दिलाना चाहता था, आप प्याऊ पर एक मटका दान दे आओ और उस मटके पानी खुद भी पियो और दूसरों को भी पिलाओ। एक दूसरे भक्त को बाबा कहते हैं कि आप के सामने मुझे सांप क्यों दिखाई दे रहा है। भक्त घबरा गया, बोला बाबा सांप से तो मैं बहुत डरता हूं। बाबा बोले तुमने सांप कब देखा, भक्त ने कहा मुझे याद नहीं कब देखा। बाबा बोले याद करो, बहुत जोर डालने पर उसने कहा एक सपेरे के पास कुछ दिन पहले देखा था। बस बाबा को मिल गया हथियार, बोले कुछ पैसे दिए थे सपेरे को, भक्त ने कहा नहीं पैसे तो नहीं दिए। बस वहीं से कृपा रुक रही है। अगली बार सपेरे को देखो तो पैसे चढ़ा देना, कृपा आनी शुरू हो जाएगी।

वैसे तो बाबा के किस्से खत्म होने वाले ही नहीं है, पर एक आखिरी किस्सा बताता हूं। एक भक्त को उन्होंने कहाकि आपके मन में बड़ी-बड़ी इच्छाएं क्यों पैदा होती हैं? बेचारा भक्त खामोश रहा। बाबा बोले आप कैसे चलते हो, साइकिल, बाइक या कार से। वो बोला बाइक से। इच्छा होती है ना बडी गाड़ी पर चलने की, उसने कहा हां, बस बाबा ने तपाक से कह दिया कि यही गलत इच्छा से कृपा रुकी है। आप बड़ी गाड़ी रास्ते पर देखना ही बंद कर दें। अब बताओ भाई कोई आदमी रास्ते पर है, अब बड़ी गाड़ी आ जाए तो बेचारा क्या करेगा। आंख तो बंद नहीं करेगा ना। इसीलिए कहता हूं कि मुझे तो लगता है कि बाबा के सामने मूर्खों की जमात लगती है । आप अगर उनके प्रश्न और सलाह सुन लें तो हँस-हँस कर लोटपोट हो जाएँ। जय हो इस निर्मूल बाबा की!

चलिए बात खत्म करें, इसके पहले मैं आपको बता दूं कि कुछ लोगों ने अपने निर्मल बाबा की कृपा को ही रोक लिया और उन्हें सवा करोड़ रुपये का चूना लगा दिया। बात लुधियाना की है। बाबा को बैंक ने जो चेक बुक दी है, उसकी हूबहू कापी तैयार करके एक व्यक्ति ने सवा करोड़ रुपये बाबा के एकाउंट से निकाल लिया। हालाकि इस मामले में रिपोर्ट दर्ज हो गई है, पुलिस को फर्जीवाड़ा करने वालों की तलाश है। पर मेरा सवाल है कि जब बाबा के खुद के एंकाउंट में सेंधमारी हो गई और बाबा बेचारे कुछ नहीं कर पा रहे तो वो दूसरों के एकाउंट की रक्षा कैसे कर पाएंगे।

वैसे भी निर्मल बाबा के जीवन या उनकी पृष्ठभूमि के बारे में बहुत कम लोगों को पता है। उनकी आधिकारिक वेबसाइट nirmalbaba.com पर कोई जानकारी नहीं दी गई है। इस वेबसाइट पर उनके कार्यक्रमों, उनके समागम में हिस्सा लेने के तरीकों के बारे में बताया गया है और उनसे जुड़ी प्रचार प्रसार की सामग्री उपलब्ध है। झारखंड के एक अखबार के संपादक ने फेसबुक पर निर्मल बाबा की तस्वीर के साथ यह टिप्पणी की है, ‘ये निर्मल बाबा हैं। पहली बार टीवी पर उन्हें देखा। भक्तों की बात भी सुनी। पता चला..यह विज्ञापन है. आखिर बाबाओं को विज्ञापन देने की जरूरत क्यों पड़ती है? सुनने में आया है…ये बाबा पहले डाल्टनगंज (झारखंड) में ठेकेदारी करते थे?’। मित्रों आप बाबा पर भरोसा करें, मुझे कोई दिक्कत नहीं, पर जरा संभल कर और हां बाबा जी आपकी कृपा बनी रहनी चाहिए, देखिए ज्यादा लंबी लंबी मत छोड़िएगा, क्योंकि ये पब्लिक है, सब जानती है।

लेखक महेंद्र श्रीवास्‍तव पत्रकार हैं. लगभग डेढ़ दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं. कई राष्‍ट्रीय समाचार पत्रों में काम करने के बाद एक न्‍यूज चैनल को अपनी सेवाएं दे रहे हैं. उनका यह लेख उनके ब्‍लॉग आधा सच से साभार लिया गया है.

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